UPSC में प्रासंगिकता
- प्रीलिम्स: पायरोलिसिस (Pyrolysis), बायोचार (Biochar) और कार्बन अवशोषण (Carbon Sequestration), सिंगैस (Syngas) और बायो-ऑयल (Bio-oil), MRV (Monitoring, Reporting, Verification), राज्य जलवायु परिवर्तन कार्ययोजनाएँ (SAPCC)
- GS पेपर III – मेन्स
- पर्यावरण: कचरे से ऊर्जा, कार्बन अवशोषण, उत्सर्जन में कमी
- कृषि: मिट्टी की सेहत, टिकाऊ इनपुट्स
- अर्थव्यवस्था: कार्बन मार्केट्स, ग्रीन नौकरियाँ, सर्कुलर अर्थव्यवस्था
- विज्ञान और तकनीक: बायोमास पायरोलिसिस, बायोफ्यूल्स
क्यों चर्चा में?
भारत 2026 में अपना राष्ट्रीय कार्बन मार्केट लॉन्च करने जा रहा है। ऐसे समय में, बायोचार एक आशाजनक निगेटिव एमिशन टेक्नोलॉजी बनकर उभर रहा है, जो कृषि, ऊर्जा, निर्माण और कचरा प्रबंधन क्षेत्रों में लाभ दे सकता है। इसके बावजूद, बायोचार का उपयोग अभी भी बहुत कम है और इसे कार्बन क्रेडिट सिस्टम में पर्याप्त मान्यता नहीं मिली है।
भारत 2026 में अपना राष्ट्रीय कार्बन मार्केट लॉन्च करने जा रहा है। ऐसे समय में, बायोचार एक आशाजनक निगेटिव एमिशन टेक्नोलॉजी
पृष्ठभूमि: बायोचार क्या है?
- बायोचार एक कार्बन-समृद्ध पदार्थ है, जो पायरोलिसिस (ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में तापीय अपघटन) से तैयार होता है।
- इसके अंतर्गत कच्चा माल के रूप में :
- कृषि अपशिष्ट
- नगर निगम का जैविक ठोस अपशिष्ट
इसके फायदे:
- यह लंबे समय तक कार्बन सिंक के रूप में कार्य करता है।
- मिट्टी की गुणवत्ता सुधारता है।
- सिंगैस और बायो-ऑयल जैसे मूल्यवान सह-उत्पाद देता है।
भारत में बायोचार की संभावनाएँ
1. कचरे को संपत्ति में बदलने हेतु
वर्तमान में भारत की बड़ी कचरा समस्या जैसे:
- 600 मिलियन टन कृषि अवशेष (भूसा, तना, पराली आदि)
- 60 मिलियन टन नगर निगम का ठोस कचरा (खाद्य अपशिष्ट, प्लास्टिक आदि)
मौजूदा स्थिति में कचरे का निष्पादन:
- अधिकतर कचरा जला दिया जाता है → जिससे प्रदूषण।
- लैंडफिल में डाल दिया जाता है → जिससे मीथेन गैस उत्सर्जन।
अगर भारत इस कचरे का 30–50% बायोचार बनाने में लगाए तो :
- 15–26 मिलियन टन बायोचार हर साल बन सकता है।
- यह लगभग 0.1 गीगाटन (100 मिलियन टन) CO₂-समकक्ष उत्सर्जन कम कर सकता है।
इससे लाभ : जलवायु परिवर्तन से लड़ाई और कचरे का टिकाऊ प्रबंधन हो पाएगा।
2. बायोचार से बोनस ऊर्जा
विदित है कि पायरोलिसिस से बायोचार बनाते समय दो सह-उत्पाद भी मिलते हैं:
a) सिंगैस (Synthetic Gas)
- 20–30 मिलियन टन सिंगैस हर साल बन सकता है।
- इससे लगभग 8–13 टेरावॉट-घंटे (TWh) बिजली पैदा हो सकती है।
- 0.7 मिलियन टन कोयला बच सकता है
इसके लाभ: स्वच्छ ऊर्जा, कोयले पर कम निर्भरता, प्रदूषण में कमी।
b) बायो-ऑयल (Bio-oil)
- 24–40 मिलियन टन बायो-ऑयल बन सकता है।
- यह भारत की डीज़ल और मिट्टी के तेल की खपत का लगभग 8% कम कर सकता है।
- भारत के जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन में लगभग 2% की कटौती कर सकता है।
लाभ: स्वच्छ ईंधन का समर्थन, तेल आयात में कमी, कार्बन फुटप्रिंट घटाना।
कृषि और शहरी कचरे को बायोचार और उसके सह-उत्पादों में बदलकर भारत निम्न गतिविधियाँ अपना सकता है:
- कचरे का प्रभावी प्रबंधन करने में
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी
- स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन करने में
- जीवाश्म ईंधनों का उपयोग घटाना
भारत में बायोचार के उपयोग
1. कार्बन अवशोषण: दीर्घकालिक जलवायु लाभ
- क्या करता है: बायोचार मिट्टी में कार्बन को बंद कर देता है और उसे दोबारा वायुमंडल में जाने से रोकता है।
- अवधि: यह कार्बन 100 से 1,000 साल तक सुरक्षित रह सकता है, जबकि साधारण जैविक पदार्थ जल्दी सड़-गल जाते हैं।
- प्रभाव: यह प्रकृति-आधारित समाधान है, जो लंबे समय तक वायुमंडल से CO₂ हटाने में मदद करता है।
2. कृषि के तहत: मिट्टी की सेहत सुधारने और उत्सर्जन कम करने में प्रयोग
- पानी धारण क्षमता: अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में विशेष रूप से उपयोगी, यथा मिट्टी में लंबे समय तक पानी बनाए रखता है।
- कम उत्सर्जन: नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) उत्सर्जन 30–50% तक घटाता है।
- ध्यान दें: N₂O, CO₂ से 273 गुना अधिक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है।
- मिट्टी की गुणवता में सुधार: मिट्टी में जैविक कार्बन और सूक्ष्मजीव गतिविधि बढ़ाता है।
- खेती उत्पादकता: फसल उत्पादन 10–25% तक बढ़ा सकता है।
- उर्वरक दक्षता: रासायनिक उर्वरकों की ज़रूरत 10–20% तक घटा देता है।
3. निर्माण क्षेत्र: मजबूत और टिकाऊ कंक्रीट
- कंक्रीट मिश्रण में 2–5% बायोचार मिलाने से:
- यांत्रिक मजबूती बढ़ती है (इमारतें अधिक टिकाऊपण आती हैं)।
- गर्मी सहन करने की क्षमता 20% तक बढ़ती है — खासकर गर्म इलाकों में उपयोगी।
- प्रति घन मीटर कंक्रीट में 115 किलो CO₂ तक अवशोषित कर सकता है।
4. अपशिष्ट जल शोधन: कम लागत वाला विकल्प
- शोधन क्षमता: सिर्फ 1 किलो बायोचार 200–500 लीटर अपशिष्ट जल साफ कर सकता है।
- भारत की ज़रूरत: देश में प्रतिदिन 70 अरब लीटर अपशिष्ट जल बनता है, जिसमें से लगभग 72% बिना शोधन के रह जाता है।
- संभावित बाज़ार: बायोचार की अनुमानित मांग 2.5 से 6.3 मिलियन टन/वर्ष हो सकती है।
यह शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में सस्ते और विकेन्द्रीकृत अपशिष्ट जल शोधन का समाधान दे सकता है।
5. उद्योगों से कार्बन कैप्चर: उभरता हुआ उपयोग
- संशोधित बायोचार सीधे औद्योगिक धुएं से CO₂ पकड़ सकता है।
- सीमा के तहत: यह अभी उन्नत तकनीकों जैसे Amine Scrubbers या Direct Air Capture (DAC) जितना प्रभावी नहीं है।
- लाभ: छोटे पैमाने या कम बजट वाले सेटअप में उपयोगी है।
बायोचार सिर्फ मिट्टी सुधारने का साधन नहीं है, बल्कि यह निम्न भी है:
- एक जलवायु समाधान
- कृषि, निर्माण और अपशिष्ट जल शोधन के लिए ग्रीन टेक्नोलॉजी
- भारत के नेट-ज़ीरो लक्ष्यों को समर्थन देने वाला कार्बन सिंक
भारत में बायोचार अपनाने की चुनौतियाँ
1. कार्बन मार्केट में कम प्रतिनिधित्व
- मानक फीडस्टॉक दिशानिर्देशों की कमी: बायोचार बनाने के लिए स्वीकार्य कच्चे माल पर स्पष्ट नियम नहीं हैं।
- मजबूत कार्बन अकाउंटिंग विधियों का अभाव: लंबे समय तक कार्बन अवशोषण को वैज्ञानिक तरीके से मापना और प्रमाणित करना कठिन।
- निवेशकों की अनिश्चितता: कार्बन क्रेडिट सिस्टम में मजबूत मान्यता न होने के कारण निवेशक बायोचार परियोजनाओं को जोखिमपूर्ण मानते हैं।
मुख्यत: जलवायु समाधान की क्षमता होने के बावजूद, बायोचार कार्बन मार्केट में कम आंका गया है।
2. नीति और बाज़ार की कमियाँ
- व्यावसायिक मॉडल का अभाव: इस क्षेत्र में उद्यमियों के लिए बड़े पैमाने पर अपनाने योग्य और आकर्षक रास्ते नहीं हैं।
- कमज़ोर MRV ढाँचे:
- MRV = Monitoring, Reporting, Verification
- ये सिस्टम या तो मौजूद नहीं हैं या भरोसेमंद नहीं, जिससे बायोचार के वास्तविक जलवायु लाभों को ट्रैक, रिपोर्ट और प्रमाणित करना मुश्किल है।
- मंत्रालयों में तालमेल की कमी: कृषि, पर्यावरण, ऊर्जा और अपशिष्ट प्रबंधन विभाग अलग-अलग काम करते हैं।
- बायोचार को बढ़ावा देने के लिए एकीकृत राष्ट्रीय रणनीति का अभाव।
3. सीमित जागरूकता और क्षमता
- हितधारकों में कम जानकारी: किसान, पंचायतें, ULBs (Urban Local Bodies) और राज्य अधिकारी अक्सर बायोचार के लाभों से अनजान रहते हैं।
- प्रशिक्षण ढाँचे की कमी: स्थानीय उत्पादन या उपयोग के लिए बहुत कम प्रशिक्षण कार्यक्रम या तकनीकी कार्यशालाएँ।
नतीजा: बायोचार अपनाना अभी शोध संस्थानों और स्टार्टअप्स तक सीमित।
4. तकनीकी बाधाएँ
- पायरोलिसिस मशीनों की ऊँची लागत: कचरे को बायोचार में बदलने वाली मशीनें महंगी और आसानी से उपलब्ध नहीं।
- विकेन्द्रीकृत तकनीक की कमी: मौजूदा तकनीक या तो बहुत जटिल है या ग्रामीण/छोटे स्तर पर उपयुक्त नहीं।
ग्रामीण उद्यमियों और किसान-उत्पादक समूहों के लिए प्रवेश बाधाएँ बहुत ऊँची है।
5. आपूर्ति श्रृंखला और ढाँचे की समस्याएँ
- अव्यवस्थित बायोमास आपूर्ति: कृषि और शहरी कचरा बिखरा हुआ, मौसमी और संग्रहण व्यवस्था की भी कमी देखने को मिलती है।
- भंडारण और परिवहन सीमाएँ: बायोचार हल्का लेकिन भारी-भरकम होता है और उचित भंडारण न मिलने पर इसकी गुणवत्ता समय के साथ घट सकती है।
सप्लाई चेन कमजोर है, जिससे बायोचार उत्पादों की पहुँच सीमित हो जाती हैं।
भारत में बायोचार अपनाने का आगे का रास्ता
1. नीति एकीकरण: सभी क्षेत्रों में बायोचार को मुख्यधारा में लाना
प्रभाव अधिकतम करने के लिए बायोचार को मौजूदा सरकारी मिशनों और योजनाओं में जोड़ा जाए:
- फसल अवशेष प्रबंधन योजनाओं से जोड़ना (जैसे National Policy for Management of Crop Residue): पराली जलाने की समस्या घटेगी और कृषि अपशिष्ट बायोचार में बदलेगा।
- बायोएनेर्जी और Waste-to-Energy मिशनों से इसे जोड़ना: इससे सतत ऊर्जा को बढ़ावा मिलेगा और लैंडफिल पर दबाव भी कम होगा।
- राज्य जलवायु परिवर्तन कार्ययोजनाओं (SAPCCs) में शामिल करना: राज्यों को कम लागत वाले, प्रकृति-आधारित समाधान से उत्सर्जन घटाने में मदद मिलेगी।
मुख्य रूप से बायोचार भारत की जलवायु, कृषि और ऊर्जा रणनीतियों का अभिन्न हिस्सा बन सकता है।
2. कार्बन क्रेडिट मान्यता: वित्तीय मूल्य
- बायोचार को भारत के औपचारिक कार्बन मार्केट में एक प्रमाणित कार्बन हटाने के रास्ते के रूप में शामिल किया जाए।
- स्वीकृति मिलने के बाद, उत्पादक बायोचार के माध्यम से कार्बन अवशोषण करके कार्बन क्रेडिट कमा सकेंगे।
- इससे नई आय के स्रोत खुलेंगे:
- किसान को (कच्चा माल उपलब्ध कराकर या बायोचार का उपयोग करके) आर्थिक आय के स्रोत उपलब्ध हो पाएंगे
- उद्यमी और स्टार्टअप्स (उत्पादन इकाइयों में निवेश करके) को बढ़ावा मिल पायेगा
इससे निजी क्षेत्र का निवेश और किसानों की भागीदारी दोनों बढ़ेगी।
3. अनुसंधान और क्षेत्रीय अनुकूलन के रूप में
- क्षेत्र-विशिष्ट फीडस्टॉक मानक विकसित किया जा सकेगा : अलग-अलग कृषि-जलवायु क्षेत्रों में अलग प्रकार के फसल अवशेष और बायोमास होते हैं; एक ही तरीका सब जगह लागू नहीं हो सकता।
- मिट्टी, जलवायु और स्थानीय संसाधनों के अनुसार बायोचार उत्पादन विधियाँ अनुकूलित किया जा सकेगा।
- शोध सहयोग को बढ़ावा देने में: कृषि विश्वविद्यालयों, IITs और स्थानीय नवाचारियों के बीच।
नतीजा: स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप, अधिक प्रभावी और टिकाऊ बायोचार समाधान संभव हो पायेगा।
4. गाँव-स्तरीय उत्पादन इकाइयाँ: विकेन्द्रीकृत और रोज़गार सृजन
- ग्रामीण क्षेत्रों में, कचरे के स्रोतों के पास छोटे पायरोलिसिस यूनिट स्थापित किए जाएँ।
- ये इकाइयाँ:
- स्थानीय बायोमास को बायोचार में बदलेंगी।
- सस्ता ईंधन और मिट्टी सुधारक उपलब्ध कराएँगी।
- लगभग 5.2 लाख ग्रामीण नौकरियाँ पैदा किया जा सकेगा (संग्रह, प्रसंस्करण और वितरण में)।
इससे ग्रामीण विकास, विकेन्द्रीकृत जलवायु कार्रवाई और ग्रीन रोजगार को बढ़ावा मिलेगा।
5. सामुदायिक प्रोत्साहन: स्थानीय स्वामित्व और भागीदारी
- स्वयं सहायता समूह (SHGs), किसान उत्पादक संगठन (FPOs) और पंचायतों को शामिल किया जाए, जैसे:
- उत्पादन केंद्र
- स्थानीय वितरक
- जागरूकता फैलाने वाले एजेंट
- भागीदारी बढ़ाने के लिए सब्सिडी या प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन दिए जाएँ।
इससे जमीनी स्तर की संस्थाओं को सशक्त बनाया जा सकेगा और दीर्घकालिक टिकाऊपन सुनिश्चित होगा।
निष्कर्ष
बायोचार एक विज्ञान-आधारित, कम लागत वाला और बहु-क्षेत्रीय उपकरण है, जो भारत को अपने जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने, कचरे का टिकाऊ प्रबंधन करने, मिट्टी की उर्वरता सुधारने और ग्रामीण विकास में मदद कर सकता है। यदि नीति सुधार, कार्बन क्रेडिट मान्यता और जमीनी स्तर पर अपनाने को बढ़ावा दिया जाए, तो बायोचार एक सीमित नवाचार से निकलकर जलवायु और विकास के लिए गेम-चेंजर बन सकता है।
UPSC प्रीलिम्स PYQ
प्रश्न (2020): “खेती में बायोचार का क्या उपयोग है?”
सही कथन चुनिए:
- बायोचार का प्रयोग वर्टिकल फार्मिंग में ग्रोइंग मीडियम (मिट्टी के विकल्प) के रूप में किया जा सकता है।
- यह नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले सूक्ष्मजीवों की वृद्धि को बढ़ावा देता है।
- यह ग्रोइंग मीडियम में पानी धारण क्षमता को सुधारता है।
विकल्प:
A. केवल 1 और 2 सही हैं
B. केवल 2 और 3 सही हैं
C. केवल 1 और 3 सही हैं
D. उपर्युक्त सभी सही हैं
उत्तर: (d) 1, 2 और 3 सभी
मेन्स अभ्यास प्रश्न
प्रश्न:
“टिकाऊ कृषि और जलवायु परिवर्तन शमन में बायोचार की भूमिका पर चर्चा कीजिए। भारत में इसके बड़े पैमाने पर अपनाने से जुड़ी चुनौतियों की भी समीक्षा कीजिए।”
(250 शब्द)
📌 स्रोत: The Hindu