यूपीएससी प्रासंगिकता-जीएस पेपर-3, विज्ञान और प्रौद्योगिकी |
चर्चा में क्यों?
ऑपरेशन ‘सिंदूर’ से सामने आई रिपोर्टों के अनुसार, भारतीय वायु सेना ने अपने राफेल लड़ाकू विमानों पर एआई-सक्षम X-Guard फाइबर-ऑप्टिक टो डिकोय (FOTD) सिस्टम का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया है। ये सिस्टम इलेक्ट्रॉनिक युद्ध सूट का हिस्सा हैं और माना जा रहा है कि इसने दुश्मन के रडार और मिसाइलों को गुमराह किया है, जो भारत द्वारा युद्ध में छल और भ्रम की उन्नत तकनीकों को अपनाने के मामले में एक बड़ा और ऐतिहासिक कदम बन गया है

पृष्ठभूमि: डिकोय तकनीक का विकास
युद्धों में छल (deception) हमेशा से एक महत्वपूर्ण हथियार रहा है। प्राचीन काल में सेनाएं दुश्मनों को धोखा देने के लिए ट्रोजन हॉर्स जैसी चालें अपनाती थीं। बाद में, विश्व युद्धों के दौरान सेनाओं ने फुलाए गए नकली टैंक और झूठे विमान का इस्तेमाल किया ताकि वे अपनी असली ताकत को छिपा सकें और दुश्मनों को भ्रमित कर सकें।
अब जब आधुनिक युग में युद्ध ड्रोन, सटीक मिसाइलों और रडार-आधारित प्रणालियों से लड़े जाते हैं, तो छल की तकनीक भी पहले से कहीं ज्यादा उन्नत हो गई है। अब सिर्फ दिखाई देने वाले झूठे साधनों की जगह, सेनाएं एआई-आधारित डिकोय और सेंसर्स से चलने वाली प्रणालियों का इस्तेमाल करती हैं ताकि दुश्मन को धोखा दिया जा सके।
युद्ध में “डिकोय” क्या होता है?
सेना की भाषा में, डिकोय किसी भी प्रकार की ऐसी प्रणाली या वस्तु से है, जिसका मकसद दुश्मन को भ्रमित करना होता है। इसमें दुश्मन को यह विश्वास दिलाया जाता है कि वह किसी असली लक्ष्य को निशाना बना रहा है, जबकि वास्तव में वह एक नकली लक्ष्य पर हमला कर रहा होता है।
इसका मुख्य उद्देश्य दुश्मन के सेंसर्स, रडार या मिसाइलों को भ्रमित करना, उनका ध्यान भटकाना या उन्हें ज़्यादा डेटा देकर ओवरलोड करना, होता है जिससे असली सैनिक, वाहन, जहाज या विमान सुरक्षित रह सकें।
फाइबर-ऑप्टिक टोड डिकोय क्या है? ·Fibre-Optic Towed Decoy (FOTD)एक छोटा, नष्ट किया जा सकने वाला उपकरण होता है जो फाइटर जेट के पीछे छोड़ा जाता है। इसे एक लंबी और पतली फाइबर-ऑप्टिक केबल से जोड़ा जाता है।यह केबल विमान और डिकोय के बीच रीयल-टाइम डेटा ट्रांसफर की सुविधा देती है।डिकोय, विमान के जैसे ही रडार सिग्नल भेजता है, दुश्मन की एयर-टू-एयर या सतह-से-हवा में मार करने वाली मिसाइलें उसी की ओर आकर्षित हो जाती हैं।क्योंकि यह डिकोय विमान से कई मीटर पीछे तैनात होता है, मिसाइल असली फाइटर जेट की बजाय उसी की ओर मुड़ जाती है। |
आज के समय में, वायु सेना, थल सेना और नौसेना — सभी डिकोय तकनीक का सहारा लेती हैं ताकि:
- दुश्मन के हमलों को नकली लक्ष्यों पर डाइवर्ट किया जा सके, जिससे असली हथियार नष्ट न हों,
- कीमती सैन्य उपकरणों जैसे लड़ाकू विमान, युद्धपोत या टैंक को सुरक्षित रखा जा सके,
- और दुश्मन की निगरानी प्रणाली को भ्रमित किया जा सके, ताकि वे सही तरीके से युद्ध क्षेत्र की स्थिति को समझ न सकें।
AI-सक्षम X-Guard फाइबर-ऑप्टिक टोड डिकोय सिस्टम
X-Guard, जो इज़राइल की कंपनी राफेल द्वारा बनाया गया है, एक आधुनिक और उन्नत हवाई सुरक्षा प्रणाली है। यह सिस्टम हल्का (लगभग 30 किलोग्राम), दोबारा इस्तेमाल किया जा सकने वाला और वापस खींचा जा सकने वाला डिकोय है, जिसे राफेल जैसे लड़ाकू विमानों में लगे SPECTRA इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सिस्टम के साथ जोड़ा गया है।
यह कैसे काम करता है?
- इस सिस्टम को विमान से छोड़ा जाता है और यह विमान के पीछे लगभग 100 मीटर पीछे चला जाता है, जो एक फाइबर-ऑप्टिक केबल से विमान से जुड़ा होता है।
- यह असली जेट के रडार सिग्नेचर की नकल करता है – जिसमें इसका रडार क्रॉस-सेक्शन (आरसीएस), गति (डॉपलर वेग) और इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल शामिल हैं।
- यह सिस्टम 360 डिग्री में रडार फ्रीक्वेंसी को जाम भी कर सकता है — यानी दुश्मन के रडार को काम नहीं करने देता।
- नतीजा यह होता है कि दुश्मन के रडार और मिसाइलें असली विमान को नहीं, बल्कि इस नकली डिकोय को निशाना बनाती हैं, जिससे असली लड़ाकू विमान सुरक्षित निकल जाता है।
ऑपरेशन ‘सिंदूर’ में कैसे काम आया X-Guard डिकोय सिस्टम?
जब ऑपरेशन सिंदूर चल रहा था, तब पाकिस्तान के J-10C लड़ाकू विमान, जिनमें लंबी दूरी तक मार करने वाली PL-15E मिसाइलें लगी थीं, उन्होंने गलती से भारतीय राफेल विमानों की जगह X-Guard डिकोय पर निशाना साध लिया। इसका मतलब ये हुआ कि पाकिस्तान की मिसाइलें नकली लक्ष्य पर चली गईं और बेकार हो गईं। इतना ही नहीं, पाकिस्तान ने यह भी गलती से दावा कर दिया कि उसने भारतीय विमान गिरा दिए हैं, जबकि असल में उन्होंने डिकोय को ही निशाना बनाया था। इससे साबित होता है कि X-Guard डिकोय सिस्टम असली युद्ध में भी बहुत कारगर है।
दुनिया में और कौन-कौन से ऐसे डिकोय सिस्टम हैं?
कई देशों ने अपने लड़ाकू विमानों की सुरक्षा के लिए इसी तरह की हवाई डिकॉय तकनीकें विकसित की हैं:
- लियोनार्डो यूएल का ब्राइटक्लाउड – यूरोफाइटर टाइफून, स्वीडन के ग्रिपेन-ई और कुछ F-16 विमानों पर इस्तेमाल किया जाता है। यह एक छोटा सा डब्बा जैसा डिवाइस होता है जो दुश्मन के रडार को भ्रमित कर देता है।
- रेथियॉन/BAE AN/ALE-50/55 सीरीज़– इसे अमेरिकी नौसेना के F/A-18E/F सुपर हॉर्नेट विमानों में लगाया जाता है। ये सिस्टम कई बार युद्ध में इस्तेमाल हो चुके हैं, और यह साबित हो चुका है कि ये दुश्मन की रडार गाइडेड मिसाइलों से अच्छी सुरक्षा देते हैं।
- अनुकूलित यूएवी संस्करण – अब इज़राइल अपने हेरॉन ड्रोन में और अमेरिका अपने एमक्यू-9 रीपर ड्रोन्स में हल्के वजन वाले डिकोय लगा रहा है। ये डिकोय ड्रोन को दुश्मन के रडार और मिसाइलों से बचाने का काम करते हैं।
ज़मीन पर इस्तेमाल होने वाले डिकोय
डिकोय तकनीक सिर्फ हवा तक सीमित नहीं है — जमीनी सेना भी ऐसे डिकोय का इस्तेमाल करती है ताकि दुश्मन की निगरानी प्रणाली को भ्रमित किया जा सके और वो महंगे हथियार नकली लक्ष्यों पर खर्च कर दें।
यूक्रेन
यूक्रेन ने बड़े पैमाने पर लकड़ी से बने, भ्रमित टैंक, और 3D प्रिंट किए गए नकली टैंक, तोप और मिसाइल लॉन्चर का इस्तेमाल किया। इससे रूस को अपने महंगे मिसाइल और ड्रोन इन नकली लक्ष्यों पर बर्बाद करने पड़े।
रूस
रूस ने एक कंपनी इन्फ्लेटेक द्वारा बनाए गए भ्रमित करने वाले वाले नकली टैंक का इस्तेमाल किया, ताकि ऐसा लगे कि युद्धक्षेत्र में बहुत बड़ी टैंक सेना मौजूद है — जबकि असल में वह सिर्फ दिखावा था।
संयुक्त राज्य अमेरिका (अमेरिका)
अमेरिकी सेना ने ऐसे नकली वाहन टेस्ट किए हैं जो असली टैंक और बख्तरबंद गाड़ियों जैसे दिखते हैं, ताकि दुश्मन की Javelin जैसी एंटी-टैंक मिसाइलों को धोखा दिया जा सके।
चीन
चीन उन डिकोय तकनीकों में निवेश कर रहा है जो थर्मल (गर्मी), साउंड (आवाज़) और विज़ुअल सिग्नल की नकल कर सकें। इससे दुश्मन के इन्फ्रारेड और ध्वनि पहचान सिस्टम भी धोखा खा जाएं।
भारत
अप्रैल 2025 में, भारतीय सेना ने कंपनियों को ऐसे नकली T-90 टैंक डिकोय बनाने के लिए आमंत्रित किया जो दिखने में,थर्मल में, और आवाज़में असली टैंक जैसे लगें, ताकि असली टैंकों की सुरक्षा हो सके।
नौसेना की डिकोय तकनीक
जिस तरह थल और वायु सेनाएं डिकोय का इस्तेमाल करती हैं, उसी तरह नौसेना भी
अपने युद्धपोतों को दुश्मन की मिसाइलों और पनडुब्बियों से बचाने के लिए
छल प्रणाली का इस्तेमाल करती है।
- चैफ और फ्लोटिंग डिकॉय- इन्हें हवा या समुद्र में छोड़ा जाता है ताकि दुश्मन के रडार को बड़े नकली सिग्नल मिलें। इससे दुश्मन को असली जहाज को ट्रैक करना मुश्किल हो जाता है।
- ध्वनिक डिकॉय – ये नकली अंडरवॉटर साउंड (पानी के नीचे की आवाज़) पैदा करते हैं,
जिससे टॉरपीडो जैसी मिसाइलें गलत दिशा में चली जाती हैं — और असली जहाज या पनडुब्बी बच जाती है। - नुल्का एक्टिव डिकॉय (ऑस्ट्रेलिया-यू.एस.) – यह एक खुद उड़ने वाला डिकोय है जो असली जहाज से दूर जाकर उड़ता है। यह बड़े युद्धपोत जैसा रडार सिग्नल दिखाता है, जिससे दुश्मन की एंटी-शिप मिसाइलें इसे असली लक्ष्य समझकर उसी पर हमला करती हैं।
आधुनिक डिकोय सिस्टम का महत्व
- बल की सुरक्षा :
डिकोय बहुमूल्य प्लेटफार्मों – लड़ाकू विमानों, टैंकों या युद्धपोतों – को मिसाइल हमलों से सुरक्षित रखते हुए, उपयोग योग्य ढाल के रूप में कार्य करते हैं। - कम लागत, बड़ा असर :
कुछ लाख रुपये का डिकोय कई करोड़ की मिसाइल को गलत दिशा में भेज सकता है।
यानी कम खर्च में बड़ी सुरक्षा। - ऑपरेशनल लचीलापन :
डिकोय दुश्मन को भ्रमित करके कुछ सेकंड का बहुमूल्य समय दिलाते हैं, जिससे अपनी सेना को बचाने या पलटवार करने का मौका मिलता है। - मानसिक प्रभाव :
अगर डिकोय दुश्मन को धोखा देने में सफल हो जाएं, तो उससे दुश्मन का आत्मविश्वास कमजोर होता है और वह गलत जीत का दावा कर बैठता है। - रणनीतिक डर का माहौल :
जिन देशों के पास भरोसेमंद डिकोय सिस्टम होते हैं, उनके खिलाफ दुश्मन हमला करने से पहले कई बार सोचता है, क्योंकि उसे यकीन नहीं होता कि वह असली लक्ष्य को ही निशाना बना पाएगा।
लेकिन,डिकोय सिस्टम के सामने भी कुछ चुनौतियाँ हैं:
- डिकोय बनाम एंटी-डिकोय रेस :
जैसे-जैसे डिकोय बेहतर हो रहे हैं, वैसे ही दुश्मन के पास भी AI रडार और मल्टी-स्पेक्ट्रल मिसाइलें आ रही हैं, जो असली और नकली को पहचान सकती हैं। - लागत की चुनौती :
हर प्लेटफॉर्म (जैसे विमान, टैंक) पर एडवांस डिकोय सिस्टम लगाना बहुत महंगा होता है। - विदेशी सिस्टम पर निर्भरता:
भारत अभी भी इज़राइल और पश्चिमी देशों से कई डिकोय सिस्टम मंगवाता है,
जो दिखाता है कि हमारी घरेलू तकनीक में अभी कमी है। - पहचान का खतरा :
समय के साथ दुश्मन डिकोय के खास सिग्नल या पैटर्न को पहचानना सीख सकता है,
जिससे उनकी असरकारिता घट सकती है।
भारत की एक संतुलित और भविष्य-उन्मुख डिकोय रणनीति
विदेशी खरीद और स्वदेशी अनुसंधान में संतुलन
भारत फिलहाल कई एडवांस डिकोय सिस्टम आयात करता है — इससे तात्कालिक ताकत मिलती है। लेकिन ज़्यादा निर्भरता जोखिम भरी हो सकती है।इसलिए DRDO जैसे संस्थानों के ज़रिए स्वदेशी तकनीक को बढ़ावा देना ज़रूरी है,ताकि भारत को दीर्घकालिक रणनीतिक स्वतंत्रता मिल सके।
AI और मशीन लर्निंग का इस्तेमाल
आज का युद्ध बहुत तेजी से बदलता है। अगर भारत AI-आधारित डिकोय सिस्टम बनाए, तो वे दुश्मन के रडार, सेंसर और मिसाइलों के बदलते पैटर्न के अनुसार रीयल-टाइम में ढल सकते हैं, जिससे सेना की सर्वाइवल की संभावना बढ़ जाती है।
मल्टी-डोमेन डिकोय रणनीति
भविष्य के युद्ध सिर्फ ज़मीन या हवा में नहीं होंगे —वे हवा, ज़मीन, समुद्र, साइबर और अंतरिक्ष में एक साथ लड़े जाएंगे।इसलिए भारत को चाहिए कि उसकी डिकोय रणनीति इन सभी क्षेत्रों में सामंजस्य बना सके। कोऑर्डिनेटेड डिकोय और गलत सूचना (misinformation) के ज़रिए दुश्मन को पूरी तरह से भ्रमित किया जा सकता है।
आगे की राह
- स्वदेशीकरण पर ज़ोर:
इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर और डिकोय सिस्टम्स के लिए DRDO और निजी कंपनियों के बीच मजबूत साझेदारी में निवेश करना ज़रूरी है। - सेनाओं के बीच तालमेल:
वायु, थल और नौसेना — तीनों के डिकोय सिस्टम को ऐसे विकसित करना चाहिए कि
वे एक-दूसरे का समर्थन करें और मिलकर काम करें। - AI-सक्षम उन्नयन:
ऐसे AI एल्गोरिदम अपनाने की ज़रूरत है जो समय के साथ बदलते रहें — यानी डिकोय का सिग्नल हर बार अलग हो, जिससे दुश्मन उसे पकड़ न सके। - प्रशिक्षण और वॉरगेमिंग:
डिकोय सिस्टम को वास्तविक युद्धाभ्यास (live exercises) में शामिल करना चाहिए,
ताकि सैनिक इन तकनीकों का प्रभावी इस्तेमाल करना सीखें। - निर्यात की संभावना:
जब भारत की डिकोय तकनीक परिपक्व हो जाए, तो वह ग्लोबल साउथ (एशिया, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका) जैसे क्षेत्रों के लिए कम लागत वाले डिकोय सिस्टम का प्रमुख केंद्र बन सकता है।
निष्कर्ष
जैसे प्राचीन काल में युद्ध में धोखे का इस्तेमाल होता था, वैसे ही आज के आधुनिक युद्ध में भी यह उतना ही प्रासंगिक है — बस फर्क यह है कि अब यह AI, फाइबर-ऑप्टिक और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर से संचालित होता है। भारत का X-Guard डिकोय सिस्टम को अपनाना दिखाता है कि देश राफेल जैसे अत्याधुनिक हथियारों की रक्षा को लेकर गंभीर है। लेकिन दीर्घकालिक सुरक्षा का रास्ता स्वदेशी नवाचार, अनुकूल तकनीक और मल्टी-डोमेन छल रणनीति से होकर जाता है। आज के आधुनिक सैन्य परिदृश्य में, डिकोय कोई चालाकी नहीं, बल्कि रणनीतिक हथियार हैं —जितने जरूरी मिसाइल और रडार होते हैं, उतने ही जरूरी अब डिकोय सिस्टम भी बन चुके हैं।
UPSC प्रीलिम्स प्रैक्टिस प्रश्न
प्रश्न 1. फाइबर-ऑप्टिक टो डिकोय (FOTD) सिस्टम्स के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- इन्हें फाइटर विमान के पीछे फाइबर-ऑप्टिक केबल से छोड़ा जाता है, जिससे विमान और डिकोय के बीच रीयल-टाइम संपर्क बना रहता है।
- ये विमान के जैसे रडार संकेत दिखाकर दुश्मन की मिसाइलों को गलत दिशा में ले जाते हैं।
- हाल ही में चर्चा में रहा X-Guard सिस्टम, भारत के DRDO द्वारा स्वदेश में विकसित किया गया है।
ऊपर दिए गए कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3 सभी
उत्तर: (a) केवल 1 और 2
व्याख्या:
- FOTD सिस्टम विमान के पीछे फाइबर-ऑप्टिक केबल के जरिए तैनात होता है और रीयल-टाइम डेटा ट्रांसफर करता है
- यह असली विमान की तरह रडार सिग्नल दिखाता है ताकि दुश्मन की मिसाइलें भ्रमित हों
- X-Guard सिस्टम भारत में नहीं, बल्कि इज़राइल की Rafael कंपनी द्वारा बनाया गया है
प्रश्न 2. आधुनिक सैन्य छल तकनीकों (Military Deception Technologies) के संदर्भ में निम्नलिखित जोड़ों पर विचार करें:
डिकोय सिस्टम / देश | मुख्य क्षेत्र (Primary Domain) |
1. BriteCloud – UK | हवाई क्षेत्र (Airborne) |
2. Nulka – ऑस्ट्रेलिया-अमेरिका | नौसैनिक (Naval) |
3. लकड़ी के नकली टैंक – यूक्रेन | भूमि आधारित (Land-based) |
4. AN/ALE-50 – चीन | साइबर (Cyber) |
इनमें से कौन-से जोड़े सही मेल खाते हैं?
(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 1 और 4
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4 सभी
उत्तर: (a) केवल 1, 2 और 3
व्याख्या:
- BriteCloud (UK): हवाई क्षेत्र में इस्तेमाल होने वाला छोटा डिकोय
- Nulka (ऑस्ट्रेलिया–अमेरिका): युद्धपोतों को मिसाइल से बचाने के लिए इस्तेमाल होता है
- यूक्रेन के नकली टैंक: ज़मीन पर मिसाइलों को भ्रमित करने के लिए
- AN/ALE-50: यह अमेरिका का डिकोय सिस्टम है, चीन का नहीं और साइबर से जुड़ा नहीं है
UPSC मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न (250 शब्दों में उत्तर दें):
प्रश्न:
डिकोय तकनीकें पहले साधारण युद्ध-चालें होती थीं, लेकिन अब ये AI और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर से जुड़ी उन्नत प्रणालियों में बदल गई हैं। भारत की सुरक्षा स्थिति के संदर्भ में, आधुनिक डिकोय तकनीकों की भूमिका पर समालोचनात्मक मूल्यांकन करें।