सुविधा की कीमत: भारत में बढ़ता ई-कचरा संकट और उससे होने वाले स्वास्थ्य संबंधी खतरे

यूपीएससी प्रासंगिकताप्रारंभिक (भारत तीसरा सबसे बड़ा ई-कचरा उत्पादक है…) मुख्य परीक्षा– जीएस पेपर-3, पर्यावरण

चर्चा में क्यों?

भारत ने 2025 में 2.2 मिलियन टन (MT) ई-कचरा उत्पन्न किया, जिससे यह चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ई-कचरा उत्पादक बन गया। औपचारिक पुनर्चक्रण की क्षमता होने के बावजूद, इस ई-कचरे के आधे से अधिक हिस्से का प्रसंस्करण अभी भी अनौपचारिक रूप से किया जाता है, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरणीय संकट बढ़ रहा है।

पृष्ठभूमि

भारत का डिजिटल परिवर्तन संचार, शिक्षा, वाणिज्य और शासन में क्रांति लेकर आया है। स्मार्टफोन से लेकर स्मार्ट घरों तक, आधुनिक सुविधाएँ शहरी जीवन का आधार बन गई हैं।
 हालाँकि, इस तकनीकी छलांग के पीछे एक ख़तरनाक पहलू छिपा हुआ है। इलेक्ट्रॉनिक कचरा (ई-कचरा) — जो दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ने वाला ठोस कचरा है — भारत की सबसे ज़रूरी लेकिन कम पहचानी जाने वाली शहरी चुनौतियों में से एक बन गया है।

ई-कचरे का बढ़ता बोझ

  • बढ़ती मात्रा: भारत ने 2017-18 में 0.71 मीट्रिक टन ई-कचरा उत्पन्न किया था। 2025 तक यह 150% बढ़कर 2.2 मीट्रिक टन हो जाएगा, और 2030 तक इसके दोगुना होने का अनुमान है।
  • शहरी केंद्र: 65 शहरों से 60% से अधिक ई-कचरा उत्पन्न होता है। हॉटस्पॉट में शामिल हैं:
    • सीलमपुर और मुस्तफ़ाबाद (दिल्ली)
    • मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)
    • भिवंडी (महाराष्ट्र)
  • औपचारिक बनाम अनौपचारिक: भारत में 322 पंजीकृत रीसाइक्लिंग इकाइयाँ हैं जिनकी संयुक्त क्षमता सालाना 2.2 मीट्रिक टन है, फिर भी अनौपचारिक रीसाइक्लिंग का बोलबाला है। अधिकांश ई-कचरा कबाड़ीवालों और झुग्गी-झोपड़ियों तक पहुँचता है।
  • उदाहरण: एशिया के सबसे बड़े ई-कचरा बाज़ार, सीलमपुर में, तारों और सर्किट बोर्डों को खुले में जलाने के कारण वायु गुणवत्ता गंभीर रूप से प्रभावित होती है।

ई-कचरा और मानव स्वास्थ्य

ई-कचरा केवल एक पर्यावरणीय खतरा नहीं है — यह एक गंभीर जन स्वास्थ्य संकट भी है, खासकर उन श्रमिकों और समुदायों के लिए जो अनौपचारिक पुनर्चक्रण केंद्रों के आसपास रहते हैं। यह लोगों के स्वास्थ्य को कई प्रकार से प्रभावित करता है:

1. श्वसन संबंधी बीमारियाँ
 अनौपचारिक पुनर्चक्रण (जैसे तारों और सर्किट बोर्डों को जलाना) से जहरीली गैसें और सूक्ष्म कण पदार्थ (PM₂.₅, PM₁₀) निकलते हैं।
 ये कण फेफड़ों में गहराई तक पहुँच जाते हैं, जिससे पुरानी खांसी, ब्रोंकाइटिस, अस्थमा और साँस लेने में कठिनाई होती है।

प्रमाण:

  • बेनिन, पश्चिम अफ्रीका में 33.1% ई-कचरा श्रमिकों को श्वसन संबंधी समस्याएँ थीं, जबकि अन्य समूहों में यह संख्या 21.6% थी।
  • भारत में (2025 का अध्ययन, MDPI Applied Sciences) 76-80% अनौपचारिक पुनर्चक्रणकर्ता अस्थमा, पुरानी ब्रोंकाइटिस या लगातार खांसी से पीड़ित थे।

2. तंत्रिका संबंधी क्षति और विकासात्मक विलंब
 ई-कचरा सीसा, पारा और कैडमियम जैसे तंत्रिकाविष छोड़ता है।
 बच्चे सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं क्योंकि उनका शरीर विषाक्त पदार्थों को तेज़ी से अवशोषित करता है और मस्तिष्क अभी विकसित हो रहा होता है।

प्रभाव:

  • बुद्धि-लब्धि में कमी, सीखने में कठिनाई, व्यवहार संबंधी समस्याएँ
  • ध्यान की कमी, स्मृति हानि, समन्वय में कमी
  • दीर्घकालिक जोखिम: हार्मोन में व्यवधान, डीएनए क्षति

साक्ष्य:

  • 2023 में 20 अध्ययनों (मुख्यतः चीन) की समीक्षा में पाया गया कि ई-कचरा केंद्रों में बच्चों के रक्त में सीसे का स्तर अक्सर 5 µg/dL से अधिक होता है, जो मस्तिष्क क्षति का कारण बनने के लिए पर्याप्त है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने चेतावनी दी है कि अनौपचारिक ई-कचरे के पुनर्चक्रण के कारण दुनिया भर में लाखों बच्चों को स्थायी तंत्रिका संबंधी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।

3. त्वचा और नेत्र विकार
 सुरक्षात्मक उपकरणों के बिना उपकरणों, तारों और अम्लों को सीधे छूने से:

  • चकत्ते, रासायनिक जलन, त्वचाशोथ और त्वचा के घाव
  • विषाक्त धुएं और रसायनों से आँखों में जलन

प्रमाण:

  • 2024 की एक समीक्षा में कुछ समूहों में 100% तक अनौपचारिक पुनर्चक्रणकर्ताओं में त्वचा संबंधी विकार पाए गए।
  • चीन के गुइयू में, श्रमिकों ने विषाक्त मिट्टी और पानी से जुड़ी पुरानी गैस्ट्राइटिस, त्वचा के घाव, सिरदर्द, गर्भपात और समय से पहले जन्म की सूचना दी।

4. आनुवंशिक और प्रणालीगत प्रभाव
 दीर्घकालिक संपर्क के कारण स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं:

  • डीएनए क्षति और आनुवंशिक उत्परिवर्तन
  • एपिजेनेटिक परिवर्तन, जो जीन अभिव्यक्ति को बदलते हैं
  • ऑक्सीडेटिव तनाव, कमजोर प्रतिरक्षा और कैंसर का जोखिम बढ़ता है

साक्ष्य:
 प्रदूषित पुनर्चक्रण समूहों में बच्चों में प्रतिरक्षा विकार और सूजन संबंधी मार्करों का उच्च स्तर देखा गया है।

5. सिंडीमिक प्रभाव (एक साथ कई संकट)
ई-कचरे के स्वास्थ्य पर प्रभाव अकेले नहीं होते — यह गरीबी, कुपोषण और स्वास्थ्य सेवा की कमी के साथ मिलकर काम करता है।
इससे एक “सिंडेमिक” पैदा होता है, जहाँ कई बीमारियाँ कमजोर आबादी में एक-दूसरे को और बिगाड़ देती हैं।

पैमाना:

  • WHO के अनुमान के अनुसार, दुनिया भर में 1.8 करोड़ बच्चे और 1.3 करोड़ महिलाएँ अनौपचारिक कचरा क्षेत्रों में काम करती हैं या उनके आस-पास रहती हैं।
  • भारत में, बच्चे अक्सर घरेलू कार्यशालाओं में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को अलग करने में माता-पिता की मदद करते हैं, जिससे उन्हें जीवन भर के स्वास्थ्य जोखिम का सामना करना पड़ता है।

संक्षेप में:
 ई-कचरा न केवल पर्यावरण को प्रदूषित करता है, बल्कि फेफड़ों, मस्तिष्क, त्वचा और जीन को भी विषाक्त कर देता है। सबसे अधिक प्रभावित वे लोग हैं जो अनौपचारिक रीसाइक्लिंग केंद्रों में काम करते हैं — गरीब मजदूर, महिलाएँ और बच्चे — जहाँ सुरक्षा उपकरणों और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी इस संकट को और बढ़ा देती है।

भारत के ई-कचरा प्रबंधन में नीतिगत प्रगति और कमियाँ

1. नीतिगत प्रगति
 ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2022 ने मज़बूत सुरक्षा उपाय पेश किए हैं, जिनकी प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं:

  • विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (ईपीआर): इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बनाने या बेचने वाली कंपनियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उपयोग के बाद ये उपकरण एकत्रित किए जाएँ और पुनर्चक्रण की ज़िम्मेदारी उठाई जाए।
  • अनिवार्य पंजीकरण: विखंडनकर्ताओं और पुनर्चक्रणकर्ताओं का पंजीकरण आवश्यक है, जिससे जवाबदेही सुनिश्चित हो सके।
  • औपचारिकीकरण के लिए प्रोत्साहन: कंपनियों को अनौपचारिक तरीकों के बजाय वैज्ञानिक और सुरक्षित पुनर्चक्रण विधियों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
  • बेहतर निगरानी ढाँचा: ई-कचरा संग्रहण और पुनर्चक्रण पर निगरानी रखने के लिए प्रभावी तंत्र।

कागज़ पर, ये नियम पहले के संस्करणों की तुलना में एक महत्वपूर्ण कदम आगे हैं।

2. कार्यान्वयन में कमियाँ
 मज़बूत नियमों के बावजूद, ज़मीनी स्तर पर क्रियान्वयन अभी भी कमज़ोर है।

  • अनौपचारिक क्षेत्र का प्रभुत्व: अधिकांश ई-कचरा अभी भी कबाड़ीवालों और अनौपचारिक विक्रेताओं द्वारा संभाला जाता है।
  • औपचारिक प्रसंस्करण की कमी: 2023-24 में, भारत के केवल 43% ई-कचरे का ही औपचारिक प्रणाली में आधिकारिक रूप से प्रसंस्करण हुआ।

  • ईपीआर क्रेडिट संबंधी समस्याएँ:

    • ईपीआर क्रेडिट (प्रमाणपत्र जिन्हें उत्पादकों को अनुपालन दर्शाने के लिए खरीदना आवश्यक है) की कीमतों पर सरकार ने सीमा लगा दी है।
    • निर्माताओं का तर्क है कि इस सीमा के कारण अनुपालन कठिन हो जाता है और प्रोत्साहन कम हो जाते हैं।
    • इसके कारण कानूनी विवाद पैदा हुए हैं, जिससे नियमों का सुचारू प्रवर्तन प्रभावित हो रहा है।

3. जोखिम

  • कागज़ पर नीति, ज़मीनी स्तर पर कमज़ोर: सख्त क्रियान्वयन के बिना, नियम स्वास्थ्य और पर्यावरणीय खतरों को कम नहीं कर पाएँगे।
  • कानूनी विवाद: ईपीआर क्रेडिट मूल्य निर्धारण पर विवाद उत्पादकों को वास्तविक अनुपालन से हतोत्साहित कर सकता है।
  • अनौपचारिक क्षेत्र पर अंकुश नहीं: अनौपचारिक श्रमिकों को औपचारिक प्रणाली में शामिल किए बिना, असुरक्षित पुनर्चक्रण प्रथाएँ बनी रहेंगी।

संक्षेप में:
 भारत में ई-कचरा प्रबंधन के लिए प्रगतिशील नियम हैं, लेकिन कमज़ोर क्रियान्वयन, कानूनी विवाद और अनौपचारिक क्षेत्र का प्रभुत्व इन प्रगतियों को सीमित कर रहे हैं। जब तक इन कमियों को दूर नहीं किया जाता, सही नीतियों के बावजूद भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरणीय संकट बढ़ने का खतरा बना रहेगा।

चुनौतियाँ

  • अनौपचारिक क्षेत्र का प्रभुत्व: कबाड़ीवाले ई-कचरे के प्रबंधन में केंद्रीय भूमिका निभाते हैं।
  • स्वास्थ्य संबंधी खतरों की अनदेखी: कर्मचारियों के पास पीपीई, स्वास्थ्य जाँच और सामाजिक सुरक्षा का अभाव है।
  • नियामक कमज़ोरी: प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों में कर्मचारियों और धन की कमी बनी हुई है।
  • कम जन जागरूकता: नागरिक अक्सर गैर-ज़िम्मेदाराना तरीके से इलेक्ट्रॉनिक सामान फेंक देते हैं।
  • तकनीकी कमियाँ: किफ़ायती, स्थानीय रीसाइक्लिंग तकनीक का अभाव विस्तार को सीमित करता है।

आगे की राह

ई-कचरे के विषाक्त चक्र को तोड़ने के लिए, भारत को एक बहुआयामी और व्यवस्थित रणनीति अपनानी होगी:

1. अनौपचारिक क्षेत्र को औपचारिक बनाएँ

  • अनौपचारिक श्रमिकों को विनियमित प्रणाली में एकीकृत करें।
  • कौशल प्रमाणन, सुरक्षा उपकरण (पीपीई), सुरक्षित रीसाइक्लिंग अवसंरचना, स्वास्थ्य सेवा पहुँच और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करें।
  • यह न केवल श्रमिकों की सुरक्षा करता है, बल्कि पर्यावरणीय मानदंडों का अनुपालन भी सुनिश्चित करता है।

2. प्रवर्तन को मज़बूत बनाएँ

  • प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को धन, तकनीक और कानूनी अधिकार प्रदान करें।
  • हर फेंके गए उपकरण का पता लगाने के लिए डिजिटल ई-कचरा ट्रैकिंग सिस्टम लागू करें।
  • उत्पादकों और पुनर्चक्रणकर्ताओं के लिए पर्यावरणीय ऑडिट अनिवार्य करें।
  • ईपीआर (विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व) में खामियों को दूर करने के लिए गैर-अनुपालन पर कठोर दंड लगाएँ।

3. स्वास्थ्य निगरानी का विस्तार करें

  • रोगों के शीघ्र निदान के लिए ई-कचरा हॉटस्पॉट में चिकित्सा शिविर स्थापित करें।
  • बच्चों और कमजोर समूहों पर दीर्घकालिक महामारी विज्ञान संबंधी अध्ययन करें।
  • प्रभावित श्रमिकों और परिवारों के लिए लक्षित स्वास्थ्य सेवा योजनाएँ प्रदान करें।

4. नवाचार और बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा दें

  • स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप कम लागत वाली, पर्यावरण-अनुकूल पुनर्चक्रण तकनीकों के लिए अनुसंधान एवं विकास का समर्थन करें।
  • परिवहन लागत कम करने और दक्षता बढ़ाने के लिए विकेन्द्रीकृत पुनर्चक्रण केंद्र विकसित करें।
  • औपचारिक पुनर्चक्रण सुविधाओं में निवेश के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करें।

5. जन जागरूकता बढ़ाएँ

  • ई-कचरे के सुरक्षित निपटान और पुनर्चक्रण पर जन जागरूकता अभियान चलाएँ।
  • कम उम्र से ही ज़िम्मेदारी का निर्माण करने के लिए स्कूली पाठ्यक्रम में ई-कचरा शिक्षा को शामिल करें।
  • नागरिकों को पुराने गैजेट औपचारिक संग्रह केंद्रों पर जमा करने के लिए प्रोत्साहित करें।

निष्कर्ष

भारत एक खतरनाक मोड़ पर खड़ा है। विकास को गति देने वाली डिजिटल क्रांति, जन स्वास्थ्य और पर्यावरणीय पतन की कीमत पर नहीं आ सकती। बढ़ते ई-कचरे के पहाड़ को सामान्य नहीं माना जाना चाहिए।

आगे बढ़ने के लिए कार्रवाई इस प्रकार होनी चाहिए:

  • विज्ञान-आधारित: साक्ष्य-आधारित पुनर्चक्रण और निगरानी
  • न्याय-आधारित: कमजोर श्रमिकों और समुदायों की सुरक्षा
  • भविष्य-उन्मुख: यह सुनिश्चित करना कि प्रौद्योगिकी मानव गरिमा और स्वास्थ्य को बेहतर बनाए, न कि कमज़ोर करे

तभी भारत एक स्थायी और सुरक्षित डिजिटल परिवर्तन प्राप्त कर सकता है।

यूपीएससी प्रारंभिक परीक्षा अभ्यास प्रश्न

प्रश्न 1: भारत में ई-कचरे के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

  1. अमेरिका और चीन के बाद भारत दुनिया में ई-कचरा उत्पन्न करने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश है।
  2. ई-कचरा (प्रबंधन) नियम 2016 ने विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (ईपीआर) की अवधारणा प्रस्तुत की।
  3. भारत में अधिकांश ई-कचरा सीपीसीबी द्वारा विनियमित औपचारिक पुनर्चक्रण इकाइयों के माध्यम से संसाधित किया जाता है।

कौन सा/से कथन सही हैं?
 (A) केवल 1 और 2
 (B) केवल 2 और 3
 (C) केवल 1 और 3
 (D) 1, 2 और 3

उत्तर: (A) केवल 1 और 2

स्पष्टीकरण:

  • भारत तीसरा सबसे बड़ा ई-कचरा उत्पादक देश है — यह सत्य है।
  • ईपीआर की अवधारणा वास्तव में 2016 के नियमों में प्रस्तुत की गई थी — यह भी सत्य है।
  • अधिकांश ई-कचरे का प्रबंधन अनौपचारिक रूप से होता है (लगभग 90%), औपचारिक प्रणाली द्वारा नहीं — इसलिए कथन 3 असत्य है।

प्रश्न 2: निम्नलिखित में से कौन से स्वास्थ्य संबंधी खतरे ई-कचरे के संपर्क से जुड़े हैं?

  1. सीसा विषाक्तता बच्चों के मस्तिष्क के विकास को प्रभावित करती है।
  2. प्लास्टिक और तारों के जलने से श्वसन संबंधी बीमारी।
  3. पारे के संपर्क में आने से गुर्दे को नुकसान।
  4. मोटापा और मधुमेह।

सही उत्तर चुनें:
 (A) केवल 1, 2 और 3
 (B) केवल 2 और 4
 (C) केवल 1 और 3
 (D) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (A) केवल 1, 2 और 3

स्पष्टीकरण:

  • सीसा, पारा, कैडमियम आदि तंत्रिकाविष और अन्य विषाक्त पदार्थ हैं, जो मस्तिष्क, गुर्दे और श्वसन तंत्र को प्रभावित करते हैं।
  • मोटापा और मधुमेह ई-कचरे के प्रत्यक्ष संपर्क का परिणाम नहीं हैं।

UPSC मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न

प्रश्न: भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ई-कचरा उत्पादक देश है, फिर भी इसके 90% से अधिक ई-कचरे का प्रबंधन अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा किया जाता है। भारत में ई-कचरा प्रबंधन की चुनौतियों पर चर्चा कीजिए और इससे जुड़े स्वास्थ्य एवं पर्यावरणीय जोखिमों से निपटने के लिए एक बहुआयामी रणनीति सुझाइए।

(10 अंक, 150 शब्द)

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