वैश्विक व्यवस्था में अमेरिका की अस्थिर भूमिका और भारत की रणनीतिक दिशा: एक बहुआयामी विश्लेषण

प्रासंगिकता:

GS Paper 2

  • भारत-अमेरिका संबंध (India-US Relations)
  • मल्टीपोलर वर्ल्ड ऑर्डर और भारत की भूमिका

GS Paper 3 – Economy, International Trade

  • वैश्वीकरण और संरक्षणवाद
  • भारतीय अर्थव्यवस्था की आंतरिक चुनौतियाँ

भूमिका (Introduction)

युक्त राज्य अमेरिका की नीतियाँ, विशेषकर डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में, एक उदार अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था से हटकर राष्ट्रवादी और संरक्षणवादी रुख अपनाने की ओर मुड़ गई हैं। इससे न केवल वैश्विक राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता को खतरा पहुँचा है, बल्कि भारत जैसे देशों के लिए रणनीतिक पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता भी उत्पन्न हुई है। भारत को इस परिवर्तनशील विश्व व्यवस्था में अपनी भूमिका को पुनः परिभाषित करते हुए बहुध्रुवीयता की ओर बढ़ना होगा।

ट्रंप युग की विदेश नीति: नव-राष्ट्रवाद और आर्थिक आक्रामकता

  1. आर्थिक लोकलुभावनवाद की नीति
  • वैश्वीकरण से ठगे गए अमेरिकी बहुमत को खुश करने के लिए ट्रंप ने एक आर्थिक युद्ध छेड़ा जिसमें विदेशी-विरोधी, नस्लवादी और संरक्षणवादी सोच की झलक दिखाई दी।
  • अमेरिका की यह नीति नवउदारवादी वैश्वीकरण की असफलताओं को ढकने का प्रयास मात्र है।
  • टैरिफ और प्रतिबंधों का राजनीतिक हथियार की तरह उपयोग
  • 70 से अधिक देशों पर टैरिफ, और 30 से अधिक पर प्रतिबंध लगाकर अमेरिका ने वस्तुओं, विचारों और लोगों की आवाजाही में बाधाएँ खड़ी कीं।
  • इससे वैश्विक मुक्त व्यापार प्रणाली पर सीधा प्रहार हुआ।

भू-राजनीतिक परिप्रेक्ष्य: अमेरिका की रणनीति और भारत की स्थिति

1. एकध्रुवीयता से बहुध्रुवीयता की ओर

  • ट्रंप की विदेश नीति ने पारंपरिक सहयोग को कमजोर कर भारत जैसे देशों को आत्मनिर्भर रणनीति विकसित करने पर विवश किया।
  • अमेरिका अब चीन को अपना प्राथमिक रणनीतिक विरोधी मानता है, और भारत को कभी-कभी केवल उसकी संतुलनकारी भूमिका के तौर पर देखता है।

2. भारत पर अप्रत्यक्ष दबाव और रणनीतिक भ्रम

  • अमेरिका द्वारा रूस-यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में भारत पर टैरिफ का दंडात्मक प्रयोग, बहुध्रुवीयता अपनाने वाले देशों पर दबाव की रणनीति को दर्शाता है।
  • यह स्पष्ट करता है कि अमेरिका की रणनीति सहयोग से अधिक नियंत्रण पर आधारित है।

आर्थिक आयाम: भारत की भेदभावपूर्ण स्थिति

  1. भारत को निशाना बनाते हुए असमान टैरिफ नीति
  • अमेरिकी टैरिफ नीतियाँ भारत के निर्यातक क्षेत्रों को सीधे प्रभावित कर रही हैं जैसे — कपड़ा, रत्न, धातु, ऑटो कंपोनेंट्स आदि।
  • अमेरिका द्वारा स्वयं कृषि, डेयरी और तंबाकू क्षेत्रों में भारी टैरिफ और सब्सिडी लागू की जाती हैं, लेकिन भारत को अपने कृषि सुरक्षा उपाय छोड़ने का दबाव डाला जाता है।
  • नव-उदारवाद की विफलताएँ और वैश्विक दक्षिण का संकट
  • वैश्विक दक्षिण के देशों ने नवउदारवादी वैश्वीकरण से अपेक्षित लाभ नहीं पाया है।
  • कर-नीति कटौती, संप्रभु ऋण का उच्च स्तर, और बहुपक्षीय संस्थाओं की कमजोरी ने असमानता को और बढ़ाया है।

भारत की रणनीतिक दिशा: प्रतिस्पर्धा और सहयोग का संतुलन

  1. सीमा सुरक्षा और कूटनीतिक रणनीति
  • भारत को अपनी उत्तरी सीमाओं की सुरक्षा करते हुए चीन और पाकिस्तान के बनते गठबंधन से सतर्क रहना होगा।
  • वर्तमान में भारत को सैन्य टकराव से बचकर रणनीतिक लचीलापन अपनाना आवश्यक है।
  • अमेरिकी असंगतियों का जवाब देने की आवश्यकता
  • भारत ने कई बार अमेरिकी दबाव में ईरान और वेनेजुएला से तेल आयात बंद किया, जबकि चीन ने यह व्यापार जारी रखा और टैरिफ से भी बचा रहा।
  • यह संदेश देता है कि ताकतवर राष्ट्र केवल शक्ति की भाषा समझते हैं, और भारत को अब अधिक आत्मनिर्भर व स्वाभिमानी नीति अपनानी होगी।

भारत की विदेश नीति की समीक्षा: मोदी सरकार की कूटनीति पर पुनर्विचार

  1. व्यक्तिगत कूटनीति और उसकी सीमाएँ
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की “व्यक्तिगत कूटनीति” और प्रवासी कार्यक्रमों पर निर्भरता ने भारत को रणनीतिक रूप से नुकसान पहुँचाया है।
  • भाजपा सरकार ने कई बार अमेरिकी समर्थन को गलत समझा और भारत की रणनीतिक उपयोगिता को आर्थिक आकार के साथ जोड़ दिया।
  • गुटनिरपेक्षता का आंशिक त्याग और उसके परिणाम
  • बहुध्रुवीयता की ओर बढ़ते विश्व में भारत ने आंशिक रूप से गुटनिरपेक्षता छोड़कर खुद को एक खेमे में खड़ा कर लिया, जिससे भारत का रणनीतिक स्वतंत्रता सीमित हो गई।

आंतरिक आर्थिक संरचना का सुदृढ़ीकरण: समय की माँग

  1. निर्माण, निवेश और नवाचार में गिरावट
  • भारत का विनिर्माण क्षेत्र 4 दशक के न्यूनतम स्तर पर है।
  • बेरोज़गारी दर अस्वीकार्य रूप से उच्च है, और वैज्ञानिक अनुसंधान में भी निवेश कम हो रहा है।
  • सार्वजनिक क्षेत्र का पुनर्गठन और आर्थिक सुधार
  • चीन की तरह भारत को भी रणनीतिक रूप से पीएसयू को पुनर्गठित करना चाहिए।
  • आर्थिक हितधारकों के विश्वास को पुनः बहाल करने के लिए सरकार को समावेशी नीतियाँ अपनानी होंगी।

नीति निर्माण में समावेश और सहमति की आवश्यकता

  1. बहुपक्षीय कूटनीति और रचनात्मक संवाद
  • घरेलू और वैश्विक स्तर पर द्विदलीय सहमति विकसित करनी होगी।
  • वैश्विक दक्षिण के साथ समन्वय बनाकर एक न्यायसंगत आर्थिक व्यवस्था की ओर कदम बढ़ाना होगा।
  • एकीकृत राष्ट्रीय दृष्टिकोण की आवश्यकता
  • पक्षपातपूर्ण नीतियों से हटकर सभी हितधारकों के साथ संपर्क स्थापित कर एक समग्र राष्ट्रीय दृष्टिकोण अपनाना अनिवार्य है।

निष्कर्ष (Conclusion)

ट्रंप की नीतियों ने वैश्विक व्यवस्था को जिस तरह प्रभावित किया है, वह भारत के लिए एक चेतावनी भी है और एक अवसर भी। भारत को चाहिए कि वह बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था का समर्थन करते हुए अपनी विदेश और आर्थिक नीतियों में दीर्घकालिक सोच और रणनीतिक स्पष्टता लाए। अपनी घरेलू कमजोरी को दूर करते हुए वैश्विक नेतृत्व की भूमिका के लिए खुद को तैयार करे।

UPSC MAINS PRACTICE QUESTION

प्रश्न:
“अमेरिका की बढ़ती संरक्षणवादी प्रवृत्ति और रणनीतिक अनिश्चितता के संदर्भ में भारत किस प्रकार अपने भू-राजनीतिक हितों और रणनीतिक स्वायत्तता के बीच संतुलन स्थापित कर सकता है? समालोचनात्मक विश्लेषण करें।”
(250 शब्द)

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