- हालिया संदर्भ :
- हाल ही में सुप्रीम कोर्ट यानि SC ने बिहार सरकार की आरक्षण सीमा को 50% + 10% EWS से बढाकर 65% + 10% EWS करने की अधिसूचना को पटना HC द्वारा रद्द किए जाने के आदेश पर अंतरिम रोक लगाने से इंकार कर दिया।
- भारत के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला एवं मनोज मिश्रा की बेंच ने अंतिम सुनवाई सितम्बर में तय करते हुए कहा कि वह कोई अंतरिम राहत नहीं देगी।
नौंवी अनुसूची में शामिल करवाना:
- SC के फैसले के बाद नीतिश कुमार की नेतृत्व वाली सरकार चाहेगी कि नए आरक्षण मामले को नौंवी अनुसूची में डाले जाने के लिए केन्द्र से अनुरोध करे।
- SC के फैसले के बाद मुख्य विपक्षी दल RJD द्वारा भी नीतिश सरकार पर यह दबाव डाला जा रहा है कि वे केन्द्र से इस मामले को नौंवी अनुसूची में शामिल करवाए।
- RJD का मानना है कि वर्तमान में केन्द्र सरकार संख्यात्मक मामले में JDU एवं TDP (तेलगू देशम पार्टी) पर अत्यधिक निर्भर है, ऐसे में उसे इस स्थिति का लाभ उठाना चाहिए।
आरक्षण का मुद्दा :
- बिहार सरकार ने जातिगत सर्वेक्षण के बाद आरक्षण कोटा को 50+10% से बढाकर 65+10% कर दिया है, जिसके बाद बिहार में आरक्षण का मुद्दा गरमाया हुआ है।
- JDU ने कहा है कि 2022-23 के जाति सर्वेक्षण के निष्कर्षों के आधार पर आरक्षण सीमा में वृद्धि की गई थी।
- इस बीच प्रशांत किशोर, जो बिहार में एक नई पार्टी बनाने जा रहे है, ने घोषणा की है कि वे सभी शीर्ष 5 सामाजिक समूहों को आनुपातिक कोटा प्रदान करेगी।
- इन 5 समूहों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछडा वर्ग (OBC), अत्यंत पिछडा वर्ग, मुस्लिम और सामान्य वर्ग शामिल है।
- नौंवी अनुसूची में शामिल किये जाने की मांग पर बिहार- BJP के एक नेता ने कहा कि ऐसा किए जाने से अन्य राज्यों से भी ऐसी मांगे आने लगेगी, जो वास्तव में पेचीदा विषय है।
नौंवी अनुसूची :
- भारतीय संविधान की यह अनुसूची मूल संविधान में नही थी।
- इसमें राज्य एवं केन्द्र से संबंधित कुछ कानूनों की सूची है, जिन्हें न्यायिक चुनौती से संरक्षण प्राप्त होता है।
- नौवीं अनुसूची को पहले संविधान संशोधन द्वारा वर्ष 1951 में जोडा गया था।
- यह एक विशेष प्रावधान है, जिसमें विधायिका को संविधान संशोधन के माध्यम से जोडे गए कानूनों की न्यायिक समीक्षा से छूट देता है।
- नौवीं अनुसूची में बाद में 31B जोडा गया, जो 31A के साथ मिलकर कृषि सुधार से संबंधित कानूनों की रक्षा करने एवं जमींदारी प्रथा को समाप्त करने के उद्देश्य से पारित किया गया था।
- जब इसे संविधान में जोडा गया तब इस अनुसूची में शामिल विषयों की संख्या 13 थी, हालांकि वर्तमान में यह 284 हो गई है।
- अनुच्छेद 31 A कानून के प्रावधानों की सुरक्षा करता है, जबकि 31 B विशिष्ट कानूनों को सुरक्षा प्रदान करता है।
- 31B में प्रावधान है कि यदि किसी कानून को असंवैधानिक घोषित कर दिया जाता है और फिर उसे 9वीं अनुसूची में डाला जाता है तो जिस तिथि से वह कानून 9वीं अनुसूची में डाला जाता है, उस तिथि से उसे वैध कानून के रूप में मान्यता प्राप्त हो जाती हैं।
- 31 B इसमें शामिल कानूनों को किसी भी मौलिक अधिकारों के उल्लंघन में भी न्यायिक चुनौती से संरक्षण प्रदान करता है।
- 31A केवल कुछ ऐसे कानूनों को न्यायिक समीक्षा से संरक्षण देता है, जो अनुच्छेद-14 और अनुच्छेद-19 के तहत प्राप्त मौलिक अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित होता है।
- इसमें मुख्यतः कृषि से संबंधित कानून है।
- इसमें तमिलनाडु राज्य द्वारा आरक्षण सीमा को 69% तक किए जाने वाला कानून भी शामिल है।
- संबंधित मामले :
1. केशवानंद भारती मामले (1973)
- इसमें SC ने गोलकनाथ मामले के फैसले को बहाल करते हुए मूलभूत ढाँचे का सिद्धांत पारित किया और कहा कि कोई भी कानून, जो किसी भी तरह मूल ढाँचे के सिद्धांत का उल्लंघन करती है, उसकी न्यायिक समीक्षा की जा सकती है।
- मूल अधिकार एवं SC की न्यायिक समीक्षा संबंधी अधिकार भी स्वयं ही मूल ढाँचे के घटक है।
- अगर कोई विधि मूल अधिकार का उल्लंघन करती है तो उसे असंवैधानिक करार दिया जा सकता है।
2.वामन राव मामले, 1981
- इस मामले में SC ने घोषित किया कि 27 अप्रैल 1973 (जिस दिन केशवानंद भारती मामले में फैसला आया था) के बाद नौवीं अनुसूची में शामिल किसी भी विषय को न्यायिक चुनौती दी जा सकती है। हालांकि इससे पूर्व इसमें शामिल किए गए विषयों को न्यायिक चुनोती से संरक्षण प्राप्त होगा।
3.आर. आर. कालोहो मामले :
- 2007 के इस मामले में वामन राव मामले में दिए गए फैसले को बरकरार रखा और कहा कि नौवी अनुसूची में शामिल किसी भी कानून को अनुच्छेद-14, 19 एवं 21 में प्रदत्त मूल अधिकारों के संबंध में न्यायिक समीक्षा के तहत लाया जा सकता है।
- इसके अलावा कोई भी सम्मिलित कानून, जो संविधान के मूल ढाँचे का उल्लंघन करती है, को न्यायिक समीक्षा के अधीन लाया जा सकता है।
- इस मामले में SC ने अहम फैसला सुनाया था कि जिस कानून (9वीं अनुसूची में शामिल) को पूर्व में न्यायालय द्वारा वैधता प्रदान की गई है, भविष्य में उसे न्यायिक चुनौती नहीं दी जा सकती है।
- बिहार में जातिगत सर्वेक्षण :
- 18 Feb 2019 को इस सर्वे के लिए प्रस्ताव पारित किया गया।
- 2 जून 2022 को बिहार मंत्रिपरिषद द्वारा जातिगत सर्वे को स्वीकृति दी गई।
- इसे 2 चरणों में कराया गया।
- पहले चरण में 7 जनवरी 2023 से 31 जनवरी 2023 तक मकानों/घरों का नंबरीकरण किया गया।
- दूसरे चरण का र्का 15 अप्रैल 2023 से शुरू हुआ, जिसमें 17 प्रश्नों का एक सेट तैयार किया गया, जो व्यक्तियों से पूछे जाते थे तथा इनका जवाब उन्हें अनिवार्य रूप से देना था।
- इस दौरान परिवार के मुखिया द्वारा आधार कार्ड संख्या, राशन कार्ड नंबर या जाति प्रमाण पत्र नंबर को साझा करने की स्थिति को अनिवार्य के बजाय वैकल्पिक रखा गया।
- आंकडे :
- बिहार में सर्वेक्षित परिवारों की संख्या 2 करोड, 83 लाख, 44 हजार 107 है।
- कुल जनसंख्या 13 करोड 7 लाख 25 हजार 10 है।
- अस्थायी प्रवासियों की संख्या 53 लाख 72 हजार 22 है।
1. धर्म से जुडे आंकडे :
- हिन्दू – 81.9 %
- मुसलमान – 17.7 %
- ईसाई – 0.0576 %
- सिक्ख – 0.0113 %
- बौद्ध – 0.0851 %
- जैन – 0.0096 %
- सर्वाधिक संख्या हिन्दूओं की एवं न्यूनतम संख्या जैनों की है।
2. जातिगत आंकडे :
- पिछडा वर्ग – 27.12 %
- अत्यंत पिछडा वर्ग – 36.01 %
- अनुसूचित जाति – 19.85 %
- अनुसूचित जनजाति – 1.68 %
- सामान्य वर्ग – 15.52 %
3. विभिन्न जातियों के आंकडे :
- ब्राह्मण – 3.67 %
- कायस्थ – 0.60 %
- मल्लाद – 2.60 %
- यादव – 14.26 %
- बनिया – 2.31 %
- कुर्पी – 2.87 %
- चमार (रविदास) – 5.2 %
- तेली – 2.81 %
- राजपूत – 3.45 %
- भूमिहार – 2.89 %
4. नया आरक्षण प्रणाली (75%)
- पिछडा वर्ग – 18 %
- अत्यंत पिछडा वर्ग – 25 %
- SC – 20 %
- ST – 2 %
- EWS – 10%
- भारत में जातिगत जनगणना :
- अंतिम जातिगत जनगणना 1931 में कराया गया था, जिसके आंकडे ब्रिटिश सरकार द्वारा सार्वजनिक किए गए है।
- इस आंकडे का प्रयोग मंडल आयोग एवं अन्य पिछडा वर्ग के आरक्षण से संबंधित विभिन्न रिपोर्टां का आधार बना।
- 2011 में भी जातिगत जनगणना करवाई गई थी, लेकिन आंकडे सार्वजनिक नहीं किए गए थे।
- जतिगत-आर्थिक सर्वे VS जनगणना :
- जनगणना संघ सूची का विषय है, जो भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अंतर्गत महा-रजिस्ट्रार जनरल द्वारा करवाया जाता है।
- जबकि जाति-आर्थिक सर्वे राज्यों द्वारा विभिन्न योजनाओं के लाभार्थी वर्ग की पहचान करने के उद्देश्य से करवाया जाता है।
- जनगणना 1948 के अंतर्गत करवाई जाती है, जिसके रिकॉर्ड गोपनीय रखे जाते है, लेकिन जातिगत सर्वे के दौरान प्राप्त आंकडे सार्वजनिक विभाग के पास होते हैं ताकि वे संबंधित योजनाओं से किसी को वंचित कर सके या वंचित लाभार्थी को लाभ दे सके।
- इंदिरा साहनी मामला :
- नौ न्यायाधीशों के बेंच ने फैसला सुनाया था।
- इसमें OBC के लिए आरक्षण को 27 % निर्धारित रखा गया।
- आरक्षण सीमा को 50 % निर्धारित किया गया।
- पदोन्नति में आरक्षण लागू नहीं होगा।
- फैसला 6-3 की बहुमत से सुनाया गया था।