चर्चा में क्यों :– हाल ही में तमिलनाडु राज्य के शिक्षा विभाग ने कॉर्पोरल पनिशमेंट (शारीरिक दंड) के उन्मूलन (GECP) करने के लिए दिशा निर्देश जारी किए हैं
कॉर्पोरल पनिशमेंट (शारीरिक दंड) के उन्मूलन (GECP) का उद्देश्य :–
1. स्कूली बच्चों के शारीरिक और मानसिक सेहत की रक्षा करना
2. स्कूलों में अनुशासन के नाम पर बच्चों के उत्पीड़न को रोकना
3. शिक्षकों के द्वारा बच्चों पर किए जाने वाले किसी भी प्रकार के दबाव या मनमानी से बच्चों को सुरक्षित रखना
कॉर्पोरल पनिशमेंट क्या है :–
बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCRC) के अनुसार कॉर्पोरल पनिशमेंट ऐसे प्रकार का दंड है, जिसके अंतर्गत स्कूली बच्चों पर शारीरिक बल का प्रयोग किया जाता है।
स्कूल द्वारा इस बल को प्रयोग करने के कई उद्देश्य हो सकते हैं :–
1. स्कूल में अनुशासन स्थापित करना
2. होमवर्क नहीं करने के लिए बच्चों को सजा देना जिससे उन्हें दर्द या पीड़ा का अनुभव हो ।
इस सजा के अंतर्गत निम्नलिखित को शामिल किया गया है डंडे से मारना, लात मारना, बाल खींचना आदि।
कॉर्पोरल पनिशमेंट (शारीरिक दंड) की परिभाषा के अनुसार :– शारीरिक दंड , वह दंड होता है जिसमे शारीरिक प्रकृति की कोई गतिविधि जुड़ी हो ।
भारतीय कानून में स्कूली बच्चों के लिए कॉर्पोरल पनिशमेंट ‘शारीरिक दंड’ की कोई वैधानिक परिभाषा नहीं दी गई है
शारीरिक दंड के अंतर्गत किसी बच्चे को दर्द, चोट और असुविधा को सामिल किया गया है चाहे वह कितना भी हल्का या मामूली क्यों ही न हो।
शारीरिक दंड में शामिल :– मारना, लात से मारना, काटना, बाल खींचना, कान खींचना,खरोंचना, शरीर पर चुटकी काटना, थप्पड़ मारना, किसी भी उपकरण (बेंत, छड़ी, जूता, चाक, डस्टर, बेल्ट, चाबुक) से मारना, बिजली का झटका देना आदि।
भारतीय शासन के अंतर्गत बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम, 2009 की धारा 17(1) के अंतर्गत ‘शारीरिक दंड’ तथा ‘मानसिक उत्पीड़न’ पर रोक लगाने का प्रावधान किया गया है। इसी अधीनियम की धारा 17(2) के तहत ‘शारीरिक दंड’ तथा ‘मानसिक उत्पीड़न’ को दंडनीय अपराध बनाया गया है।
कॉर्पोरल पनिशमेंट और नैतिक मुद्दे
1. कॉरपोरल पनिशमेंट से बच्चों में शारीरिक और मानसिक हानी देखने को मिलती है
2. को इस प्रकार की सजा देने से उनके आत्मविश्वास की कमी होती है
3. इस प्रकार की सजा से बच्चे अपने सहपाठियों के बीच अपमानित महसूस करते हैं तथा आत्मसम्मान में कमी महसूस करते है
4. कई बार देखा गया है कि ऐसी सज़ा में बच्चों को शारीरिक जख्म, मानसिक व स्वास्थ्य समस्याएं और घबराहट जैसी समस्याएं भी उत्पन्न हो जाती हैं
5. कई बार ऐसी सजाएं वर्ग विशेष या समुदाय विशेष के प्रति भी होती है जैसे जेंडर, जाति या सामाजिक- आर्थिक स्थिति जैसे पूर्वाग्रह देखे जाते हैं।
6. कई बार सामान्य तथा छोटी छोटी गलती के लिए भी बदले की भावना से अधिक सजा दी जाती है।
कॉर्पोरल पनिशमेंट के नकारात्मक प्रभाव:–
- अक्सर ऐसा देखा गया है कि कॉर्पोरल पनिशमेंट बच्चों में अनुशासन बनाए रखने के लिए अधिक प्रभावी सिद्ध नहीं होता है
- कॉर्पोरल पनिशमेंट से बच्चों के अंतर्गत नकारात्मक छवि का विकास होता है
- कॉर्पोरल पनिशमेंट से बच्चों में सकारात्मक व्यवहार परिवर्तन या नैतिक विकास को बढ़ावा नहीं मिलता है।
- कॉर्पोरल पनिशमेंट से बच्चों में एक भेड़ बना रहता है और बच्चे हमेशा इससे बचने के उपाय ढूंढते रहते हैं
- इस प्रकार के दंड के भाई से अधिकतर बच्चे बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं।
कॉर्पोरल पनिशमेंट के विनियमन हेतु किए गए उपाय :–
1. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 39 राज्य को अल्पायु युवाओं और और बच्चों की शोषण से रक्षा करने का उपाय प्रदान करता है
2. साथ ही अनुच्छेद 39 नैतिक एवं आर्थिक परित्याग से रक्षा करने का निर्देश भी देता है।
3. बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 की धारा 17 बच्चों के शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न को दंडनीय अपराध बनाती है तथा इसको रोकने के प्रावधान करती है।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने स्कूलों में शारीरिक दंड को खत्म करने के लिए कुछ दिशानिर्देश जारी किए है जिसके अनुसार :–
- प्रत्येक स्कूल में कॉर्पोरल पनिशमेंट निगरानी कक्ष स्थापित किए जाने का प्रावधान किया जाए ।
- प्रत्येक स्कूल को छात्रों की शिकायतों को दूर करने के लिए एक तंत्र विकसित हो
- छात्रों के प्रति होने वाली किसी भी प्रकार की हिंसा पर नजर रखने के लिए स्पष्ट प्रोटोकॉल तैयार किया जाए ।
- पीड़ित व्यक्ति अपनी शिकायत डाल सके इसके लिए ड्रॉप बॉक्स रखे जाने चाहिए
- इसी के साथ शिकायत किए जाने वाले छात्र की गोपनीयता की रक्षा के लिए गुमनामी बनाए रखी जाए।