छात्र आत्महत्या संकट: सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश और भारत की मानसिक स्वास्थ्य चुनौती

UPSC CSE के लिए प्रासंगिकता (Relevance for UPSC CSE)

  • GS पेपर–2: मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) एवं छात्र जैसे संवेदनशील वर्गों (Vulnerable Sections) की सुरक्षा से संबंधित शासन एवं नीतिगत पहल
  • GS पेपर–4: छात्र आत्महत्याओं से जुड़ी नैतिक चुनौतियाँ (Ethical Issues) तथा संस्थागत जवाबदेही (Institutional Accountability) का विश्लेषण

प्रसंग: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक हस्तक्षेप

भारत में छात्रों द्वारा आत्महत्या (Student Suicide) करना अब केवल व्यक्तिगत संकट नहीं, बल्कि संस्थागत विफलता (Institutional Failure) का स्पष्ट संकेत बन चुका है। 25 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने देश भर के स्कूलों, कॉलेजों और कोचिंग संस्थानों में आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए 15 सख़्त दिशानिर्देश (15 Guidelines) जारी किए।

इन निर्देशों को तब तक बाध्यकारी (Binding) माना जाएगा, जब तक इस पर कोई कानून (Legislation) या नियम (Regulatory Framework) नहीं बनता।

पृष्ठभूमि और आंकड़े: आत्महत्या का संकट

विश्व स्तर पर स्थिति:

  • WHO की 2023 रिपोर्ट के अनुसार, हर 40 सेकंड में एक आत्महत्या होती है।
  • आत्महत्या से मृत्यु 15–29 वर्ष आयु वर्ग के युवाओं में दूसरी सबसे बड़ी मृत्यु का कारण है।

भारत में स्थिति:

  • NCRB की रिपोर्ट (2023) के अनुसार:
    • भारत में 1,71,293 लोगों ने आत्महत्या की
    • इनमें से 13,084 छात्र थे — यानी हर दिन 35 छात्र आत्महत्या कर रहे हैं।
    • सबसे अधिक मामले महाराष्ट्र, तमिलनाडु, और मध्यप्रदेश से आए।

छात्र आत्महत्याओं के पीछे के मुख्य कारण

कारणविवरण
शैक्षणिक दबावकोचिंग संस्थानों, बोर्ड परीक्षाओं, और प्रतियोगी परीक्षाओं का तनाव
मानसिक स्वास्थ्य उपेक्षाअवसाद (Depression), चिंता (Anxiety), और आत्ममूल्यहीनता की भावना
पारिवारिक दबावमाता-पिता की अपेक्षाएँ और सामाजिक तुलना
चुप्पी और संवादहीनताछात्रों का अपनी तकलीफों को साझा न कर पाना
रैगिंग, भेदभाव और उत्पीड़नजातीय भेदभाव, यौन उत्पीड़न, लिंग आधारित टिप्पणी
संस्थागत उदासीनताशिकायतों की अनदेखी, काउंसलिंग की कमी

प्रमुख उदाहरण: समाज को झकझोर देने वाले मामले

रोहित वेमुला (2016):

  • हैदराबाद विश्वविद्यालय के दलित शोध छात्र रोहित वेमुला ने अपने निलंबन और प्रशासनिक उपेक्षा के विरोध में आत्महत्या की।
  • उन्हें संस्थागत भेदभाव का सामना करना पड़ा—विश्वविद्यालय ने उन्हें छात्रावास से निष्कासित कर दिया और छात्रवृत्ति भी रोक दी गई थी।
  • उन्होंने अपने अंतिम पत्र में लिखा था कि उनकी “जाति एक अभिशाप बन गई है”, जिसने देशभर में “institutional murder” पर बहस को जन्म दिया।
  • इस घटना ने उच्च शिक्षा में जातीय असमानता, भेदभाव और मानसिक स्वास्थ्य की उपेक्षा को उजागर किया।

डेल्टा मेघवाल (2016):

  • राजस्थान की एक दलित छात्रा डेल्टा बी. एड की पढ़ाई कर रही थीं।
  • उन्हें कथित तौर पर उनके विद्यालय परिसर में एक कर्मचारी द्वारा यौन शोषण का सामना करना पड़ा।
  • घटना के कुछ ही दिनों बाद उनकी मृत अवस्था बरामद हुई।
  • परिवार और सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप था कि उनकी मौत आत्महत्या नहीं बल्कि सुनियोजित हत्या है, जिसे आत्महत्या का रूप दिया गया।
  • इस घटना ने लैंगिक शोषण, जातीय उत्पीड़न और संस्थागत चुप्पी पर गंभीर सवाल खड़े किए।

अनिता (2017):

  • तमिलनाडु की एक ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाली मेधावी छात्रा अनिता ने मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए राज्य बोर्ड की परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त किए थे।
  • लेकिन NEET (National Eligibility cum Entrance Test) को अनिवार्य बनाए जाने से वह मेडिकल सीट पाने में असमर्थ रहीं।
  • इस असमानता और निराशा के चलते उन्होंने आत्महत्या कर ली।
  • उनकी मृत्यु ने इस सवाल को जन्म दिया कि क्या एक समान प्रवेश परीक्षा ग्रामीण और वंचित छात्रों के साथ न्याय करती है?
  • यह मामला नीति-निर्माण में समावेशन, शैक्षणिक न्याय और संवेदनशीलता की आवश्यकता को उजागर करता है।

कोटा के छात्र (2023–2025):

  • कोटा (राजस्थान) कोचिंग इंडस्ट्री का गढ़ बन चुका है, जहाँ हजारों छात्र IIT/NEET जैसी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं।
  • वर्ष 2023 से 2025 के बीच 80 से अधिक छात्रों ने आत्महत्या की, जो एक राष्ट्रीय आपात स्थिति जैसी स्थिति बन चुकी है।
  • मुख्य कारणों में शामिल हैं:
  • अत्यधिक शैक्षणिक दबाव,
  • एकांत और भावनात्मक समर्थन की कमी,
  • कम उम्र में प्रतिस्पर्धी तनाव।
  • कई संस्थानों में काउंसलिंग इंफ्रास्ट्रक्चर और मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता पूरी तरह से अनुपस्थित है।
  • यह संकट दिखाता है कि शिक्षा व्यवस्था कैसे छात्रों को मशीन समझकर लक्ष्य आधारित बना रही है, न कि मानवतावादी दृष्टिकोण से देख रही है।

सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश: पुनरावृत्ति

 15 दिशानिर्देशों का सार:

  • मानसिक स्वास्थ्य नीति अनिवार्य
  • प्रशिक्षित काउंसलर की नियुक्ति
  • भेदभाव और उत्पीड़न पर रोक
  • आवासीय सुरक्षा उपाय (जैसे टेम्पर-प्रूफ पंखे)
  • प्रतिशोध की मनाही, और शिकायत तंत्र की पारदर्शिता

सरकारी पहलकदमियाँ:

  • MANODARPAN (2020):
    • शिक्षा मंत्रालय द्वारा COVID-19 के दौरान शुरू की गई।
    • छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों के लिए ऑनलाइन मानसिक स्वास्थ्य सहायता।
  • UMMEED Guidelines (2023):
    • स्कूली छात्रों में आत्महत्या की रोकथाम हेतु 6 सिद्धांत: Understand, Motivate, Manage, Empathise, Empower, Develop
  • राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति (2022): 2030 तक आत्महत्या दर में 10% की कमी का लक्ष्य।

नैतिक और सामाजिक विमर्श – GS Paper IV दृष्टिकोण

  • संस्थागत नैतिक जवाबदेही (Institutional Responsibility)
    • शैक्षणिक संस्थान केवल ज्ञान का माध्यम नहीं, बल्कि छात्रों के मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक विकास के संरक्षक भी होते हैं।
    • नैतिक दृष्टि से, जब कोई छात्र आत्महत्या जैसा कदम उठाता है, तो यह केवल व्यक्तिगत विफलता नहीं बल्कि उस संस्थान की संवेदनहीनता और जवाबदेही की कमी को दर्शाता है।
    • संस्थानों को शिकायत निवारण तंत्र, काउंसलिंग सेवाएँ, और सहानुभूतिपूर्ण प्रशासनिक रवैया सुनिश्चित करना चाहिए।
  • सहानुभूति और करुणा का व्यवहार (Empathy & Compassion)
    • छात्रों के प्रति सहानुभूति (Empathy) का अर्थ है उनकी पीड़ा को समझना, और करुणा (Compassion) का अर्थ है उस पीड़ा को कम करने की सक्रिय इच्छा।
    • शिक्षक, प्राचार्य, और प्रशासकों का व्यवहार यदि केवल अकादमिक उपलब्धियों तक सीमित होगा, तो छात्र भावनात्मक रूप से अकेले पड़ सकते हैं।
    • उदाहरण:
      • “Talk Circles” जैसी सह-वार्ता पहलों से छात्र अपनी समस्याओं को खुलकर साझा कर सकते हैं।
      • कक्षा में शिक्षक का अनावश्यक तुलना या अपमान करना छात्र के आत्म-मूल्य को ठेस पहुँचा सकता है।
  • गोपनीयता बनाए रखना (Confidentiality)
    • मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी को सार्वजनिक करना या मज़ाक बनाना, छात्र की गरिमा को ठेस पहुँचा सकता है।
    • नैतिक रूप से, छात्रों की निजी जानकारी को गोपनीय रखना उनका मौलिक अधिकार है।
    • स्कूलों और कोचिंग संस्थानों में Anonymous Help Boxes या Online Reporting Platforms गोपनीयता सुनिश्चित कर सकते हैं।

शिक्षा क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता:

सुधारसुझाव
मानसिक स्वास्थ्य शिक्षापाठ्यक्रम में अवसाद, तनाव, आत्म-संवाद शामिल किया जाए
काउंसलिंग इंफ्रास्ट्रक्चरहर स्कूल-कोचिंग में मनोवैज्ञानिक की नियुक्ति
संवाद आधारित वातावरण“Talk Circles” और “Peer Support” जैसी पहल
रिपोर्टिंग तंत्रऑनलाइन और गोपनीय रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म
संस्थागत निरीक्षणसालाना मानसिक स्वास्थ्य ऑडिट

निष्कर्ष: एक राष्ट्रीय चेतावनी की घड़ी

भारत की जनसांख्यिकीय संपदा (Demographic Dividend) तभी लाभदायक बन सकती है, जब उसका मानसिक स्वास्थ्य भी सशक्त हो। सुप्रीम कोर्ट का यह हस्तक्षेप केवल दिशानिर्देश नहीं है, बल्कि एक सामूहिक जागृति का आह्वान है। छात्र आत्महत्या केवल व्यक्तिगत त्रासदी नहीं, बल्कि संस्थागत विफलता का आईना है।

अभ्यास प्रश्न (Practice Questions):

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims):

Q.  भारत में छात्रों की आत्महत्या से संबंधित हालिया घटनाओं एवं नीतिगत प्रतिक्रियाओं के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

  1. MANODARPAN पहल शिक्षा मंत्रालय द्वारा मानसिक स्वास्थ्य सहायता हेतु शुरू की गई थी।
  2. सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी 15 दिशानिर्देश केवल NEET परीक्षार्थियों के लिए बाध्यकारी हैं।
  3. UMMEED Guidelines आत्महत्या की रोकथाम हेतु 6 सिद्धांतों पर आधारित हैं।

उपयुक्त विकल्प चुनिए:
(a) केवल 1 और 2 सही हैं
(b) केवल 1 और 3 सही हैं
(c) केवल 2 और 3 सही हैं
(d) सभी कथन सही हैं

सही उत्तर: (b) केवल 1 और 3 सही हैं

मुख्य परीक्षा (Mains):

Q. छात्र आत्महत्या को एक संस्थागत विफलता मानते हुए, हालिया सुप्रीम कोर्ट दिशानिर्देशों की समीक्षा कीजिए। (10 Marks, 150 Words)

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