शिक्षा से सम्बन्धी व्यापक मॉड्यूलर सर्वेक्षण: 2025

प्रासंगिकता:

GS पेपर 2: शासन व्यवस्था, सामाजिक न्याय और शिक्षा

  • शिक्षा क्षेत्र में सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप
  • शिक्षा से संबंधित सामाजिक क्षेत्र की सेवाओं का विकास और प्रबंधन

GS पेपर 1 – भारतीय समाज

  • जनसंख्या, गरीबी और विकास संबंधी मुद्दे
  • सामाजिक असमानता और सामाजिक सशक्तिकरण

निबंध पत्र (Essay Paper)

  • “शिक्षा का निजीकरण: अवसर या चुनौती?”
  • “समावेशी शिक्षा: सामाजिक न्याय की कुंजी”
  • “समान शिक्षा, समान अवसर: क्या हम वास्तव में उस दिशा में बढ़ रहे हैं?”

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (एनएसएस) के 80वें दौर के तहत सीएमएस शिक्षा सर्वेक्षण किया गया , जिसका मुख्य उद्देश्य यह जानना था कि स्कूली शिक्षा में वर्तमान में पढ़ रहे छात्रों पर उनके परिवार कितना खर्च कर रहे हैं।

इस सर्वेक्षण के लिए पूरे भारत से 52,085 परिवारों और 57,742 छात्रों से जानकारी ली गई। यह जानकारी कंप्यूटर की मदद से लिए गए इंटरव्यू (CAPI पद्धति) के जरिए जुटाई गई।

मुख्य बातेंः

सरकारी स्कूलों में नामांकन का प्रमुख प्रतिशतः

भारत में स्कूली शिक्षा की व्यवस्था में सरकारी स्कूलों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। देशभर में कुल छात्रों के 55.9% हिस्से का नामांकन सरकारी स्कूलों में है, जो यह दर्शाता है कि अधिकांश परिवार अब भी शिक्षा के लिए सरकारी संस्थानों पर निर्भर हैं।

अगर हम ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों की तुलना करें तो यह अंतर और भी स्पष्ट हो जाता है:

  • ग्रामीण क्षेत्रों में, लगभग 66% छात्र सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे हैं, जो यह दिखाता है कि गांवों में सरकारी स्कूल ही मुख्य शिक्षा स्रोत हैं।
  • इसके विपरीत, शहरी क्षेत्रों में केवल 30.1% छात्र ही सरकारी स्कूलों में नामांकित हैं, क्योंकि वहां निजी स्कूलों की उपलब्धता और पसंद दोनों अधिक है।
  • इसके अलावा, देशभर में 31.9% छात्र निजी गैर-सहायता प्राप्त (मान्यता प्राप्त) स्कूलों में पढ़ते हैं। यह आंकड़ा शिक्षा के निजीकरण की ओर बढ़ते झुकाव को दर्शाता है, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में।
सरकारी और निजी स्कूलों में पाठ्यक्रम शुल्क के भुगतान में अंतर:
  • सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों में से केवल 26.7% छात्रों ने बताया कि उन्हें पाठ्यक्रम शुल्क देना पड़ा।
  • इसके मुकाबले, गैर-सरकारी (निजी) स्कूलों में पढ़ने वाले 95.7% छात्रों को पाठ्यक्रम शुल्क चुकाना पड़ा।

अगर हम गैर-सरकारी स्कूलों को और बारीकी से देखें तो:

  • शहरी क्षेत्रों के निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों में पढ़ने वाले 98% छात्रों ने पाठ्यक्रम शुल्क का भुगतान किया।
  • वहीं ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों में यह प्रतिशत 25.3% रहा।

यह अंतर दिखाता है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा अपेक्षाकृत सस्ती है, जबकि निजी स्कूलों में पढ़ाई का खर्च काफी अधिक होता है, विशेष रूप से शहरी इलाकों में।

सरकारी और गैर-सरकारी स्कूलों में प्रति छात्र खर्च में अंतर
  • सरकारी स्कूलों में 2025-26 के चालू शैक्षणिक वर्ष के दौरान परिवारों द्वारा प्रति छात्र औसतन ₹2,863 खर्च किया गया।
  • वहीं, गैर-सरकारी (निजी) स्कूलों में यही खर्च बढ़कर ₹25,002 प्रति छात्र तक पहुंच गया।

यह अंतर स्पष्ट रूप से दिखाता है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा काफी सस्ती है, जबकि निजी स्कूलों में पढ़ाई का खर्च कई गुना अधिक होता है, जो विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वर्ग के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

पाठ्यक्रम शुल्क बना प्रमुख शिक्षा पर व्यय वाला क्षेत्र

बच्चों की शिक्षा पर परिवारों द्वारा किया जाने वाला सबसे बड़ा खर्च अब पाठ्यक्रम शुल्क के रूप में सामने आया है, जो देशभर में स्कूली शिक्षा की बढ़ती लागत को दर्शाता है।

  • सभी प्रकार के स्कूलों (सरकारी व निजी) में, चालू शैक्षणिक वर्ष के दौरान प्रति छात्र औसतन ₹7,111 सिर्फ पाठ्यक्रम शुल्क पर खर्च हुआ।
  • इसके बाद पाठ्यपुस्तकों और स्टेशनरी पर ₹2,002 प्रति छात्र का औसत खर्च हुआ।
शहरी बनाम ग्रामीण क्षेत्रों में खर्च की स्थिति:
  • शहरी परिवारों ने पाठ्यक्रम शुल्क पर ₹15,143 औसतन खर्च किया, जो ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में कई गुना अधिक है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में यह खर्च ₹3,979 अनुमानित किया गया।

यह अंतर सिर्फ पाठ्यक्रम शुल्क तक ही सीमित नहीं है। शहरी क्षेत्रों में परिवहन, यूनिफॉर्म, किताबें और अन्य शैक्षणिक सामग्री पर भी अधिक खर्च देखने को मिला है।

निजी कोचिंग का प्रचलनः
  • चालू शैक्षणिक वर्ष के दौरान लगभग एक तिहाई छात्र (27.0%) निजी कोचिंग ले रहे थे या ले चुके थे।
  • यह प्रवृत्ति ग्रामीण क्षेत्रों (25.5%) की तुलना में शहरी क्षेत्रों (30.7%) में अधिक आम थी।

       शहरी परिवार ग्रामीण परिवारों की तुलना में निजी कोचिंग पर अधिक खर्च करते हैं

  • शहरी क्षेत्रों में प्रति छात्र औसत वार्षिक खर्च निजी कोचिंग पर ₹3,988 है, जबकि
  • ग्रामीण क्षेत्रों में यह खर्च ₹1,793 ही है।

 उच्चतर माध्यमिक स्तर पर अंतर और खर्च:

  • शहरी क्षेत्रों में, उच्चतर माध्यमिक स्तर के छात्रों पर कोचिंग खर्च ₹9,950 तक पहुंच जाता है।
  • जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में, इसी स्तर के लिए औसत खर्च ₹4,548 है।

शिक्षा स्तर के अनुसार राष्ट्रीय औसत खर्च:

  • पूर्व-प्राथमिक स्तर: ₹525
  • प्राथमिक स्तर: ₹1,010
  • माध्यमिक स्तर: ₹3,269
  • उच्चतर माध्यमिक स्तर: ₹6,384

पारिवारिक वित्तपोषण ही स्कूल शिक्षा का मुख्य आधार बना हुआ हैं:

  • भारत में स्कूली शिक्षा पर होने वाले खर्च का मुख्य स्रोत परिवार ही है, चाहे छात्र ग्रामीण क्षेत्र से हो या शहरी क्षेत्र से।
  • कुल छात्रों में से 95% ने बताया कि उनकी शिक्षा का प्राथमिक वित्तपोषण परिवार के अन्य सदस्य कर रहे हैं।
  • यह प्रवृत्ति ग्रामीण क्षेत्रों में 95.3% और शहरी क्षेत्रों में 94.4% देखी गई, जो दर्शाता है कि परिवार ही शिक्षा के सबसे बड़े समर्थक हैं।

इसके विपरीत, केवल 1.2% छात्रों ने बताया कि सरकारी छात्रवृत्तियाँ उनकी शिक्षा का मुख्य वित्तीय स्रोत हैं।

निष्कर्ष:

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (NSS) के 80वें दौर में किए गए इस शिक्षा सर्वेक्षण से यह स्पष्ट रूप से सामने आता है कि भारत में स्कूली शिक्षा की लागत में लगातार वृद्धि हो रही है और इसका प्रमुख भार परिवारों पर ही है। सरकारी स्कूल अब भी बड़ी संख्या में छात्रों को शिक्षा प्रदान कर रहे हैं, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, जहाँ शिक्षा का मुख्य माध्यम यही हैं। इसके विपरीत, शहरी क्षेत्रों में निजी स्कूलों का प्रभाव बढ़ रहा है, जिसके कारण शिक्षा का निजीकरण और उससे जुड़ी लागत में भारी अंतर देखा जा रहा है। निजी स्कूलों में पाठ्यक्रम शुल्क और अन्य खर्चों के कारण प्रति छात्र वार्षिक खर्च कई गुना अधिक है, जो मध्यम और निम्न आय वर्ग के परिवारों के लिए चिंता का विषय है। पाठ्यक्रम शुल्क शिक्षा पर होने वाले कुल खर्च का सबसे बड़ा हिस्सा बन चुका है, और इसके साथ ही निजी कोचिंग का चलन भी बढ़ रहा है, जिससे यह संकेत मिलता है कि केवल स्कूली शिक्षा को पर्याप्त नहीं माना जा रहा। शहरी क्षेत्रों में शिक्षा पर खर्च ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में काफी अधिक है, जिससे क्षेत्रीय असमानता भी उभरकर सामने आती है। सबसे चिंताजनक तथ्य यह है कि देश में शिक्षा का मुख्य वित्तीय स्रोत अब भी परिवार ही हैं, जबकि सरकारी छात्रवृत्तियाँ और सहायता योजनाएँ बहुत ही सीमित संख्या में छात्रों तक पहुँच पा रही हैं। यह निष्कर्ष बताता है कि यदि शिक्षा को सुलभ, सस्ती और समावेशी बनाना है तो सरकारी प्रयासों को और अधिक मजबूत, प्रभावी और व्यापक बनाना अत्यंत आवश्यक है।

UPSC MAINS PRACTICE QUESTION

प्रश्न 1:“भारत में स्कूली शिक्षा का खर्च तेजी से बढ़ रहा है, और इसका बोझ मुख्यतः परिवारों पर है।” शिक्षा सर्वेक्षण 2025 के प्रकाश में इस कथन की समीक्षा कीजिए। साथ ही सरकारी सहायता की सीमाओं और शिक्षा में समानता सुनिश्चित करने हेतु सुझाव दीजिए। (250 शब्द)

प्रश्न 2:शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा पर व्यय में असमानता किन कारणों से उत्पन्न होती है? शिक्षा सर्वेक्षण 2025 के आधार पर इस असमानता के प्रभावों और इसके समाधान के उपायों पर चर्चा कीजिए। (250 शब्द)

प्रश्न 3:“शिक्षा का निजीकरण समावेशी और सस्ती शिक्षा के मार्ग में एक बाधा बनता जा रहा है।” इस कथन की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए, विशेषकर शिक्षा पर सरकारी और पारिवारिक व्यय के परिप्रेक्ष्य में। (250 शब्द)

स्रोत: THE HINDU + PIB

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