एम. एस. स्वामीनाथन: भारत को अन्न देने वाले व्यक्ति से सबक

UPSC प्रासंगिकता:

प्रीलिम्स: हरित क्रांति, नॉर्मन बोरलॉग, PL 480, भारत में कृषि अनुसंधान और विकास।
मेंस (GS-3): खाद्य सुरक्षा, कृषि नवाचार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी नीति, टिकाऊ कृषि।  

2025 में एम. एस. स्वामीनाथन की 100वीं जयंती मनाई जा रही है। ये वही वैज्ञानिक हैं जिन्हें भारत की हरित क्रांति (Green Revolution) का जनक कहा जाता है। इन्हें अक्सर यानी भारत को अन्न देने वाला व्यक्ति भी कहा जाता है। हाल ही में प्रियंबदा जयकुमार ने उनकी जीवनी लिखी है – “M.S. Swaminathan: The Man Who Fed India”। इस किताब ने फिर से लोगों का ध्यान उनकी विरासत और भारत को अपनी भविष्य की वैज्ञानिक एवं कृषि यात्रा के लिए आवश्यक सबक की ओर नए सिरे से आकर्षित किया है।

पृष्ठभूमि

  • 1960 के दशक में भारत गंभीर खाद्य संकट से जूझ रहा था।
  • देश को अपना पेट भरने के लिए अमेरिका से गेहूं मंगवाना पड़ता था। यह PL-480 प्रोग्राम  के तहत होता था।
  • इस प्रोग्राम में अमेरिका गरीब देशों को अपना अनाज सस्ती कीमत पर बेचता या मुफ्त में मदद के रूप में देता था।
  • उस समय भारत में बार-बार अकाल पड़ते थे। खेती की उत्पादकता बहुत कम थी। और विदेशों से अनाज पर निर्भरता बढ़ रही थी। इस वजह से भारत की खाद्य सुरक्षा पर बड़ा खतरा था।
  • इसी संकट के समय एम. एस. स्वामीनाथन, अमेरिकी वैज्ञानिक नॉर्मन बोरलॉग और भारतीय नेताओं लाल बहादुर शास्त्री तथा सी. सुब्रमण्यम ने मिलकर हरित क्रांति  की शुरुआत की।
  • इससे भारत ने आयात पर निर्भरता कम की, खेती की पैदावार बढ़ाई और धीरे-धीरे खाद्य आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाया।

हरित क्रांति क्या थी?

हरित क्रांति 1960 के दशक के मध्य से शुरू हुई। यह खेती से जुड़ा एक बड़ा सुधार अभियान था, जिसका मकसद था – देश में अन्न उत्पादन को तेज़ी से बढ़ाना, ताकि भूख और अकाल से बचा जा सके। इसके मुख्य पहलू निम्न थे : –

  1. उच्च उत्पादक बीज (HYV Seeds) – गेहूं और धान जैसी फसलों के नए किस्मों के बीज लगाए गए, जिनसे पहले से कहीं ज्यादा पैदावार होती थी।
  2. रासायनिक खाद और कीटनाशक – फसलों की उपज बढ़ाने और कीटों से बचाने के लिए खाद और दवाओं का इस्तेमाल बढ़ा।
  3. सिंचाई का विस्तार – नहरों, ट्यूबवेल और पंपों के ज़रिए खेतों में पानी की सुविधा बढ़ाई गई।
  4. आधुनिक खेती तकनीक – ट्रैक्टर, थ्रेशर, और वैज्ञानिक खेती के तरीके अपनाए गए।
  5. सरकारी नीतियों का सहारा
    1. किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) दिया गया।
    1. सरकार ने अनाज खरीदा और उसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के ज़रिए गरीबों तक पहुँचाया।

हरित क्रांति का प्रभाव

  1. खाद्य आत्मनिर्भरता – 1970 के दशक तक, भारत को अब खाद्य अनाज के लिए विदेशों से आयात पर निर्भर नहीं रहना पड़ा।
  2. अकाल से बचावभुखमरी और बड़े पैमाने पर खाद्य संकट से बचाव हुआ, जिससे भारत में अकाल की स्थितियाँ बहुत कम हो गईं।
  3. कृषि में बदलाव – पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में खाद्य उत्पादन का स्तर बहुत बढ़ा। ये राज्य अब भारत के खाद्य कटोरे के रूप में जाने जाने लगे।
  4. ग्रामीण विकास – किसानों ने नई तकनीकों को अपनाया, जिससे उनकी आय में वृद्धि हुई। हालांकि, इसके साथ ही कुछ राज्यों के बीच क्षेत्रीय असंतुलन भी सामने आए।

इस प्रकार हरित क्रांति को भारत की कृषि इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़  माना जाता है, क्योंकि इसने भारत को विदेशी अनाज पर निर्भरता से मुक्त किया और खाद्य आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर किया।

अब, स्वामीनाथन जी की 100वीं जयंती पर यह समय है, केवल उन्हें याद करने का नहीं, बल्कि यह सोचने का भी कि कैसे विज्ञान और सरकारी नीतियाँ मिलकर भारत की कृषि को सुधारने में मददगार साबित हुईं।

वैज्ञानिक सहयोग और हरित क्रांति

एम. एस. स्वामीनाथन ने समझा कि वैज्ञानिक प्रगति कभी अकेले नहीं होती, बल्कि यह वैश्विक सहयोग के माध्यम से ही संभव होती है। उनकी साझेदारी नॉर्मन बोरलॉग के साथ एक मील का पत्थर साबित हुई। नॉर्मन बोरलॉग, जो अमेरिकी वैज्ञानिक थे, को वैश्विक हरित क्रांति के जनक” के रूप में जाना जाता है । दोनों ने मैक्सिकन बौना गेहूं (Mexican Dwarf Wheat) की किस्मों को पेश किया, जो:

  • कम ऊँचाई वाली होती थीं,
    • गिरने (lodging) से बचने वाली होती थीं, और
    • पारंपरिक गेहूं के मुकाबले बहुत अधिक उपज देती थीं।

इसने सरकार की मजबूत समर्थन के बाद, खेतों में परीक्षणों ने शानदार सफलता प्राप्त की। इसके बाद 1966 में, भारत ने 18,000 टन हाई-यील्डिंग वैरायटी (HYV) गेहूं के बीज आयात किए, जो उस समय दुनिया में सबसे बड़ा बीज आयात था।

1968 तक, भारत ने रिकॉर्ड गेहूं का का उत्पादन और उत्पादकता हासिल की, खासकर पंजाब और हरियाणा में। इस उपलब्धि के कारण  भारत की विदेशी अनाज आयात पर निर्भरता कम की (PL-480 प्रोग्राम के तहत), और खाद्य सुरक्षा के लिए भारत की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुई।

वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं के बीच यह सहयोग यह दिखाता है कि वैश्विक नवाचार, जब स्थानीय स्तर पर अर्थपूर्ण तरीके से लागू किया जाता है, तो यह भारत की कृषि को बदल सकता है और दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है।

राजनीतिक नेतृत्व की भूमिका

हरित क्रांति की सफलता केवल वैज्ञानिक सफलता नहीं थी, बल्कि यह राजनीतिक दृष्टिकोण और वैज्ञानिक सलाह का मिलाजुला परिणाम था। यदि राजनीतिक नेतृत्व मजबूत न होता, तो स्वामीनाथन और बोरलॉग के वैज्ञानिक नवाचार लाखों भारतीय किसानों तक नहीं पहुँच पाते। कुछ महत्वपूर्ण नेताओं का योगदान :

  1. सी. सुब्रमण्यम – उन्होंने स्वामीनाथन की दृष्टि पर विश्वास किया और किसानों के बड़े पैमाने पर परीक्षण के लिए धन आवंटित किया, ताकि वैज्ञानिक विचारों का वास्तविक खेतों में परीक्षण किया जा सके।
  2. लाल बहादुर शास्त्री – उन्होंने स्वयं प्रयोगात्मक खेतों का दौरा किया और HYV बीजों के आयात को मंजूरी दी, जबकि वित्त मंत्रालय, योजना आयोग और कुछ आलोचकों ने आधिकारिक निर्भरता का डर दिखाया।
  3. इंदिरा गांधी – उन्होंने हरित क्रांति को राजनीतिक समर्थन दिया और इसे दीर्घकालिक राष्ट्रीय प्राथमिकता बना दिया, न कि सिर्फ एक छोटे प्रयोग के रूप में छोड़ा।

आज का सबक : हरित क्रांति से हमें यह सीखने को मिलता है कि तकनीकी चुनौतियों के लिए राजनीतिक नेताओं को वैज्ञानिकों से सीधे जुड़ना चाहिए। उन्हें नवाचार को राष्ट्रीय परिवर्तन में बदलने के लिए साहस, धन और निरंतरता प्रदान करनी चाहिए, न कि केवल ब्यूरोक्रेसी (अफसरशाही) पर निर्भर रहना चाहिए।

हरित क्रांति की चुनौतियाँ और आलोचनाएँ

हरित क्रांति ने भारत में खाद्य संकट का समाधान तो किया, लेकिन इसके साथ ही नई चुनौतियाँ भी उत्पन्न हुईं, जो आज भी भारतीय कृषि को प्रभावित कर रही हैं। जो तकनीकें उत्पादकता बढ़ाने में मददगार थीं, उन्होंने अनचाहे परिणाम भी दिए।

मुख्य समस्याएँ:

  1. रासायनिक इनपुट्स का अत्यधिक उपयोग
    1. बहुत अधिक खाद, कीटनाशक और सिंचाई का इस्तेमाल किया गया, जिससे मिट्टी का क्षरण और भूजल का स्तर घटना शुरू हुआ, खासकर पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में।
  2. क्षेत्रीय असंतुलन  –
    1. हाई-यील्ड बीजों और सरकारी खरीद के लाभ केवल कुछ राज्यों तक सीमित रहे, जिससे कृषि विकास में अंतरराज्यीय असमानता बढ़ी।
  3. पर्यावरणीय दबाव  –
    1. मिट्टी की उर्वरता कम होना, जैव विविधता का नुकसान , और एकल फसल उगाने की प्रथा से लंबे समय तक टिकाऊपन की समस्याएँ बढ़ी।

स्वामीनाथन ने इन समस्याओं को पहचाना और उन्होंने एक सदाबहार क्रांति की वकालत की –
एक ऐसा दृष्टिकोण, जिसमें उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि पर्यावरण के अनुकूल, न्यायसंगत, और किसान-केंद्रित हो।

आज के समय में महत्व: विज्ञान, कृषि, और विकसित भारत

भारत का सपना 2047 तक विकसित भारत बनने का है, और इसके लिएन सिर्फ कृषि बल्कि सभी क्षेत्रों विज्ञान, प्रौद्योगिकी, और नवाचार में निरंतर निवेश करना जरूरी है । एम. एस. स्वामीनाथन और हरित क्रांति का अनुभव आज के नीति निर्माताओं और वैज्ञानिकों के लिए स्मरणीय सबक है।

महत्वपूर्ण बातें:

  1. वैश्विक सहयोग –वैज्ञानिकों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग करने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए, ताकि वे ज्ञान साझा कर सकें और नई तकनीकों को अपनाने में कोई रुकावट न हो।
  2. राजनीतिक-वैज्ञानिक साझेदारी–प्रभावी निर्णय लेने में विभागीय विशेषज्ञों को सीधे शामिल किया जाना चाहिए, न कि सिर्फ साधारण प्रशासनिक अधिकारियों या ब्यूरोक्रेटिक चैनल्स पर निर्भर रहना चाहिए।
  3. स्वतंत्र निगरानी – महत्वाकांक्षी वैज्ञानिक कार्यक्रमों का समर्थन लगातार समीक्षा, प्रतिक्रिया और सुधारात्मक कदमों द्वारा किया जाना चाहिए, ताकि उनका दीर्घकालिक सफलता सुनिश्चित हो सके।

स्वामीनाथन जी की विरासत यह बताती है कि विज्ञान-नीति सहयोग, वैश्विक खुलेपन, और संस्थागत जवाबदेही भारत के विकसित भारत बनने की यात्रा के लिए आवश्यक स्तंभ हैं।

कृषि अनुसंधान में वर्तमान चुनौतियाँ

जब भारत स्वामीनाथन जी की 100वीं जयंती मना रहा है, तब देश का कृषि अनुसंधान तंत्र कई गंभीर समस्याओं का सामना कर रहा है, जो खाद्य और पोषण सुरक्षा के लक्ष्य को पूरा करने में अड़चन डाल सकते हैं। इनमे कुछ प्रमुख समस्याएँ हैं : –

  1. निवेश की कमी – भारत अपनी कृषि GDP का केवल 0.43% अनुसंधान और विकास पर खर्च करता है, जो चीन के आवंटन का आधा भी नहीं है।
  2. वैश्विक रैंकिंग – जहाँ चीन के पास दुनिया के टॉप 10 कृषि विश्वविद्यालयों में 8 संस्थान हैं, भारत के पास टॉप 200 में भी कोई विश्वविद्यालय नहीं है।
  3. संस्थागत कमजोरियाँ – अनुसंधान संस्थाओं में स्वतंत्रता की कमी और योग्यता आधारित भर्ती पर कम ध्यान देने से नवाचार क्षमता कमजोर हो रही है।

स्वामीनाथन जी की विरासत को सही सम्मान देने के लिए भारत को क्या करना चाहिए:

  1. कृषि अनुसंधान और विकास  में निवेश बढ़ाना
  2. वैज्ञानिकों को संस्थागत स्वतंत्रता देना होगा।
  3. जलवायु-स्मार्ट कृषि को प्राथमिकता देना होगा, ताकि भविष्य की टिकाऊता और खाद्य सुरक्षा चुनौतियों का समाधान किया जा सके।

आगे की राह

हरित क्रांति, जिसे स्वामीनाथन जी ने नेतृत्व किया, ने यह साबित कर दिया कि विज्ञान और राजनीतिक इच्छा मिलकर देश के भविष्य को बदल सकती हैं। लेकिन आज की चुनौतियाँ, जैसे जलवायु परिवर्तन, मिट्टी की खराबी, और पोषण संबंधी ज़रूरतें, एक नई दृष्टिकोण की मांग करती हैं। इसके लिए भविष्य में कुछ प्रमुख निम्न कदम उठाये जा सकते हैं :

  1. कृषि अनुसंधान के लिए सार्वजनिक धन  बढ़ाना ताकि यह वैश्विक मानकों के बराबर हो और नवाचार को बढ़ावा मिले।
  2. कृषि विश्वविद्यालयों और अनुसंधान केंद्रों में संस्थागत स्वतंत्रता को बढ़ावा देना, साथ ही योग्यता आधारित भर्ती से बेहतर प्रतिभा को आकर्षित करना।
  3. टिकाऊ कृषि प्रथाएँ जैसे फसल विविधता, जल उपयोग दक्षता, और जैविक तरीके को बढ़ावा देना, ताकि जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय दबाव का सामना किया जा सके।
  4. वैश्विक वैज्ञानिक सहयोग को बढ़ावा देना ताकि भारतीय कृषि लचीलापन, प्रतिस्पर्धा, और भविष्य के लिए तैयार हो सके।

निष्कर्ष

स्वामीनाथन जी के जीवन और कार्य से यह साफ़ होता है कि जब विज्ञान और दूरदृष्टि वाले राजनीतिक नेतृत्व का मिलाजुला प्रयास होता है, तो देश की किस्मत बदल सकती है।
हरित क्रांति सिर्फ अधिक उत्पादन के बारे में नहीं थी, बल्कि भारत की खाद्य आत्मनिर्भरता को सुरक्षित करने में मददगार साबित हुई और यह विज्ञान और प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता का उदाहरण बन गई। स्वामीनाथन जी को सच्चा श्रद्धांजलि उनकी मूर्तियों या स्मारकों से नहीं, बल्कि इन तरीकों से दी जा सकती है:

  • भारत के कृषि अनुसंधान को फिर से जीवित करना
  • जलवायु परिवर्तन के युग में खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना
  • 2047 तक विकसित भारत (Viksit Bharat) के दृष्टिकोण को आगे बढ़ाना।

इस प्रकार, स्वामीनाथन जी की विरासत भारत को हरित क्रांति की दिशा में उत्पादकता, टिकाऊता और समानता के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए मार्गदर्शन देती रहेगी।

UPSC प्रीलिम्स अभ्यास प्रश्न

Q1. भारत में हरित क्रांति के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

  1. यह मुख्य रूप से गेहूं और चावल की उत्पादकता बढ़ाने से जुड़ी थी।
  2. इसे मेक्सिको में विकसित बौने गेहूं की किस्मों के आयात से समर्थन मिला।
  3. इसने भारत में कृषि उत्पादकता में क्षेत्रीय असंतुलन को समाप्त कर दिया।
    ऊपर दिए गए कथन में से कौन सा/से सही है/हैं?
    ● A. केवल 1
    ● B. 1 और 2 केवल
    ● C. 2 और 3 केवल
    ● D. 1, 2 और 3
    उत्तर – (B)

Q2. निम्नलिखित में से कौन सा PL-480 कार्यक्रम को सही रूप से समझाता है, जो अक्सर 1960 के दशक में भारत की खाद्य सुरक्षा से संबंधित होता है?
● A. कृषि मशीनरी के लिए अनुदान देने वाला अमेरिकी कार्यक्रम।
● B. भारत को रियायती शर्तों पर गेहूं आपूर्ति करने वाला अमेरिकी कार्यक्रम।
● C. विकासशील देशों में कृषि अनुसंधान को समर्थन देने के लिए संयुक्त राष्ट्र का पहल।
● D. वैश्विक पोषण और खाद्य वितरण के लिए FAO का कार्यक्रम।
उत्तर – (B)

Q3. भारत में कृषि अनुसंधान और विकास के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार करें:

  1. भारत अपनी कृषि GDP का 0.5% से भी कम अनुसंधान और विकास पर खर्च करता है।
  2. चीन के पास कृषि अनुसंधान के लिए वैश्विक शीर्ष 10 में भारत की तुलना में अधिक संस्थाएँ हैं।
  3. भारत में कृषि विश्वविद्यालयों को भर्ती और प्रशासन में पूर्ण स्वायत्तता प्राप्त है।
    ऊपर दिए गए कथन में से कौन सा/से सही है/हैं?
    ● A. केवल 1 और 2
    ● B. केवल 2 और 3
    ● C. केवल 1 और 3
    ● D. 1, 2 और 3
    उत्तर – (A)

UPSC मेन्स अभ्यास प्रश्न
  1. भारत में हरित क्रांति वैज्ञानिक नवाचार और राजनीतिक नेतृत्व दोनों का परिणाम थी। इस प्रक्रिया में एम. एस. स्वामीनाथन की भूमिका और वर्तमान कृषि नीति के लिए इसमें क्या महत्वपूर्ण पाठ हैं, इस पर चर्चा करें। (250 शब्द)
  2. हरित क्रांति ने भारत के खाद्य संकट का समाधान किया लेकिन नई पारिस्थितिकीय और सामाजिक-आर्थिक समस्याएँ उत्पन्न की। क्या आप इस दृष्टिकोण से सहमत हैं? एक टिकाऊ “एवरग्रीन क्रांति” के लिए उपाय सुझाएँ।
    स्रोत – THE HINDU

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