भारत में आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ: एक आसन्न पारिस्थितिक और आर्थिक चुनौती

यूपीएससी प्रासंगिकता:

  • प्रारंभिक परीक्षा: आक्रामक प्रजातियाँ (Invasive Species)।
  • मुख्य परीक्षा: जीएस पेपर-3, पर्यावरण और पारिस्थितिकी।

ख़बरों में क्यों?

भारत आक्रामक विदेशी प्रजातियों (IAS—गैर-देशी पौधे, जानवर और रोगजनक) के बढ़ते खतरे का सामना कर रहा है। ये प्रजातियाँ पारिस्थितिक तंत्र को बाधित करती हैं, देशी जैव विविधता को खतरे में डालती हैं और आजीविका पर प्रभाव डालती हैं।

  • स्थलीय और जलीय प्रजातियों सहित 139 स्थापित IAS हैं।
  • ये “चुपके से हमलावर” (stealth invaders) पारिस्थितिक असंतुलन पैदा कर रहे हैं, मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ा रहे हैं और गंभीर आर्थिक नुकसान पहुँचा रहे हैं।
  • हाल के अध्ययनों में इस चुनौती का प्रबंधन करने के लिए समांतर अनुसंधान, संरक्षण प्रयास, नीतिगत कार्रवाई और हितधारक जुड़ाव की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया गया है।

पृष्ठभूमि

परिभाषा और कानूनी संदर्भ

  • IAS (Invasive Alien Species): गैर-देशी जीव जो अपने प्राकृतिक आवास के बाहर प्रवेश करते हैं, जीवित रहते हैं, पनपते हैं और देशी प्रजातियों को प्रतिस्पर्धा में पछाड़ देते हैं (CBD परिभाषा)।
  • भारत: वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 (संशोधित 2022) IAS को ऐसी प्रजातियों के रूप में परिभाषित करता है जो वन्यजीवों या आवासों को खतरा पहुँचाती हैं।
  • प्राकृतिकृत प्रजातियाँ (Naturalised species): विदेशी प्रजातियाँ जो मानवीय हस्तक्षेप के बिना स्वयं-प्रतिस्थापन आबादी बनाए रखती हैं।

वैश्विक महत्त्व

  • IAS जैव विविधता हानि के पाँच प्रमुख चालकों में से एक हैं, अन्य चालक हैं: भूमि उपयोग परिवर्तन, प्रत्यक्ष शोषण, जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण
  • दुनिया भर में लगभग 37,000 विदेशी प्रजातियाँ मौजूद हैं, जिनमें से लगभग 3,500 पारिस्थितिक या आर्थिक नुकसान पहुँचा रही हैं।

भारत में ऐतिहासिक संदर्भ

  • कई IAS औपनिवेशिक काल के दौरान लाए गए, उदाहरण: लैंटाना कैमरा (Lantana camara) और प्रोसोपिस जूलिफ्लोरा (Prosopis juliflora)। इन्हें शुरू में सजावटी या मिट्टी के स्थिरीकरण (soil stabilization) के लिए लाया गया था।
  • जलीय IAS भारत में जल कृषि, मछलीघर व्यापार, मच्छर नियंत्रण और खेल मछली पकड़ने (sport fishing) के माध्यम से प्रवेश कर गए।

आक्रामक प्रजातियों के उदाहरण

  • स्थलीय: लैंटाना कैमरा, प्रोसोपिस जूलिफ्लोरा
  • जलीय: जलकुंभी (Water hyacinth), एलीगेटर वीड (Alligator weed), डकवीड, लाल कान वाला स्लाइडर (Red-eared slider), अफ्रीकी कैटफ़िश, नाइल तिलापिया, लाल पेट वाला पिरान्हा, एलीगेटर गार
  • फसल कीट: डेक्कन क्षेत्र में कपास मीलीबग (Cotton mealybug)

प्रभाव: देशी प्रजातियों का विस्थापन, शिकारी-शिकार गतिशीलता में बदलाव, आवास का क्षरण।

IAS द्वारा उत्पन्न चुनौतियाँ

1. स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र

  • लैंटाना कैमरा: हाथियों के लिए अरुचिकर, उन्हें नकदी फसलों की ओर मजबूर करता है → मानव-पशु संघर्ष बढ़ता है।
  • प्रोसोपिस जूलिफ्लोरा: अत्यधिक पानी का उपभोग करता है, घास के मैदान नष्ट करता है, खारे पानी का अतिक्रमण करता है, वन्यजीवों को तनाव देता है और पारंपरिक चरवाहा नेटवर्क को बाधित करता है।

पारिस्थितिक प्रभाव: आवास विखंडन, शिकारी-शिकार असंतुलन, चराई संसाधनों में कमी।

2. जलीय पारिस्थितिक तंत्र

  • प्रमुख आक्रामक पौधे: जलकुंभी, एलीगेटर वीड, डकवीड, वॉटर लेट्यूस।
  • प्रभाव: सूर्य के प्रकाश को अवरुद्ध करता है, ऑक्सीजन कम करता है, 1,070 मीठे पानी की मछली प्रजातियों को खतरा।
  • जलीय विदेशी मछलियाँ भारत के डल झील (कश्मीर) से लेकर तेलंगाना और केरल की झीलों तक फैली हैं।

3. आर्थिक और आजीविका पर प्रभाव

  • IAS कृषि, वानिकी, मत्स्य पालन और आजीविका को खतरा पहुँचाती हैं।
  • भारत में अनुमानित आर्थिक नुकसान: USD 182.6 बिलियन
  • वैश्विक वार्षिक लागत: USD 423 बिलियन

4. प्रभाव बढ़ाने वाले कारक

  • जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, आवास हानि, मानवीय गड़बड़ी IAS के प्रभावों को बढ़ाते हैं।
  • IAS का संबंध SDG 15 (भूमि पर जीवन) से है।

5. खराब दस्तावेज़ीकरण और अनुसंधान अंतराल

  • आक्रमण इतिहास, वितरण और पारिस्थितिक प्रभावों पर व्यापक डेटा की कमी।

  • भारत में मीठे पानी में IAS का अध्ययन अभी प्रारंभिक चरण में है।

IAS का प्रभाव स्तर:

  • प्रजाति स्तर: उत्तरजीविता, प्रजनन, स्थानीय विलुप्ति
  • जनसंख्या स्तर: आकार, आनुवंशिक विविधता, सामुदायिक संरचना
  • पारिस्थितिकी तंत्र स्तर: मिट्टी, जल की गुणवत्ता, पोषक तत्व चक्रण, खाद्य जाल, ऊर्जा हस्तांतरण

संरक्षण दुविधा और प्रबंधन पहलें

संरक्षण दुविधा

  • प्रश्न: क्या IAS के सभी प्रभावों का दस्तावेज़ीकरण होने तक प्रतीक्षा करें या समवर्ती रूप से कार्रवाई करें?
  • सर्वसम्मति: प्रतीक्षा अव्यावहारिक है; समांतर दस्तावेज़ीकरण और संरक्षण आवश्यक
  • स्थानीय प्रभाव अध्ययन और वैश्विक ज्ञान का समन्वय आवश्यक।
  • संचयी प्रभाव मापने, प्रजातियों और हॉटस्पॉट प्राथमिकता देने के लिए मानकीकृत मात्रात्मक तरीके विकसित करना।
  • विभिन्न हितधारकों को शामिल करना: शोधकर्ता, स्थानीय समुदाय, नीति निर्माता, किसान।

प्रबंधन पहलें

वैश्विक स्तर:

  • CBD अनुच्छेद 8(h): IAS को रोकना, नियंत्रित करना या समाप्त करना।
  • कुनमिंग-मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क: 2030 तक IAS के प्रभावों को 50% तक कम करना।
  • IUCN आक्रामक प्रजाति विशेषज्ञ समूह (ISSG): वैश्विक डेटाबेस और प्रबंधन सहायता।

भारत-विशिष्ट:

  • राष्ट्रीय जैव विविधता कार्य योजना (NBAP), लक्ष्य 4: IAS की रोकथाम और प्रबंधन।
  • राष्ट्रीय कार्य योजना IAS (NAPINVAS): शीघ्र पता लगाना, रोकथाम, नियंत्रण और प्रबंधन।
  • राष्ट्रीय आक्रामक प्रजाति सूचना केंद्र (NISIC): जागरूकता और सूचना प्रसार।
  • पादप संगरोध आदेश, 2003: आयात के माध्यम से प्रवेश रोकना।

आगे की राह

  1. प्राथमिकता निर्धारण: उच्च प्रभाव वाली प्रजातियों और संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र।
  2. एकीकृत प्रबंधन: स्थलीय और जलीय रणनीतियों का संयोजन।
  3. हितधारक जुड़ाव: स्थानीय समुदाय, शोधकर्ता और नीति निर्माता शामिल करें।
  4. निगरानी और अनुसंधान: दीर्घकालिक अध्ययन और मानकीकृत प्रभाव आकलन।
  5. नीति और प्रवर्तन: रोकथाम, नियंत्रण और उन्मूलन के लिए विनियम मजबूत करें।

निष्कर्ष;

आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ भारत की जैव विविधता, अर्थव्यवस्था और मानव कल्याण के लिए बहुआयामी खतरा हैं।

  • कार्रवाई में देरी या कमजोर दस्तावेज़ीकरण इन “चुपके से हमलावरों” को अपरिवर्तनीय पारिस्थितिक क्षति पहुँचाने देता है।
  • साक्ष्य-आधारित, सक्रिय और समावेशी दृष्टिकोण—जो अनुसंधान, नीति और हितधारक जुड़ाव को जोड़ता है—भारत की प्राकृतिक विरासत की रक्षा और सतत पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए अत्यंत आवश्यक है।

यूपीएससी प्रारंभिक परीक्षा – अभ्यास प्रश्न

विषय: आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ (Invasive Alien Species – IAS)

प्र1. भारत में आक्रामक विदेशी प्रजातियों के संबंध में सही कथन चुनें:
  1. लैंटाना कैमरा (Lantana camara) को ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में सजावटी झाड़ी के रूप में भारत में लाया गया था।
  2. प्रोसोपिस जूलिफ्लोरा (Prosopis juliflora) को गुजरात के बन्नी घास के मैदानों में मिट्टी के लवणीकरण (soil salinisation) का मुकाबला करने के लिए लाया गया था।
  3. जलकुंभी (Water hyacinth) को विश्व स्तर पर सबसे ख़राब आक्रामक जलीय पौधों में से एक माना जाता है।
  4. भारत में मीठे पानी के आक्रमण जीव विज्ञान (Freshwater invasion biology) पर सभी आक्रामक प्रजातियों के व्यापक डेटा के साथ एक सुस्थापित अनुशासन है।

विकल्प:
 A. केवल 1, 2 और 3
 B. केवल 1 और 4
 C. केवल 2, 3 और 4
 D. उपरोक्त सभी

उत्तर: A. केवल 1, 2 और 3

व्याख्या:

  • कथन 1 और 3 सही हैं। लैंटाना को औपनिवेशिक काल में भारत में लाया गया और जलकुंभी प्रमुख आक्रामक जलीय प्रजाति है।
  • कथन 2 सही है; प्रोसोपिस जूलिफ्लोरा को मिट्टी के स्थिरीकरण और लवणीकरण जैसी विभिन्न उद्देश्यों के लिए लाया गया था।
  • कथन 4 गलत है। भारत में मीठे पानी में IAS का अध्ययन अभी प्रारंभिक चरण में है और व्यापक डेटा का अभाव है।
प्र2. आक्रामक विदेशी प्रजातियों के प्रभावों में से सही चुनें:
  1. देशी प्रजातियों का विस्थापन और आवास में परिवर्तन।
  2. देशी पारिस्थितिक तंत्रों में मिट्टी की उर्वरता और पोषक तत्व चक्रण में सुधार।
  3. शिकारी-शिकार (predator-prey) संबंधों का विखंडन।
  4. जानवरों की आवाजाही में बदलाव के कारण मानव-वन्यजीव संघर्षों में वृद्धि।

विकल्प:
 A. केवल 1, 2 और 3
 B. केवल 1, 3 और 4
 C. केवल 2 और 4
 D. उपरोक्त सभी

उत्तर: B. केवल 1, 3 और 4

व्याख्या:

  • कथन 1, 3 और 4 सही हैं। आक्रामक प्रजातियाँ देशी प्रजातियों का विस्थापन करती हैं, शिकारी-शिकार असंतुलन उत्पन्न करती हैं और मानव-पशु संघर्ष बढ़ाती हैं।
  • कथन 2 गलत है। IAS आमतौर पर पारिस्थितिक तंत्र में नकारात्मक प्रभाव डालती हैं, जैसे पोषक तत्व चक्रण को बाधित करना और मिट्टी की गुणवत्ता घटाना।
प्र3;
अभिकथन (A): आक्रामक विदेशी प्रजातियों पर कार्रवाई करने से पहले पूर्ण डेटा की प्रतीक्षा करने के बजाय समानांतर दस्तावेज़ीकरण और संरक्षण बेहतर माना जाता है।

कारण (R):
 पूर्ण दस्तावेज़ीकरण की प्रतीक्षा करने से IAS को फैलने और अपरिवर्तनीय क्षति पहुँचाने की अनुमति मिलती है।

विकल्प:
 A. A और R दोनों सत्य हैं, और R, A की सही व्याख्या है।
 B. A और R दोनों सत्य हैं, लेकिन R, A की सही व्याख्या नहीं है।
 C. A सत्य है, लेकिन R असत्य है।
 D. A असत्य है, लेकिन R सत्य है।

उत्तर: A. A और R दोनों सत्य हैं, और R, A की सही व्याख्या है।

व्याख्या:

  • अभिकथन (A) सही है क्योंकि IAS से निपटने के लिए प्रतीक्षा करने की बजाय समानांतर दस्तावेज़ीकरण और संरक्षण आवश्यक है।
  • कारण (R) भी सही है। देरी से “चुपके से हमलावर” प्रजातियाँ अपरिवर्तनीय पारिस्थितिक क्षति पहुँचा सकती हैं।
  • चूंकि कारण कार्रवाई की आवश्यकता को स्पष्ट करता है, इसलिए R, A की सही व्याख्या है।
यूपीएससी मुख्य परीक्षा – अभ्यास प्रश्न

प्र1. “आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ (Invasive Alien Species) भारत की जैव विविधता, अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए एक गंभीर ख़तरा पैदा करती हैं।” चुनौतियों और संरक्षण रणनीतियों पर प्रकाश डालते हुए आलोचनात्मक चर्चा कीजिए। (150–200 शब्द)

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