चर्चा में क्यों :–
हाल ही में भारत के केरल राज्य में वेस्ट नाइल वायरस से होने वाले वेस्ट नाइल बुखार के मामले सामने आए हैं।वेस्ट नाइल वायरस के कारण ही वेस्ट नाइल बुखार होता है। यह एक संक्रामक रोग है जो संक्रमित मच्छर के काटने से लोगों में फैलता है।
वेस्ट नाइल वायरस :– इस वायरस का पहला मामला 1937 में देखा गया। वेस्ट नाइल वायरस का पहला मामला अफ्रीकी महाद्वीप के युगांडा में पश्चिमी नाइल नामक पहचाना गया था ।
वेस्ट नाइल नामक स्थान पर पाए जाने के कारण इस वायरस को वेस्ट नाइल वायरस नाम दिया गया।
भारत में इस वायरस का इतिहास :–
WNV वायरस की पहली बार जानकारी केरल राज्य के अलाप्पुझा में 2006 में मिली। वर्ष 2011 में भी इस वायरस को केरल के ही एर्नाकुलम में इसे पाया गया ।
यह वायरस फ्लेवीवायरस जीनस फैमिली से संबंधित है। यह सिंगल स्ट्रैंडेड RNA वायरस है जो मच्छर जनित होता है ।
इस रोग के वाहक संक्रमित मच्छर होते है जिनके द्वारा विशेषकर जीनस क्यूलेक्स मच्छरों के काटने से यह फैलता है।
संक्रमण चक्र:
संक्रमण के वाहक क्यूलेक्स नामक मच्छरों की प्रजाति है।
पक्षी इस विषाणु के मेज़बान के रूप में योगदान प्रदान करते हैं।
यह वायरस पक्षियों , इंसानों और जानवरों में संक्रमित मच्छर के द्वारा फैलता हैं।
जब यह मच्छर अपने भोजन के लिए किसी संक्रमित पक्षी को काटता है तो इस दौरान मच्छर भी संक्रमित हो जाता है
WNV विषाणु कुछ समय तक संक्रमित मच्छरों के खून में रहता है इसके बाद यह उनकी लार ग्रंथियां में पहुंच जाता है और जब यही संक्रमित मच्छर इंसानों काटते हैं तो यह विषाणु इंसानों में तथा जानवरों में प्रवेश कर जाता है
लक्षण: इस विषाणु से संक्रमित 80% लोगों में यह रोग स्पर्शोन्मुख है। अर्थात उन्हें महसूसी नहीं होता कि उनके अंदर यह विषाणु है
जबकि शेष 20% मामलों में निम्न लिखित लक्षण देखने को मिलते है :– वेस्ट नील फीवर या गंभीर WNV बुखार, मतली, शरीर में दर्द, सिरदर्द, थकान, दाने और सूजन ग्रंथियों जैसे लक्षणों के साथ देखा जाता है।
इलाज की सुविधा :– इस वायरस से संक्रमित व्यक्तियों के लिए अभी तक किसी भी प्रकार के तक का निर्माण नहीं किया गया है जबकि अगर कोई घोड़ा इस संक्रमण से संक्रमित होता है तो उसके लिए टीके उपलब्ध है