यूपीएससी पेपर के लिए प्रासंगिकता ● सामान्य अध्ययन पेपर II: स्वास्थ्य, सरकारी नीतियों और नियामक ढाँचों से संबंधित मुद्दे। ● सामान्य अध्ययन पेपर III: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (जैव प्रौद्योगिकी, माइक्रोबायोम अनुसंधान), रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर)। ● निबंध पेपर: स्वास्थ्य एवं विकास; भारत में मानसिक स्वास्थ्य। |
प्रसंग :
● एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेंस (AMR) को दुनिया भर में एक बड़ा सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरा माना जाता है। एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेंस का मतलब है कि जब लोग बार-बार या गलत तरीके से एंटीबायोटिक लेते हैं, तो बैक्टीरिया दवाओं के खिलाफ मजबूत हो जाते हैं और दवाएँ असर करना बंद कर देती हैं। लेकिन AMR का असर सिर्फ संक्रमण और इलाज तक नहीं है, इसका मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव भी है, जिस पर अभी तक कम ध्यान दिया गया है।
● हमारे शरीर में एक सिस्टम होता है – गट–ब्रेन एक्सिस (Gut–Brain Axis) – जो पाचन तंत्र और दिमाग को आपस में जोड़ता है। रिसर्च में पाया गया है कि जब आंतों का संतुलन बिगड़ता है, तो इसका सीधा असर दिमाग पर पड़ता है और यह चिंता, अवसाद, और याददाश्त कम होना जैसी समस्याओं से जुड़ जाता है।
● भारत, जो दुनिया के सबसे बड़े एंटीबायोटिक उपभोक्ताओं में से एक है, अब दोहरी चुनौती का सामना कर रहा है- AMR (दवाओं का असर कम होना), मानसिक स्वास्थ्य की नाज़ुक स्थिति
भारत में एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन :
Antimicrobial Resistance (AMR): एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस उस स्थिति को कहते हैं जब सूक्ष्मजीव जैसे – बैक्टीरिया, वायरस, फंगस और परजीवी – अपने आप को इस तरह बदल लेते हैं कि वे उन दवाइयों (एंटीबायोटिक, एंटीवायरल, एंटीफंगल आदि) के असर से बच जाते हैं, जो पहले उन्हें नष्ट करने या उनकी वृद्धि रोकने में प्रभावी थीं। |
● भारत में ओवर-द-काउंटर बिक्री (यानी बिना डॉक्टर की पर्ची के दवा मिल जाना), खुद से दवा लेना (Self-medication), और कमजोर नियम-कानून की वजह से एंटीबायोटिक का ज़रूरत से ज़्यादा और बिना नियंत्रण के इस्तेमाल होता है।
● भारत में साल 2021 में 2,67,000 मौतें एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेंस (AMR) से जुड़ी हुई दर्ज की गईं। अनुमान है कि यह संख्या 2030 तक बढ़कर 12 लाख (1.2 million) तक पहुँच सकती है (IHME डेटा)।
● भारत में इस्तेमाल होने वाले करीब 50% एंटीबायोटिक ऐसे फॉर्मूलेशन होते हैं जो अप्रूव्ड (स्वीकृत) नहीं हैं (Lancet 2022 रिपोर्ट)।
Gut–Brain Axis और मानसिक स्वास्थ्य
● हमारे पेट (आंत) में मौजूद सूक्ष्म जीवों (Gut microbiome) का सीधा असर दिमाग पर पड़ता है। ये ही शरीर में ज़रूरी न्यूरोट्रांसमीटर जैसे सेरोटोनिन और डोपामिन बनाने में मदद करते हैं। ये रसायन मूड, तनाव को नियंत्रित करने और सोचने-समझने की क्षमता के लिए बहुत ज़रूरी होते हैं।
● अगर एंटीबायोटिक दवाइयों का ज़्यादा इस्तेमाल हो जाए, तो आंतों के अच्छे बैक्टीरिया की विविधता कम हो जाती है (जिसे dysbiosis कहते हैं)। इसका असर मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है और यह चिंता, अवसाद, और याददाश्त की कमजोरी से जुड़ा पाया गया है।
● भारत के बड़े संस्थान जैसे NIMHANS और AIIMS की रिसर्च बताती है कि आंत का स्वास्थ्य और मानसिक बीमारियों के बीच गहरा संबंध है।
एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (एएमआर) के स्वास्थ्य प्रभाव ➢ AMR की वजह से ऐसी बीमारियाँ हो जाती हैं जिनका इलाज करना बेहद मुश्किल या असंभव हो जाता है। ➢ दवा प्रतिरोधी रोगजनकों जैसे MDR-TB (Multi-Drug Resistant Tuberculosis) और MRSA (Methicillin-resistant Staphylococcus aureus) तेजी से बढ़ रहे हैं। ➢ सर्जरी, अंग प्रत्यारोप, कैंसर का इलाज और प्रसव जैसे मामलों में संक्रमण का खतरा बहुत बढ़ जाता है क्योंकि कई बार दवाइयाँ असर नहीं करतीं। आर्थिक असर ➢ मरीजों के इलाज का खर्च बढ़ जाता है क्योंकि उन्हें महंगी और दूसरी पंक्ति की (second-line) दवाओं की ज़रूरत पड़ती है। ➢ अस्पताल में ज्यादा दिन रुकना पड़ता है और कई बार बार-बार इलाज कराना पड़ता है। ➢ लंबे समय तक बीमारी रहने से कामकाज और उत्पादकता (productivity) कम हो जाती है। ➢ विश्व बैंक का अनुमान है कि 2050 तक दुनिया को $100 ट्रिलियन तक का नुकसान AMR की वजह से उठाना पड़ सकता है। सामाजिक असर ➢ गरीब परिवारों के लिए इलाज का खर्च उठाना मुश्किल हो जाता है, जिससे गरीबी और असमानता बढ़ती है। ➢ लोगों का स्वास्थ्य सेवाओं पर भरोसा कम होने लगता है। सुरक्षा पर असर ➢ यह एक बड़ा सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा संकट है, जो महामारी जितना खतरनाक साबित हो सकता है। ➢ दवा-रोधी जीवाणु आसानी से देशों की सीमाओं को पार कर फैल सकते हैं, जिससे यह वैश्विक समस्या बन जाती है। ➢ भारत में नियमों की कमी और एंटीबायोटिक की ज्यादा खपत की वजह से यह खतरा और भी गंभीर है।
उभरता हुआ क्षेत्र: साइकोबायोटिक्स
● आजकल एक नया क्षेत्र तेजी से उभर रहा है जिसे साइकोबायोटिक्स कहा जाता है। इसमें प्रोबायोटिक्स और प्रीबायोटिक्स का इस्तेमाल मानसिक बीमारियों के लक्षणों को कम करने के लिए किया जाता है।
➢ प्रोबायोटिक्स = अच्छे बैक्टीरिया जिन्हें बाहर से आंत में पहुँचाया जाता है ताकि पेट और दिमाग का संतुलन सही रहे।
➢ प्रीबायोटिक्स = ऐसा आहार (खाना) जो पहले से मौजूद अच्छे बैक्टीरिया को पोषण देकर उन्हें मजबूत बनाता है।
● 2020 में फ्रंटियर्स इन साइकियाट्री में छपी एक अध्ययन-समीक्षा में पाया गया कि प्रीबायोटिक्स का सेवन हल्के से मध्यम अवसाद वाले मरीजों में लक्षणों को काफी हद तक कम करता है।
● भारतीय भोजन शैली (जैसे दही, इडली, डोसा, अचार) में पहले से ही प्राकृतिक प्रोबायोटिक्स मौजूद होते हैं। इसलिए यह भारत के लिए एक सांस्कृतिक रूप से उपयुक्त और आसान समाधान हो सकता है।
चुनौतियाँ
● आम लोगों में Gut–Brain संबंध को लेकर जागरूकता बहुत कम है।
● ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों में बिना पर्ची के आसानी से एंटीबायोटिक मिलना एक बड़ी समस्या है।
● निजी डॉक्टर और दवा दुकानों को ज़्यादा प्रिस्क्रिप्शन लिखने से आर्थिक लाभ होता है, इसलिए ओवर-प्रिस्क्रिप्शन आम है।
● Prescription-only नियमों का पालन करवाने के लिए नियम-कानून की सख़्त निगरानी नहीं होती।
● भारत में मानसिक स्वास्थ्य का ढाँचा कमजोर है, जिससे समस्या और गंभीर हो जाती है।
आगे की राह
जन-जागरूकता अभियान
➢ राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और आयुष्मान भारत में आंत-मस्तिष्क स्वास्थ्य साक्षरता (Gut–Brain Health Literacy) को शामिल करना।
➢ स्कूल पाठ्यक्रम में माइक्रोबायोम साइंस जोड़ना और मीडिया कैंपेन चलाकर दवा के गलत उपयोग के खतरे बताना।
नियामक सुधार
➢ CDSCO (Central Drugs Standard Control Organization) द्वारा यह सुनिश्चित करना कि एंटीबायोटिक केवल डॉक्टर की पर्ची से ही मिले।
➢ नियम तोड़ने वालों पर सख़्त कार्रवाई और INSAR जैसे निगरानी तंत्र को मजबूत करना।
चिकित्सा सुधार
➢ मेडिकल शिक्षा में एंटीबायोटिक प्रबंधन यानी दवाओं के जिम्मेदार इस्तेमाल को शामिल करना।
➢ मानसिक बीमारियों की जाँच में पेट से जुड़े स्वास्थ्य को भी शामिल करना।
➢ इलाज का हिस्सा बनाकर पोषण परामर्श को बढ़ावा देना।
अनुसंधान और नवाचार
➢ भारतीय आबादी को ध्यान में रखकर माइक्रोबायोम रिसर्च को बढ़ावा देना।
➢ Psychobiotic Therapies को सस्ती मानसिक स्वास्थ्य रणनीति के रूप में खोजना।
निष्कर्ष
भारत इस समय एक गंभीर मोड़ पर खड़ा है, जहाँ एंटीबायोटिक का अंधाधुंध इस्तेमाल न केवल Antimicrobial Resistance (AMR) को तेज़ी से बढ़ा रहा है बल्कि चुपचाप मानसिक स्वास्थ्य की मजबूती को भी कमजोर कर रहा है।
इसलिए ज़रूरी है कि Gut–Brain Axis को स्वास्थ्य नीति का अहम हिस्सा माना जाए। शिक्षा, नियामक सुधार, विभिन्न क्षेत्रों के सहयोग और पारंपरिक ज्ञान के प्रयोग से भारत इस दोहरी चुनौती का समाधान निकाल सकता है और शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य सुरक्षा का मजबूत ढाँचा तैयार कर सकता है।
प्रारंभिक अभ्यास प्रश्न प्रश्न: भारत में एंटीबायोटिक के दुरुपयोग और मानसिक स्वास्थ्य के बीच संबंध के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें: 1. एंटीबायोटिक के अत्यधिक उपयोग के कारण आंत की सूक्ष्मजीव विविधता (डिस्बिओसिस) में व्यवधान चिंता, अवसाद और संज्ञानात्मक हानि से जुड़ा है। 2. साइकोबायोटिक्स शब्द उन एंटीबायोटिक दवाओं को संदर्भित करता है जो हानिकारक आंत बैक्टीरिया को दबाकर मानसिक लक्षणों को कम करते हैं। 3. फ्रंटियर्स इन साइकियाट्री के 2020 के एक अध्ययन के अनुसार, प्रोबायोटिक पूरकता अवसादग्रस्त लक्षणों में कमी से जुड़ी थी, विशेष रूप से हल्के से मध्यम मामलों में। उपरोक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं? A. केवल 1 और 2 B. केवल 2 और 3 C. केवल 1 और 3 D. 1, 2 और 3 उत्तर: C (केवल 1 और 3) मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न प्रश्न: “भारत में एंटीबायोटिक दवाओं के अत्यधिक उपयोग ने रोगाणुरोधी प्रतिरोध और बिगड़ते मानसिक स्वास्थ्य का दोहरा संकट पैदा कर दिया है।” एंटीबायोटिक के दुरुपयोग और आंत-मस्तिष्क अक्ष के बीच संबंध पर चर्चा करें। इस चुनौती से निपटने के लिए उपयुक्त नीतिगत उपाय सुझाएँ। (250 शब्द) स्रोत: द हिंदू |