यूपीएससी के लिए प्रासंगिकता:
जीएस पेपर 2: अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ, वैश्विक पर्यावरण शासन
जीएस पेपर 3: जैव विविधता संरक्षण, जलवायु परिवर्तन, सतत संसाधन प्रबंधन
खबरों में क्यों?
सितंबर 2025 में, 60 से अधिक देशों ने गहन सागर संधि (High Seas Treaty) — जिसे आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैव विविधता (Biodiversity Beyond National Jurisdiction – BBNJ) समझौता कहा जाता है — का अनुमोदन (Ratification) कर दिया है।
यह संधि जनवरी 2026 में लागू होगी। इसका उद्देश्य राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से बाहर स्थित महासागरीय क्षेत्रों में समुद्री जैव विविधता के संरक्षण और सतत उपयोग के लिए एक वैश्विक कानूनी ढाँचा स्थापित करना है, जो जलवायु परिवर्तन, अति-मत्स्यन (Overfishing) और प्रदूषण जैसी चुनौतियों का समाधान करेगा।
पृष्ठभूमि और संदर्भ
गहन सागर संधि की यात्रा 2004 में शुरू हुई, जब संयुक्त राष्ट्र महासभा (UN General Assembly) ने यह महसूस किया कि यूएनसीएलओएस (UNCLOS – 1982) राष्ट्रीय सीमाओं से परे जैव विविधता संरक्षण को पर्याप्त रूप से शामिल नहीं करता।
2011 तक देशों ने चार प्रमुख विषयों पर वार्ता करने का निर्णय लिया —
- समुद्री आनुवंशिक संसाधन (Marine Genetic Resources)
- क्षेत्र-आधारित प्रबंधन उपकरण (Area-Based Management Tools)
- पर्यावरण प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessments)
- क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (Capacity Building and Technology Transfer)
2018 से 2023 के बीच चार दौर की अंतर-सरकारी बैठकों के बाद, मार्च 2023 में इस पर सहमति बनी और जून 2023 में इसे औपचारिक रूप से अपनाया गया।
गहन सागर (High Seas) क्या हैं?
परिचय:
1958 के जिनेवा कन्वेंशन के अनुसार, महासागर का वह भाग जो किसी देश के प्रादेशिक जल और अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) — जो तट से 200 समुद्री मील तक फैला होता है — से परे स्थित है, गहन सागर कहलाता है।
इस सीमा से आगे किसी भी देश का स्वामित्व या नियंत्रण नहीं होता — ये वैश्विक साझा संपत्ति (Global Commons) हैं।
गहन सागर संधि का उद्देश्य इन साझा क्षेत्रों के प्रबंधन और संरक्षण के लिए एक मज़बूत ढाँचा स्थापित करना है।
महत्व:
● गहन सागर विश्व के महासागरों का 64% और पृथ्वी की सतह का लगभग 50% भाग कवर करते हैं।
● यहाँ लगभग 2.7 लाख ज्ञात प्रजातियाँ पाई जाती हैं, और अनेक अभी खोजी जानी बाकी हैं।
● ये जलवायु को नियंत्रित करने, कार्बन अवशोषित करने और ऊष्मा वितरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
● ये भोजन, कच्चा माल, और औषधीय/आनुवंशिक संसाधनों का प्रमुख स्रोत हैं।
खतरे:
● जलवायु तनाव: महासागरों का गर्म होना, अम्लीकरण (acidification) और एल नीनो (El Niño) जैसी घटनाएँ समुद्री पारिस्थितिकी को नुकसान पहुँचा रही हैं।
● जैव विविधता का ह्रास: यदि वर्तमान प्रवृत्तियाँ जारी रहीं, तो 2100 तक कई प्रजातियाँ विलुप्त हो सकती हैं।
● मानवीय दबाव: समुद्र तल खनन, अति-मत्स्यन, तेल रिसाव, ध्वनि प्रदूषण और अपशिष्ट फेंकने जैसी गतिविधियाँ महासागर के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही हैं।
● वर्तमान में गहन सागरों का केवल 1% भाग ही संरक्षित है, जो मजबूत अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता को दर्शाता है।
गहन सागर संधि (BBNJ समझौता) क्या है?
परिचय:
यह संधि, जिसका आधिकारिक नाम है — “राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे क्षेत्रों की समुद्री जैव विविधता के संरक्षण और सतत उपयोग पर समझौता (BBNJ)”,
संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून अभिसमय (UNCLOS) के तहत 2023 में अपनाई गई।
इसका उद्देश्य यूएनसीएलओएस की कानूनी कमियों को पूरा करना है, ताकि किसी भी देश के नियंत्रण से बाहर स्थित क्षेत्रों में जैव विविधता संरक्षण और संसाधनों के न्यायसंगत उपयोग को सुनिश्चित किया जा सके।
मुख्य उद्देश्य - समुद्री पारिस्थितिकी का संरक्षण:मानवीय गतिविधियों को नियंत्रित करने और पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा हेतु समुद्री संरक्षित क्षेत्र (Marine Protected Areas – MPAs) स्थापित करना।
- लाभ का निष्पक्ष बँटवारा: समुद्री आनुवंशिक संसाधनों (MGRs) से होने वाले लाभों का समान और न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करना।
- अनिवार्य पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIAs): ऐसी सभी गतिविधियों के लिए EIA अनिवार्य करना जो समुद्री जीवन को प्रभावित कर सकती हैं, भले वे राष्ट्रीय क्षेत्र में ही क्यों न हों।
- क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण:विकासशील देशों को समुद्री प्रौद्योगिकी और अनुसंधान में सहयोग देना ताकि वे सतत उपयोग सुनिश्चित कर सकें।
अनुमोदन स्थिति
● जून 2024 तक 91 देशों ने संधि पर हस्ताक्षर किए और 8 देशों ने अनुमोदन किया था।
● यह संधि 60 अनुमोदनों के 120 दिन बाद कानूनी रूप से बाध्यकारी होगी।
● हस्ताक्षर समर्थन को दर्शाते हैं, जबकि अनुमोदन संधि को उस देश के लिए कानूनी रूप से लागू करता है।
संधि का महत्व - वैश्विक साझा संपत्ति की चुनौती का समाधान:गहन सागर साझा संसाधन हैं जिनका दुरुपयोग आम है। यह संधि सामूहिक जिम्मेदारी और संरक्षण को सुनिश्चित करती है।
इसे प्रभाव में पेरिस समझौते (2015) के तुलनीय माना जा रहा है। - यूएनसीएलओएस का पूरक:यूएनसीएलओएस महासागर शासन की रूपरेखा देता है, पर इसमें क्रियान्वयन तंत्र की कमी है।
बीबीएनजे संधि इस कमी को दूर करते हुए समुद्री संरक्षित क्षेत्र और संसाधन-साझाकरण के लिए कानूनी ढाँचा प्रदान करती है।
यह विकसित और विकासशील देशों के हितों में संतुलन स्थापित करती है। - उभरते खतरों से निपटना:यह संधि गहरे समुद्री खनन, प्लास्टिक प्रदूषण और महासागर अम्लीकरण जैसी नई चुनौतियों का समाधान करती है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को सशक्त करना:पारदर्शी निर्णय-प्रक्रिया और डेटा-साझाकरण के माध्यम से संस्थागत समन्वय और वैश्विक भागीदारी को बढ़ावा देती है।
- एसडीजी में योगदान:यह एसडीजी-14 (जल के नीचे जीवन) को सीधे समर्थन करती है और एसडीजी-13 (जलवायु कार्रवाई) व एसडीजी-17 (साझेदारी) को भी मज़बूत बनाती है।
भारत के लिए महत्व
● वैश्विक नेतृत्व:सागर (SAGAR) और समुद्री संरक्षित क्षेत्र (MPAs) जैसी पहलों से भारत की जिम्मेदार समुद्री शक्ति के रूप में छवि सुदृढ़ होती है।
● नीतिगत संरेखण: संधि का EIA प्रावधान भारत की नीली अर्थव्यवस्था (Blue Economy) और समुद्री नीतियों को वैश्विक मानकों से जोड़ता है।
● आर्थिक अवसर:समुद्री आनुवंशिक संसाधनों से लाभ का न्यायसंगत बँटवारा भारत के लिए वैज्ञानिक और आर्थिक अवसरों के नए द्वार खोलता है।
● रणनीतिक महत्व: संधि का अनुमोदन भारत की हिंद-प्रशांत नीति और द्वीपीय देशों के साथ सहयोग को सुदृढ़ करेगा।
प्रमुख मुद्दे और चुनौतियाँ - सिद्धांतगत संघर्ष: “मानव जाति की साझा विरासत (Common Heritage of Humankind)” और “गहन सागरों की स्वतंत्रता (Freedom of the High Seas)” के बीच संतुलन चुनौतीपूर्ण है।
- अस्पष्ट लाभ-बँटवारा तंत्र: समुद्री आनुवंशिक संसाधनों (MGRs) से लाभ वितरण की विधि और निगरानी के स्पष्ट मानदंडों का अभाव है, जिससे बायोपायरेसी की आशंकाएँ बढ़ती हैं।
- महाशक्तियों की अनिच्छा: अमेरिका, चीन और रूस ने अभी तक संधि का अनुमोदन नहीं किया है, जिससे प्रवर्तन और सहयोग प्रभावित हो सकता है।
संस्थागत अतिव्यापन: अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण (ISA) और क्षेत्रीय मत्स्य प्रबंधन संगठन (RFMOs) के साथ समन्वय में कानूनी जटिलताएँ बनी हुई हैं।
आगे की राह (Way Forward)
● शीघ्र अनुमोदन: सभी देशों को संधि को जल्द से जल्द अनुमोदित कर राष्ट्रीय कानून में सम्मिलित करना चाहिए।
● गतिशील संरक्षण: बदलते आंकड़ों और तकनीक के अनुरूप अनुकूली समुद्री संरक्षित क्षेत्र (Adaptive MPAs) विकसित किए जाएँ।
● कठोर निगरानी: अनुपालन हेतु एक पारदर्शी वैश्विक निगरानी तंत्र स्थापित किया जाए।
● क्षमता निर्माण में सहयोग: विकसित देश विकासशील देशों को वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करें।
● जलवायु व जैव विविधता नीति का एकीकरण: महासागर संरक्षण को जलवायु लचीलापन रणनीतियों से जोड़ा जाए।
निष्कर्ष
गहन सागर संधि वैश्विक महासागर शासन में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है, जो भावना में पेरिस समझौते (2015) के समान है।
इसकी सफलता सामूहिक प्रतिबद्धता, स्पष्ट क्रियान्वयन और न्यायपूर्ण लाभ-बँटवारे पर निर्भर करेगी।
भारत के लिए यह अवसर है कि वह समुद्री नेतृत्व, स्थायी नीली अर्थव्यवस्था और सुरक्षित हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण को साकार करे।
यदि प्रभावी ढंग से लागू किया जाए, तो यह संधि सुनिश्चित करेगी कि विश्व का सबसे बड़ा पारिस्थितिकी तंत्र — महासागर — आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वस्थ, न्यायसंगत और संरक्षित बना रहे।
समुद्र से संबंधित अन्य अभिसमय (Related Conventions on the Seas)
अभिसमय (Convention) वर्ष मुख्य ध्यान (Focus)
यूएनसीएलओएस (UNCLOS) 1982 महासागर शासन हेतु कानूनी ढाँचा; महासागरों को 5 क्षेत्रों में विभाजित करता है।
कॉन्टिनेंटल शेल्फ पर कन्वेंशन 1964 महाद्वीपीय शेल्फ पर संसाधनों के उपयोग हेतु राष्ट्रों के अधिकार निर्धारित करता है।
मछली पकड़ने और जीवित संसाधनों के संरक्षण पर कन्वेंशन 1966 समुद्री जीवों के अत्यधिक दोहन को रोकता है।
लंदन कन्वेंशन 1972 अपशिष्ट फेंकने से होने वाले समुद्री प्रदूषण को नियंत्रित करता है।
मार्पोल कन्वेंशन (MARPOL) 1973 जहाज़ों से तेल, रसायन, सीवेज और कचरे से होने वाले समुद्री प्रदूषण को रोकता है।
यूपीएससी प्रारंभिक परीक्षा अभ्यास प्रश्न
प्रश्न 1.
उच्च सागर संधि (BBNJ Agreement) के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- इसका उद्देश्य राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे क्षेत्रों में समुद्री जैव विविधता को नियंत्रित और संरक्षित करना है।
- यह समुद्री आनुवंशिक संसाधनों (MGRs) को मानव जाति की साझी विरासत के रूप में मान्यता देता है।
- इसे जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के तहत अपनाया गया था।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (a)
स्पष्टीकरण:
BBNJ समझौता संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (UNCLOS) से जुड़ा है, न कि UNFCCC से।
यह राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे जैव विविधता को शामिल करता है और MGRs को मानव जाति की साझी विरासत के रूप में मान्यता देता है।
सही विकल्प: (a) केवल 1 और 2
प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन सा/से राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैव विविधता (BBNJ) समझौते के अंतर्गत शामिल चार प्रमुख क्षेत्रों में से है/हैं? - समुद्री आनुवंशिक संसाधन (MGR)
- क्षेत्र-आधारित प्रबंधन उपकरण (ABMT) जिसमें समुद्री संरक्षित क्षेत्र (MPAs) शामिल हैं
- पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA)
- प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और क्षमता निर्माण
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 3
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (d)
स्पष्टीकरण:UNCLOS के तहत बातचीत किया गया BBNJ समझौता चार केंद्रीय स्तंभों पर आधारित है — - MGR
- ABMT (MPAs सहित)
- EIA
- क्षमता निर्माण एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण।
सही विकल्प: (d) 1, 2, 3 और 4
प्रश्न 3.
महासागरीय शासन में अक्सर उल्लिखित “मानव जाति की साझी विरासत” (Common Heritage of Humankind) के सिद्धांत का मुख्यतः तात्पर्य है:
(क) गहरे समुद्र के खनिजों के दोहन हेतु तटीय राज्यों के अनन्य अधिकार
(ख) वैश्विक साझा संसाधनों से प्राप्त लाभों का समान बंटवारा
(ग) सभी देशों के लिए नौवहन और मछली पकड़ने की स्वतंत्रता
(घ) उच्च समुद्रों में सभी आर्थिक गतिविधियों पर प्रतिबंध
उत्तर: (ख)
स्पष्टीकरण: “मानव जाति की साझी विरासत” का सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि वैश्विक साझा संसाधनों — जैसे उच्च सागर और बाह्य अंतरिक्ष — का प्रबंधन सभी देशों, विशेष रूप से विकासशील देशों के लाभ के लिए किया जाए।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
प्रश्न (सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 – अंतर्राष्ट्रीय संबंध)
उच्च सागर संधि वैश्विक महासागरीय शासन में एक मील का पत्थर है, लेकिन इसके कार्यान्वयन में कई चुनौतियाँ हैं। इस संधि से जुड़ी प्रमुख चिंताओं पर चर्चा कीजिए और इसके प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के उपाय सुझाइए। (250 शब्द)
