यूपीएससी प्रासंगिकता
● GS पेपर 3 (अर्थव्यवस्था): विकास, ऊर्जा सुरक्षा, डिजिटल अर्थव्यवस्था, पीएलआई, सेमीकंडक्टर प्रोत्साहन।
● GS पेपर 2 (शासन): डीबीटी के माध्यम से कल्याणकारी वितरण, समावेशी विकास, सहकारी संघवाद। ● निबंध: “समानता के बिना विकास खोखला है”; “भारत का आर्थिक मंथन: अवसर और चुनौतियाँ”।
चर्चा में क्यों?
भारत ने 2025 की पहली तिमाही (Q1) में 7.8% GDP वृद्धि दर्ज की, जो दुनिया की सबसे तेज़ दरों में से एक है (MoSPI)। मई 2025 में S&P Global ने भारत की क्रेडिट रेटिंग आउटलुक को स्थिर से बदलकर सकारात्मक कर दिया। इसका कारण है कि भारत की विकास क्षमता मज़बूत मानी जा रही है।
● ऊर्जा सुरक्षा, डिजिटल तकनीक और सेमीकंडक्टर उत्पादन में चल रहे बड़े सुधार भारत की अर्थव्यवस्था की दिशा तय कर रहे हैं।
● भारत का लक्ष्य है कि 2027 तक $5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बने। लेकिन इसके साथ ही यह बहस भी चल रही है कि विकास टिकाऊ हो, सबको बराबरी का लाभ मिले और ऊर्जा व्यवस्था को साफ-सुथरे विकल्पों की ओर बदला जाए।

पृष्ठभूमि: संकट से नवीकरण की ओर
1. 1991 का आर्थिक संकट → उदारीकरण और वैश्विक जुड़ाव
● 1991 में भारत को गंभीर भुगतान संतुलन संकट (Balance of Payments Crisis) का सामना करना पड़ा। उस समय विदेशी मुद्रा भंडार केवल दो हफ्तों के आयात के लिए ही पर्याप्त था।
● इस स्थिति ने भारत को मजबूर किया कि वह उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG सुधार) अपनाए।
● परिणाम: भारत की अर्थव्यवस्था वैश्विक बाज़ार से जुड़ गई और व्यापार, निवेश तथा विकास के नए रास्ते खुल गए।
2. 2008 का वैश्विक वित्तीय संकट → मजबूती की परीक्षा
2008 में Lehman Brothers कंपनी के ध्वस्त होने से पूरी दुनिया में वित्तीय संकट फैल गया। अमेरिका और यूरोप जैसे विकसित देश गहरी मंदी (Recession) में चले गए। लेकिन भारत पर असर कम पड़ा क्योंकि:
- भारत की घरेलू मांग मजबूत थी।
- भारतीय बैंकों का जोखिमभरे विदेशी निवेशों से जुड़ाव बहुत कम था।
● परिणाम: भारत ने सकारात्मक वृद्धि बनाए रखी और अपनी आर्थिक मजबूती साबित की।
3. 2020 का COVID-19 महामारी → तेज़ गिरावट, त्वरित सुधार
2020 में राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण भारत की GDP में तेज़ गिरावट आई। लेकिन सुधार कई देशों की तुलना में तेज़ रहा, क्योंकि:
- आत्मनिर्भर भारत पैकेज ने उद्योगों और कमजोर वर्गों को सहारा दिया।
- डिजिटल माध्यम (जैसे UPI और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स) ने लॉकडाउन के दौरान भी अर्थव्यवस्था को चलते रहने में मदद की।
● परिणाम: भारत का सुधार कई विकसित देशों से अधिक मज़बूत रहा।
4. वर्तमान समय (2020 का दशक) → संकट नहीं, बल्कि नवीनीकरण
पहले के दौर में भारत को संकट झेलकर बदलाव करना पड़ा, लेकिन आज का दौर अलग है। अब भारत संकट से जूझ नहीं रहा, बल्कि खुद को नए रूप में ढालकर मज़बूत बना रहा है।
इस नवीनीकरण के प्रमुख कारण हैं:
- डिजिटल सुधार (UPI, आधार, GST, ONDC)।
- बुनियादी ढाँचे में बढ़ोतरी (सड़क, रेलवे, बंदरगाह, नवीकरणीय ऊर्जा)।
- ऊर्जा में विविधीकरण (सौर ऊर्जा, ग्रीन हाइड्रोजन, इलेक्ट्रिक वाहन)।
- भू-राजनीतिक स्थिति (बहुध्रुवीय दुनिया में भारत एक भरोसेमंद साझेदार के रूप में उभर रहा है)।
सरल शब्दों में, पहले भारत पर संकट आने से बदलाव करना पड़ा, लेकिन अब भारत खुद ही अवसर का उपयोग करके अपनी ताकत और भविष्य को नया रूप दे रहा है।
प्रमुख शब्द- ● आर्थिक मंथन: इसका मतलब है कि जब बड़े-बड़े झटके या चुनौतियाँ आती हैं (जैसे 1991 का संकट या COVID-19 महामारी), तो वे केवल अस्थायी समाधान नहीं लाते, बल्कि अर्थव्यवस्था की संरचना में गहरे और स्थायी बदलाव कर देते हैं। यही बदलाव लंबे समय तक टिकाऊ सुधार और विकास का आधार बनते हैं। ● विकास का अमृत: यह विचार समुद्र मंथन की कथा से लिया गया है, जहाँ मंथन के बाद अमृत निकला था। उसी तरह, कठिन आर्थिक सुधारों और संघर्षों के बाद जो परिणाम निकलते हैं, वे देश को स्थायी और लाभकारी विकास (Sustaining Growth) का अमृत प्रदान करते हैं। |
वर्तमान आर्थिक प्रदर्शन
1. सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि
● सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के अनुसार, भारत ने FY2025 की पहली तिमाही (Q1) में 7.8% GDP वृद्धि दर्ज की।
● यह वृद्धि दर्शाती है कि वैश्विक आर्थिक सुस्ती के बावजूद भारत अभी भी दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था बना हुआ है।
इसका मतलब है कि भारत की घरेलू मांग मज़बूत है और संरचनात्मक सुधारो का असर दिखाई दे रहा है।
2. सकल मूल्य वर्धन (GVA)
यह वृद्धि सभी क्षेत्रों में फैली हुई है:
● कृषि: जलवायु चुनौतियों के बावजूद, खाद्यान्न उत्पादन और ग्रामीण मांग से स्थिर वृद्धि।
● उद्योग/निर्माण : PLI योजना, Make in India अभियान और निर्यात प्रतिस्पर्धा से बढ़ावा।
● सेवाएँ : IT, वित्तीय सेवाएँ, पर्यटन और लॉजिस्टिक्स में तेज़ विस्तार।
इसका मतलब है कि सुधार केवल एक क्षेत्र पर निर्भर नहीं है, बल्कि संतुलित और विविधीकृत है।
3.वैश्विक तुलना
भारत की वृद्धि अन्य देशों से कहीं आगे है:
● चीन: प्रॉपर्टी मार्केट संकट और कमज़ोर खपत के कारण वृद्धि 5% से नीचे।
● विकसित देश (अमेरिका/यूरोप): केवल 1–2% की दर पर अटके हुए, महँगाई, ऊर्जा संकट और सख़्त मौद्रिक नीतियों से प्रभावित।
भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था का इंजन माना जा रहा है, जिससे निवेशक और वैश्विक सप्लाई चेन भारत की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
4. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और बाजार
● FY2024 में शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) $32 बिलियन रहा, जो दर्शाता है कि भू-राजनीतिक अस्थिरता के बावजूद वैश्विक निवेशकों का भारत पर भरोसा बना हुआ है।
● भारतीय शेयर बाज़ार (Sensex, Nifty) रिकॉर्ड ऊँचाइयों पर पहुँचे, क्योंकि:
- विकास की संभावनाओं को लेकर उत्साह,
- व्यापक आर्थिक संकेतकों (Macroeconomic Indicators) में स्थिरता,
- खुदरा निवेशकों (Retail Investors) की बढ़ती भागीदारी।
FDI और बाज़ार दोनों ही यह दिखाते हैं कि भारत की दीर्घकालिक आर्थिक क्षमता पर विश्वास मज़बूत है।
ऊर्जा सुरक्षा: विकास की आधारशिला
1. ऊँची ऊर्जा मांग
● भारत, चीन और अमेरिका के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है।
● अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, भारत की ऊर्जा मांग 2040 तक हर साल लगभग 3% की दर से बढ़ेगी। इसके पीछे मुख्य कारण हैं:
- तेजी से बढ़ता शहरीकरण,
- बढ़ता औद्योगिकीकरण,
- आय बढ़ने के साथ प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत में इज़ाफा।
यही कारण है कि भारत की GDP वृद्धि बनाए रखने के लिए ऊर्जा सबसे केंद्रीय कारक है।
2. तेल और गैस: पारंपरिक आधार
● घरेलू खोज : ओपन एकरेज लाइसेंसिंग पॉलिसी (OALP) के तहत ONGC और निजी कंपनियाँ गहरे समुद्री क्षेत्रों में तेल और गैस खोज रही हैं।
● रूसी तेल आयात : यूक्रेन युद्ध के बाद भारत ने सस्ता रूसी कच्चा तेल खरीदकर अपने स्रोतों को विविध बनाया।
- लाभ: सस्ता तेल → आयात बिल कम और महँगाई पर नियंत्रण।
- चिंता: पश्चिमी देशों (खासकर अमेरिका और यूरोप) से भू-राजनीतिक दबाव।
यह दिखाता है कि भारत आर्थिक लाभ और भू-राजनीति के बीच संतुलन बनाकर ऊर्जा नीति चला रहा है।
3. नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बढ़त
भारत ने हरित ऊर्जा के बड़े लक्ष्य तय किए हैं:
● 2030 तक 500 GW गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता का लक्ष्य।
● सौर और पवन ऊर्जा क्षमता में तेजी से वृद्धि, जिससे भारत दुनिया के शीर्ष 5 देशों में शामिल है।
● जैव ईंधन : 2025 तक पेट्रोल में 20% एथेनॉल मिश्रण (2024 तक यह स्तर 15% हो चुका है – MoPNG)।
- इससे तेल आयात पर निर्भरता घटती है और किसानों को भी सहारा मिलता है।
नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार भारत को स्वच्छ और विविध ऊर्जा टोकरी (energy basket) उपलब्ध कराता है।
4. चुनौतियाँ
● आयात पर निर्भरता: भारत अभी भी अपनी ज़रूरत का 85% से अधिक कच्चा तेल आयात करता है, जिससे वह वैश्विक तेल कीमतों के झटकों के प्रति बेहद संवेदनशील है।
● सामर्थ्य बनाम हरित परिवर्तन
- जीवाश्म ईंधन अभी कम दाम पर उपलब्ध हैं, लेकिन लंबे समय में टिकाऊ नहीं।
- नवीकरणीय ऊर्जा ढाँचा (Renewable Infrastructure) तैयार करने में शुरुआत में भारी निवेश की ज़रूरत होती है।
● ग्रिड एकीकरण : सौर और पवन जैसी अनियमित ऊर्जा को बिजली ग्रिड में संतुलित करना अभी चुनौती है।
भारत को अपनी विकास ज़रूरतों और जलवायु प्रतिबद्धताओं के बीच सावधानी से संतुलन बनाना होगा।
सुधार और नए विकास इंजन
1. डिजिटल अर्थव्यवस्था: भारत का परिवर्तन चालक
● UPI क्रांति: 2025 में UPI लेन-देन प्रति माह 14 अरब से अधिक हो गए। आज यहाँ तक कि ठेला लगाने वाले विक्रेता भी QR कोड से भुगतान ले रहे हैं।
● आधार + DBT: आधार से जुड़ा प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) 40+ करोड़ लाभार्थियों को बिना किसी लीकेज के सब्सिडी और योजनाओं का पैसा पहुँचाता है।
- उदाहरण: LPG सब्सिडी, पीएम-किसान योजना, पेंशन भुगतान।
● इंडिया स्टैक निर्यात: फिलीपींस, सिंगापुर जैसे देश भारत का डिजिटल मॉडल अपना रहे हैं।
भारत डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर का वैश्विक नेता बनकर उभर रहा है।
2. सेमीकंडक्टर मिशन: तकनीकी आत्मनिर्भरता की ओर
● भारत सेमीकंडक्टर मिशन (ISM): चिप निर्माण को बढ़ावा देने के लिए $10 अरब का प्रोत्साहन पैकेज।
● माइक्रॉन का $2.7 अरब का संयंत्र (गुजरात, 2024): यह एक प्रमुख निवेश है।
● महत्व :
- सेमीकंडक्टर को “डिजिटल युग का तेल” कहा जाता है।
- अभी भारत अधिकांश चिप्स ताइवान और दक्षिण कोरिया से आयात करता है।
3. अवसंरचना और लॉजिस्टिक्स: विकास की नींव
● पीएम गतिशक्ति योजना: रेल, सड़क, बंदरगाह, हवाईअड्डे और पाइपलाइन को एक ही डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर जोड़ने की मास्टर प्लान।
● वर्तमान चुनौती: भारत में लॉजिस्टिक्स लागत GDP का 13–14% है, जबकि चीन में केवल 8–10%।
● लक्ष्य: लागत घटाना ताकि निर्यात और विनिर्माण अधिक प्रतिस्पर्धी बन सके।
- उदाहरण: तेज़ मालवाहक गलियारे , बेहतर बंदरगाह संपर्क, EV चार्जिंग इंफ्रा।
4. उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI): विनिर्माण को बढ़ावा
● PLI योजना 14 प्रमुख क्षेत्रों (इलेक्ट्रॉनिक्स, टेक्सटाइल्स, फ़ार्मा, EVs) को कवर करती है।
● सफलता का उदाहरण: FY2024 में मोबाइल निर्यात $16 अरब पार कर गए (Apple और Samsung ने उत्पादन भारत में शिफ्ट किया)।
● लक्ष्य: वर्तमान में GDP में विनिर्माण का हिस्सा लगभग 17% है, जिसे 2030 तक 25% तक बढ़ाना है।
सामाजिक समावेशन और गरीबी उन्मूलन
● गरीबी में कमी: नीति आयोग (2024) के अनुसार 2015 से 2021 के बीच लगभग 13.5 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले।
● खाद्य सुरक्षा: कोविड काल में शुरू हुई प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) के तहत 81 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन मिला और यह योजना आज भी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर रही है।
● स्वास्थ्य और शिक्षा: आयुष्मान भारत और नई शिक्षा नीति 2020 जैसी योजनाएँ समाज में समावेशन और समान अवसर देने की दिशा में काम कर रही हैं। फिर भी असमानता गहरी है।
● ऑक्सफैम रिपोर्ट 2023: भारत की कुल संपत्ति का 77% हिस्सा केवल शीर्ष 10% लोगों के पास है। इसीलिए जरुरी है कि विकास के लाभ का समान बंटवारा हो।
आगे की प्रमुख चुनौतियाँ
1. ऊर्जा और पर्यावरण
● भारत सौर, पवन और ग्रीन हाइड्रोजन में निवेश कर रहा है, लेकिन बिजली की बढ़ती मांग पूरी करने के लिए कोयले पर निर्भरता अभी भी बढ़ रही है।
- उदाहरण: 2024 की भीषण गर्मियों में बिजली की कमी के कारण कोयला आयात बढ़ाना पड़ा।
● वायु प्रदूषण की लागत: विश्व बैंक का अनुमान है कि वायु प्रदूषण भारत को हर साल GDP का लगभग 8.5% नुकसान पहुँचाता है (स्वास्थ्य खर्च + उत्पादकता हानि)। - उदाहरण: दिल्ली-एनसीआर में स्मॉग से सांस की बीमारियाँ बढ़ीं, उड़ानों में रद्दीकरण हुआ और कामकाज पर असर पड़ा।
2. भू-राजनीतिक जोखिम
● रूसी तेल पर निर्भरता: यूक्रेन युद्ध के बाद भारत ने सस्ता रूसी तेल खरीदकर अरबों डॉलर बचाए, लेकिन इससे पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का खतरा और एक स्रोत पर ज़्यादा निर्भरता जैसी चुनौतियाँ खड़ी हुईं।
● वैश्विक सप्लाई चेन संकट: रेड सी संकट या ताइवान विवाद जैसी घटनाओं से निर्यात प्रभावित हुआ।
- उदाहरण: अमेरिका/यूरोप में मांग घटने से भारत का टेक्सटाइल निर्यात प्रभावित हुआ।
3. मानव पूंजी की कमी
● कौशल अंतर (Skill Gap): भारत की केवल 4.7% कार्यबल ही औपचारिक रूप से प्रशिक्षित है (MSDE 2023)। तुलना करें तो दक्षिण कोरिया में यह 96% और जापान में 80% है।
● शिक्षा की गुणवत्ता: सीखने के नतीजे कमजोर हैं।
- उदाहरण: ASER रिपोर्ट के अनुसार, कक्षा 5 के कई बच्चे कक्षा 2 का गणित तक हल नहीं कर पाते।
4. राजकोषीय दबाव
● सब्सिडी और कल्याणकारी खर्च: भोजन, उर्वरक और ईंधन पर भारी सब्सिडी ज़रूरी है, लेकिन इससे सरकार के संसाधनों पर बोझ पड़ता है।
● राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit): FY2025 बजट अनुमान के अनुसार यह GDP का 5.1% है।
- अधिक उधारी लेने से शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढाँचे में निवेश की गुंजाइश कम हो जाती है।
आगे की राह
1. संतुलित विकास
● भारत को केवल IT/सेवा क्षेत्र पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। विनिर्माण (PLI, मेक इन इंडिया के माध्यम से) सेवाओं का पूरक बनकर बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा कर सकता है।
● उदाहरण: FY24 में मोबाइल निर्यात 16 अरब डॉलर तक पहुँचे, जिससे यह साबित हुआ कि विनिर्माण IT-सेवा क्षेत्र को और मज़बूत बना सकता है।
MSME सशक्तिकरण:
● MSMEs GDP में 30% योगदान और निर्यात में 48% योगदान देते हैं, लेकिन इन्हें ऋण और तकनीक की कमी का सामना करना पड़ता है।
● डिजिटल क्रेडिट प्लेटफ़ॉर्म और आसान GST अनुपालन इनके विकास को गति दे सकते हैं।
2. हरित परिवर्तन
स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा:
● सौर, EVs और ग्रीन हाइड्रोजन को तेज़ी से अपनाना ज़रूरी है। भारत ने 2030 तक 500 GW गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता का लक्ष्य रखा है।
● उदाहरण: भारत का एथेनॉल मिश्रण 2024 में 15% तक पहुँच गया, जबकि लक्ष्य 2025 तक 20% का है।
कार्बन मूल्य निर्धारण और प्रोत्साहन:
● नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने वाली कंपनियों के लिए कार्बन बाज़ार और हरित कर प्रोत्साहन शुरू किए जाने चाहिए।
● यह भारत के 2070 तक नेट ज़ीरो लक्ष्य के अनुरूप है।
3. समावेशी नीतियाँ
ग्रामीण अवसंरचना + कौशल विकास:
● कृषि मूल्य श्रृंखला (Agri-Value Chain) को मजबूत करने के लिए ग्रामीण संपर्क, भंडारण और लॉजिस्टिक्स पर ध्यान देना होगा।
● युवाओं को PMKVY और अप्रेंटिसशिप मॉडल के माध्यम से कौशल प्रशिक्षण देना होगा।
लैंगिक संतुलित कार्यबल:
● महिला श्रम शक्ति भागीदारी अभी केवल 37% (PLFS 2023) है।
● इसे बढ़ाने के लिए बाल देखभाल सहायता, लचीली कार्य व्यवस्था और महिला-नेतृत्व वाले स्वयं सहायता समूहों (SHGs) जैसी नीतियाँ अपनानी होंगी।
4. संस्थागत सशक्तिकरण
न्यायिक, नियामक और वित्तीय सुधार:
● विवादों के तेज़ निपटान (व्यावसायिक न्यायालय, मध्यस्थता) की ज़रूरत है।
● अवसंरचना और MSMEs को बेहतर ऋण प्रवाह के लिए बैंकिंग सुधार ज़रूरी हैं।
सहकारी संघवाद:
● संसाधनों के आवंटन में राज्यों को अधिक भूमिका दी जानी चाहिए। (जैसे GST परिषद इसका सफल मॉडल है।)
● उदाहरण: ऊर्जा परिवर्तन कोष से झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे कोयला-निर्भर राज्यों को सशक्त बनाना चाहिए।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न-
प्रश्न: “आर्थिक मंथन विकास का अमृत है” वाक्यांश भारत के संकटों को अवसरों में बदलने की दिशा को दर्शाता है। हाल के आर्थिक प्रदर्शन संकेतकों और संरचनात्मक सुधारों के संदर्भ में इस कथन का परीक्षण कीजिए। (15 अंक)
SOURCE- THE HINDU
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