UPSC प्रासंगिकता:
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims):
- बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022, विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR), चक्रीय अर्थव्यवस्था, बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली (BESS)
मुख्य परीक्षा – सामान्य अध्ययन पेपर 3:
- संसाधन दक्षता और चक्रीय अर्थव्यवस्था
- अपशिष्ट प्रबंधन और प्रदूषण नियंत्रण
- ई-वेस्ट नियम और विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व
- हरित ऊर्जा संक्रमण और बैटरी पुनर्चक्रण तकनीक
समाचार में क्यों?
भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) और नवीकरणीय ऊर्जा की ओर तेज़ी से बढ़ते रुझान के चलते लिथियम बैटरियों का उपयोग तेज़ी से बढ़ा है। हालांकि, Battery Waste Management Rules, 2022 लागू हैं, लेकिन EPR (Extended Producer Responsibility) और प्रभावी कार्यान्वयन में गंभीर समस्याएँ हैं। इससे पर्यावरणीय जोखिम के साथ-साथ चक्रीय अर्थव्यवस्था का लक्ष्य भी खतरे में पड़ रहा है।

पृष्ठभूमि
- भारत का लक्ष्य हैं – 2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन करना
- EVs और BESS के लिए लिथियम-आयन बैटरियाँ आवश्यक हो गयी है
- बैटरी मांग में वृद्धि हो रही है:
- 2023: 4 GWh
- 2035: 139 GWh (अनुमान)
- 2022 में भारत ने 1.6 मिलियन टन ई-वेस्ट उत्पन्न किया, जिसमें से 7 लाख टन लिथियम बैटरियाँ थीं
- Battery Waste Management Rules, 2022 के तहत EPR लागू किया गया, जिससे संग्रहण, पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण का चक्रीय तंत्र को लागू किया जा सके
भारत में बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन की प्रमुख चुनौतियाँ
1️⃣ कम EPR फ़्लोर प्राइस – पुनर्चक्रण का अवमूल्यन
- EPR का अर्थ: निर्माता इस्तेमाल की गई बैटरियों के संग्रह और सुरक्षित पुनर्चक्रण के लिए जिम्मेदार हो
- हालाँकि देखा जा रहा है कि प्रति किलो बैटरी अपशिष्ट के लिए दी जाने वाली कीमत बहुत कम है
समस्याएँ:
- उच्च तकनीक, प्रशिक्षित श्रमिक और लॉजिस्टिक्स की लागत नहीं निकलती
- निजी निवेश में कमी, औपचारिक क्षेत्र की हतोत्साहना
- अनौपचारिक और नकली पुनर्चक्रक झूठे EPR प्रमाण पत्र जारी कर रहे हैं या अपशिष्ट को खुले में फेंकते हैं
उदाहरण:
दिल्ली और उत्तर प्रदेश में कई कंपनियाँ नकली प्लास्टिक EPR प्रमाणपत्र दे चुकी हैं — वही तरीका अब बैटरी अपशिष्ट में दोहराया जा रहा है
2️⃣ आर्थिक और पर्यावरणीय नुकसान
🔸 अगर बैटरियाँ सही तरीके से रिसाईकल न हों तो हम निम्नलिखित को खो देते हैं जैसे:
- लिथियम
- कोबाल्ट
- निकेल
ये सभी रणनीतिक खनिज हैं जो EV, इलेक्ट्रॉनिक्स और रक्षा क्षेत्र के लिए आवश्यक हैं
- विदित है कि भारत को 2030 तक $1 बिलियन का विदेशी मुद्रा नुकसान हो सकता है (आयात निर्भरता के कारण)
- बैटरियों को खुले में फेंकने से मिट्टी और भूजल में ज़हरीली धातुओं का रिसाव होता है , जिससे जन स्वास्थ्य खतरे में पड़ती है
उदाहरण:
झारखंड और महाराष्ट्र में गैर-कानूनी बैटरी रीसायक्लिंग यूनिट्स के पास lead और cadmium की उच्च मात्रा पाई गई है
3️⃣कॉर्पोरेट अनुपालन में कमजोरी
- कई बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भारत में अपनी घरेलू सुरक्षा और पर्यावरण मानकों का पालन नहीं करतीं
- अपशिष्ट को अनौपचारिक एजेंटों को सौंपना या कम रिपोर्ट करना आम है
- इससे पारदर्शिता कम होती है और चक्रीय अर्थव्यवस्था का उद्देश्य कमजोर होता है
उदाहरण:
कई EV बैटरी निर्माता CPCB को अधूरी रिपोर्ट भेजते हैं, क्योंकि निगरानी में कमियाँ हैं
4️⃣ प्रवर्तन और निगरानी की कमी
- कानून तो हैं, लेकिन कार्यान्वयन कमजोर है
- EPR प्रमाणपत्र का ऑडिटिंग असंतोषजनक
- गैर-अनुपालन पर दंड न के बराबर
- अनौपचारिक क्षेत्र अप्रशिक्षित और असंगठित — खतरनाक तरीके से बैटरी को जलाते हैं
उदाहरण:
मेरठ और लुधियाना जैसे शहरों में बैटरी तोड़ने का काम अक्सर घर के पिछवाड़े में होता है
- बच्चों तक को ज़हरीली गैसों के संपर्क में लाया जाता है
- विस्फोट का भी खतरा होता है
सरकारी पहल और अंतरराष्ट्रीय तुलना – भारत में बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन की दिशा में प्रयास (सरल हिंदी में)
भारत की नीतिगत प्रतिक्रिया
2022 में, भारत सरकार ने बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन नियम (Battery Waste Management Rules) लागू किए — यह उपयोग की गई बैटरियों के बढ़ते संकट से निपटने की दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम है।
प्रमुख विशेषताएँ:
- विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) को सभी बैटरी उत्पादकों और आयातकों के लिए अनिवार्य किया गया
- उत्पादकों की कानूनी जिम्मेदारी:
- उपभोक्ताओं से बैटरियाँ इकट्ठा करना
- केवल प्रमाणित रीसायकलरों से पर्यावरण के अनुकूल पुनर्चक्रण सुनिश्चित करना
- CPCB जैसे नियामक निकायों को प्रमाण प्रस्तुत करना
यह पुराने नियमों से एक बड़ा बदलाव है, जो केवल स्वैच्छिक या अनौपचारिक संग्रहण पर आधारित थे।
भारत की वैश्विक तुलना
हालाँकि भारत ने नियमन के क्षेत्र में कुछ प्रगति की है, लेकिन आर्थिक प्रोत्साहनों के मामले में यह अभी भी वैश्विक मानकों से पीछे है।
🔹 यूके में बैटरी रीसायक्लिंग के लिए प्रोत्साहन: ₹600/किलो (लगभग)
🔹 भारत में विचाराधीन प्रोत्साहन: ₹150/किलो से भी कम (PPP समायोजन के बाद भी)
क्यों ज़रूरी है यह अंतर को पाटना?
• कम प्रोत्साहन से रीसायकलर स्वच्छ तकनीक को नहीं अपना पाते
• इससे औपचारिक क्षेत्र की भागीदारी घटती है
• अनौपचारिक, असुरक्षित प्रथाएँ बेरोकटोक जारी रहती हैं
o आर्थिक व्यवहार्यता के बिना अच्छे कानून भी ज़मीन पर विफल हो सकते हैं
आगे की राह: भारत के बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार के उपाय
1️⃣ EPR फ़्लोर प्राइस को यथार्थवादी बनाना
समस्या:
वर्तमान प्रस्तावित कीमत रीसायक्लिंग की वास्तविक लागत नहीं कवर करती
समाधान:
• संग्रह, सुरक्षित विघटन, परिवहन और महत्त्वपूर्ण खनिजों की पुनर्प्राप्ति की लागत को ध्यान में रखते हुए उचित कीमत तय की जाए
• वैश्विक मानक (जैसे ₹600/किलो) को भारतीय परिस्थितियों के अनुसार समायोजित किया जाए
इससे ईमानदार रीसायकलरों को मजबूती मिलेगी और नकली या अनौपचारिक खिलाड़ियों को हतोत्साहित किया जा सकेगा
2️⃣ निगरानी और प्रवर्तन को मज़बूत करना
समस्या:
कमज़ोर निगरानी के कारण धोखाधड़ी और असुरक्षित रीतियाँ पनपती हैं
समाधान:
• EPR क्रेडिट, संग्रहण और पुनर्चक्रण गतिविधियों की रियल टाइम डिजिटल ट्रैकिंग
• ब्लॉकचेन या छेड़छाड़ रहित प्रमाणपत्र प्रणाली
• कड़े दंड:
o नकली प्रमाणपत्र जारी करना
o अपशिष्ट की गलत रिपोर्टिंग
o रीसायक्लिंग मानकों का उल्लंघन
EU में प्लास्टिक अपशिष्ट के लिए ऐसे सिस्टम पहले से मौजूद हैं — भारत इन्हें अनुकूलित कर सकता है
3️⃣ अनौपचारिक क्षेत्र को एकीकृत करना
समस्या:
भारत में बैटरी अपशिष्ट का बड़ा हिस्सा अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा संभाला जाता है — पर ये अक्सर असुरक्षित और अनियमित तरीके अपनाते हैं
समाधान:
• श्रमिकों को प्रशिक्षण, सुरक्षात्मक उपकरण और कानूनी मान्यता देना
• उत्पादकों और अनौपचारिक श्रमिकों के बीच साझेदारी
• बिना विस्थापन के इन्हें नियमित ढांचे में शामिल करना
इससे न केवल सुरक्षा बढ़ेगी बल्कि संग्रहण क्षमता भी बढ़ेगी
4️⃣ उद्योग सहयोग को बढ़ावा देना
समस्या:
OEM (मूल उपकरण निर्माता) अक्सर रीसायक्लिंग की लागत से बचते हैं, और हितधारकों में समन्वय की कमी होती है
समाधान:
• सरकार, निर्माता और रीसायक्लर के बीच सार्वजनिक-निजी संवाद को बढ़ावा देना
• OEM को रीसायक्लिंग की पूरी लागत खुद वहन करने के लिए बाध्य करना — उपभोक्ताओं पर भार न डाला जाए
एप्पल, टेस्ला जैसी कंपनियाँ पहले से ही अपने उत्पादों के अंत-उपयोग प्रबंधन की जिम्मेदारी ले रही हैं — भारत को भी ऐसा ही करना होगा
निष्कर्ष:
भारत जैसे देश में जहां बैटरी की मांग तेज़ी से बढ़ रही है, वहाँ बैटरी अपशिष्ट को पर्यावरणीय खतरे से बदलकर हरित विकास का आधार बनाया जा सकता है।
इसके लिए जरूरी है:
• EPR प्राइसिंग को सुधारना
• रीसायक्लिंग तंत्र को नियंत्रित और मज़बूत करना
• अनौपचारिक क्षेत्र को समावेशी रूप से जोड़ना
यही भारत को स्वच्छ, टिकाऊ और आर्थिक रूप से सक्षम भविष्य की ओर ले जाएगा।
UPSC प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – पूर्ववर्ष प्रश्न
प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन-से कथन ई-वेस्ट प्रबंधन नियम, 2016 के बारे में सही हैं? (2019)
- निर्माताओं को विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) के तहत अंत-उपयोग वाले इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों को वापस इकट्ठा करना अनिवार्य है।
- ये नियम केवल बड़े पैमाने पर उद्योगों पर लागू होते हैं, MSMEs पर नहीं।
- ये नियम उत्पादकों को EPR के तहत संग्रहण तंत्र तय करने की स्वतंत्रता देते हैं।
नीचे दिए गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिए:
(A) केवल 1 और 2
(B) केवल 1 और 3
(C) केवल 2 और 3
(D) 1, 2 और 3
सही उत्तर: (B) केवल 1 और 3
UPSC मुख्य परीक्षा (Mains) – पूर्ववर्ष प्रश्न
प्रश्न:
“चक्रीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में ई-वेस्ट प्रबंधन ने हाल के वर्षों में महत्वपूर्ण महत्त्व प्राप्त किया है।”भारत में ई-वेस्ट प्रबंधन की वर्तमान स्थिति का मूल्यांकन कीजिए और इसके सुधार के लिए एक ठोस रणनीति तैयार कीजिए।
(15 अंक, 250 शब्द) (2022)
स्रोत: द हिन्दू
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