समाचार में क्यों / संदर्भ
ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टारमर अक्टूबर 2025 में भारत की अपनी पहली आधिकारिक यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान, उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ व्यापक चर्चा की, ताकि दोनों देशों के बीच व्यापक रणनीतिक साझेदारी को और मज़बूत किया जा सके। यह यात्रा जुलाई 2025 में भारत-ब्रिटेन व्यापक आर्थिक और व्यापार समझौते (CETA) पर हस्ताक्षर के तुरंत बाद हुई। दोनों नेताओं ने व्यापार, रक्षा, प्रौद्योगिकी, शिक्षा और जलवायु कार्रवाई में सहयोग पर बल दिया और इस बात पर ज़ोर दिया कि तेज़ी से बदलती वैश्विक व्यवस्था में भारत और ब्रिटेन “स्वाभाविक सहयोगी” हैं।

भारत–ब्रिटेन संबंधों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- औपनिवेशिक विरासत: ब्रिटेन और भारत के बीच संबंध औपनिवेशिक काल (1858–1947) से चले आ रहे हैं, जब भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था।
- स्वतंत्रता के बाद का दौर: 1947 के बाद भारत ने राष्ट्रमंडल में बने रहने का निर्णय लिया। शीत युद्ध के दौरान दोनों देशों के बीच कई राजनीतिक मतभेद रहे।
- रणनीतिक नज़दीकी: 1990 के दशक में आर्थिक उदारीकरण के बाद संबंधों में नया आयाम जुड़ा।
- व्यापक रणनीतिक साझेदारी: रोडमैप 2030 के तहत 2021 में संबंधों को मज़बूती मिली और 2025 में CETA पर हस्ताक्षर के साथ व्यापार, रक्षा, तकनीक, शिक्षा और जलवायु सहयोग पर साझेदारी और गहरी हुई।
प्रधानमंत्री कीर स्टारमर की यात्रा के प्रमुख परिणाम (अक्टूबर 2025)
व्यापार और आर्थिक सहयोग
- भारत और ब्रिटेन ने CETA को लागू करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई, जिसका लक्ष्य 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 56 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़ाकर 100 अरब डॉलर से अधिक करना है।
- निवेश: भारतीय कंपनियों ने ब्रिटेन में 1.3 अरब पाउंड के निवेश की घोषणा की, जिससे लगभग 6,900 रोजगार सृजित होने की उम्मीद है।
- एफटीए के लाभ: व्हिस्की, ऑटोमोबाइल, रत्न-आभूषण, इंजीनियरिंग और कृषि जैसे प्रमुख क्षेत्रों में आयात शुल्क में कमी की गई।
- एमएसएमई को प्रोत्साहन: प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि एफटीए से रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे और भारत के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को लाभ होगा।
रक्षा और रणनीतिक साझेदारी
- मिसाइल प्रणालियाँ: ब्रिटेन ने भारत को हल्के बहुउद्देश्यीय मिसाइलों की आपूर्ति के लिए 350 मिलियन पाउंड का समझौता किया।
- संयुक्त विकास: समुद्री विद्युत प्रणोदन प्रणालियों के सह-विकास के लिए एक प्रारंभिक समझौते की घोषणा की गई।
- हिंद–प्रशांत सहयोग: दोनों देशों ने एक स्वतंत्र, खुला और नियम-आधारित हिंद-प्रशांत क्षेत्र के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।
शिक्षा और लोगों के बीच संबंध
- ब्रिटेन ने भारत में अपने अब तक के सबसे बड़े विश्वविद्यालय कैंपस की घोषणा की, जिसमें लैंकेस्टर और सरे सहित नौ ब्रिटिश विश्वविद्यालय परिसर खोलेंगे।
- इस कदम का उद्देश्य शिक्षा में सहयोग और कौशल विकास को बढ़ाना है, जो भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के लक्ष्यों के अनुरूप है।
- ब्रिटेन में रहने वाले 16 लाख भारतीय मूल के लोग दोनों देशों के बीच एक सशक्त सांस्कृतिक और आर्थिक सेतु का काम कर रहे हैं।
प्रौद्योगिकी, नवाचार और फिनटेक
- ग्लोबल फिनटेक फेस्ट में भारत ने ब्रिटिश निवेशकों को अपनी डिजिटल प्रगति में भागीदार बनने के लिए आमंत्रित किया।
- प्रधानमंत्री मोदी ने JAM ट्रिनिटी और UPI के माध्यम से भारत की डिजिटल क्रांति को रेखांकित करते हुए फिनटेक को सहयोग का एक प्रमुख स्तंभ बताया।
- ब्रिटिश कंपनियाँ कृत्रिम बुद्धिमत्ता, अर्धचालक, नवीकरणीय ऊर्जा और हरित प्रौद्योगिकी में सहयोग के लिए उत्साहित हैं।
जलवायु और वैश्विक सहयोग
- दोनों देशों ने COP26 और ग्रीन ग्रोथ इक्विटी फंड के तहत मौजूदा साझेदारी को आगे बढ़ाते हुए जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।
- ब्रिटेन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के समर्थन को दोहराया।
- साझा लोकतांत्रिक मूल्य और G20, राष्ट्रमंडल तथा हिंद-प्रशांत समूहों में साझा सदस्यता दोनों देशों के वैश्विक रणनीतिक सहयोग को मजबूत करती है।
भारत–ब्रिटेन संबंधों का महत्व
- आर्थिक लाभ: CETA से 99% से अधिक भारतीय वस्तुओं को शुल्क-मुक्त पहुंच मिलेगी, जिससे वस्त्र, इंजीनियरिंग, रत्न-आभूषण और कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।
- रणनीतिक प्रभाव: यह साझेदारी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की स्थिति को सुदृढ़ करती है और ब्रिटेन को चीन के विकल्प के रूप में सहयोगी प्रदान करती है।
- तकनीकी और अनुसंधान सहयोग: एआई, महत्वपूर्ण खनिज, जलवायु प्रौद्योगिकी, अर्धचालक और स्वास्थ्य नवाचार में साझेदारी।
- शिक्षा और गतिशीलता: अधिक शैक्षणिक साझेदारी, कौशल आदान-प्रदान और सरल वीज़ा व्यवस्था से लोगों के बीच संबंध मज़बूत होंगे।
- सांस्कृतिक जुड़ाव: बॉलीवुड-ब्रिटेन सहयोग और प्रवासी भारतीयों की भूमिका दोनों देशों के बीच सॉफ्ट पावर को बढ़ाती है।
भारत–ब्रिटेन संबंधों में प्रमुख चुनौतियाँ
- खालिस्तान उग्रवाद: भारत ने ब्रिटेन में हो रही भारत-विरोधी गतिविधियों पर चिंता जताई है और सख्त कदमों की उम्मीद की है।
- ब्रिटेन की पाकिस्तान नीति: ब्रिटेन और पाकिस्तान के करीबी संबंध भारत के लिए एक संवेदनशील मुद्दा हैं।
- प्रत्यर्पण में देरी: आर्थिक अपराधियों से जुड़े कई प्रत्यर्पण मामलों में ब्रिटिश अदालतों में कानूनी जटिलताएँ आती रही हैं।
- व्यापारिक संवेदनशीलता: भारत की सार्वजनिक खरीद में रियायतें आत्मनिर्भर भारत के विनिर्माण लक्ष्यों को प्रभावित कर सकती हैं।
- भूराजनीतिक मतभेद: रूस-यूक्रेन युद्ध और मानवाधिकार जैसे मुद्दों पर दृष्टिकोण में अंतर।
- रक्षा सहयोग की गति: फ्रांस और अमेरिका जैसे अन्य साझेदारों की तुलना में बड़े रक्षा प्रोजेक्ट्स में प्रगति अपेक्षाकृत धीमी रही है।
आगे की राह
- रणनीतिक गहराई: उभरती प्रौद्योगिकियों, रक्षा उत्पादन और समुद्री सुरक्षा में सहयोग को बढ़ावा देना।
- संतुलित व्यापार वार्ता: घरेलू प्राथमिकताओं की रक्षा करते हुए एमएसएमई क्षेत्र को लाभ पहुंचाने वाले समझौते सुनिश्चित करना।
- उग्रवाद पर नियंत्रण: खालिस्तानी गतिविधियों जैसी सुरक्षा चिंताओं से निपटने के लिए संस्थागत सहयोग को मज़बूत करना।
- जन–जन के बीच जुड़ाव: शिक्षा सहयोग, छात्र आदान-प्रदान और सांस्कृतिक संपर्क को और विस्तारित करना।
- वैश्विक समन्वय: G20, राष्ट्रमंडल और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सुधारों जैसे बहुपक्षीय मंचों में संयुक्त प्रयासों को बढ़ाना।
निष्कर्ष
भारत-ब्रिटेन संबंध अब केवल औपनिवेशिक इतिहास तक सीमित नहीं हैं, बल्कि साझा लोकतांत्रिक मूल्यों और आर्थिक सहयोग पर आधारित एक आधुनिक रणनीतिक साझेदारी बन चुके हैं। प्रधानमंत्री कीर स्टारमर की 2025 की यात्रा इस साझेदारी को एक नए स्तर पर ले जाने का प्रतीक है — विशेषकर व्यापार, प्रौद्योगिकी, शिक्षा और रक्षा के क्षेत्र में। यद्यपि कुछ चुनौतियाँ बनी हुई हैं, परंतु संतुलित और व्यावहारिक दृष्टिकोण से दोनों देश एक स्थिर और समृद्ध हिंद-प्रशांत तथा बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में अहम भागीदार बन सकते हैं।