1.4 अरब भारतीयों के लिए स्वास्थ्य सेवा का निर्माण: पहुँच से लेकर सामर्थ्य तक

चर्चा में क्यों ?

भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली एक निर्णायक मोड़ पर है — जिसका लक्ष्य 1.4 अरब नागरिकों को सार्वभौमिक, किफ़ायती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना है। हाल के घटनाक्रमों आयुष्मान भारत (PMJAY) का विस्तार, बीमा प्रीमियम संशोधन के प्रस्ताव और डिजिटल स्वास्थ्य नवाचार ने एक प्रणालीगत परिवर्तन की तत्काल आवश्यकता को उजागर किया है।

 पृष्ठभूमि : भारत का स्वास्थ्य सेवा परिदृश्य

भारत की स्वास्थ्य प्रणाली बढ़ती ज़रूरतों लेकिन सीमित संसाधनों के विरोधाभास को दर्शाती है।

  • सार्वजनिक व्यय :
    भारत अपने GDP का केवल 2.1% स्वास्थ्य पर खर्च करता है, जबकि वैश्विक औसत लगभग 6% है। इतना कम निवेश होने से अस्पतालों, डॉक्टरों और दवाओं जैसी बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी दिखती है।
  • जेब से खर्च (Out-of-Pocket Expenditure):
    भारत में कुल स्वास्थ्य व्यय का लगभग 48% लोगों की जेब से आता है। इसका नतीजा यह है कि हर साल लाखों लोग इलाज के कारण गरीबी रेखा से नीचे चले जाते हैं। नेशनल हेल्थ अकाउंट्स (2022) रिपोर्ट ने यह भी बताया कि ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य खर्च अक्सर कर्ज़ और गरीबी का कारण बनता है।
  • बीमा कवरेज :
    देश में सिर्फ़ 15–18% लोग ही किसी न किसी स्वास्थ्य बीमा से जुड़े हैं, जबकि दुनिया का औसत 60% से अधिक है। इसका अर्थ है कि बीमार पड़ने पर अधिकांश भारतीय परिवारों को अपनी बचत या कर्ज़ पर निर्भर रहना पड़ता है।
  •  जनसांख्यिकीय चुनौती :
    भारत में गैर-संचारी रोग (NCDs) जैसे डायबिटीज़, ब्लड प्रेशर और कैंसर बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। इसके साथ-साथ मातृ और शिशु स्वास्थ्य संबंधी ज़रूरतें भी बनी हुई हैं।
  • दोहरी बीमारी का बोझ :
    भारत को अभी भी संक्रामक रोग (जैसे टीबी, मलेरिया और डेंगू) झेलने पड़ते हैं, और उसी समय जीवनशैली से जुड़ी बीमारियाँ भी बढ़ रही हैं। इससे पहले से ही सीमित संसाधनों पर दोहरा दबाव पड़ रहा है।

इस प्रकार, भारत की स्वास्थ्य सेवा चुनौती दोहरी है

  • वंचित आबादी, विशेष रूप से ग्रामीण और शहरी गरीबों तक पहुँच का विस्तार करना।
  • बढ़ती स्वास्थ्य सेवा लागतों के बीच सस्ती और किफ़ायती स्वास्थ्य सेवाएँ सुनिश्चित करना।

बीमा: सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं की नींव

जोखिम को साझा करना (Pooling Risk) सबसे कारगर तरीका है जिससे परिवारों को भारी-भरकम इलाज खर्च से बचाया जा सकता है। एक मज़बूत बीमा प्रणाली न केवल जेब से होने वाले खर्च को कम करती है, बल्कि लोगों को समय पर और गुणवत्तापूर्ण इलाज लेने के लिए भी प्रोत्साहित करती है।

भारत में मौजूदा बीमा कवरेज

  • प्रीमियम-टू-GDP अनुपात: भारत में यह केवल 3.7% है, जबकि वैश्विक स्तर पर यह लगभग 7% है।
  • ग्रॉस रिटन प्रीमियम (2024): भारत में स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम लगभग 15 अरब डॉलर रहा, और इसके 2030 तक 20% वार्षिक दर से बढ़ने का अनुमान है।
  • आयुष्मान भारत – पीएम-जय (PM-JAY): यह दुनिया की सबसे बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा योजना है।
    • इसके अंतर्गत 50 करोड़ लोगों को सालाना ₹5 लाख प्रति परिवार तक का बीमा कवर मिलता है।
    • प्रभाव: लाभार्थियों में कैंसर के समय पर इलाज के मामलों में 90% की बढ़ोतरी देखी गई। इससे साफ है कि बीमा समय रहते इलाज शुरू कराने में बड़ी भूमिका निभाता है।

मुख्य चुनौती

भारत में बीमा को अभी भी ज़्यादातर लोग केवल एक आपदा-ढाल (crisis shield) मानते हैं, जो सिर्फ़ बड़े अस्पताल खर्चों में काम आती है। लेकिन बीमा का इस्तेमाल रोज़मर्रा की स्वास्थ्य सुरक्षा के रूप में (जैसे बाह्य रोगी इलाज (OPD), टेस्ट-डायग्नोसिस, दवाइयाँ और रोकथाम संबंधी चेक-अप्स ) अब भी बहुत कम किया जा रहा है।

यह क्यों ज़रूरी है?

अगर बीमा को सिर्फ़ अस्पताल में भर्ती खर्चों तक सीमित न रखकर, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल, रोकथाम और लंबी बीमारियों के इलाज तक फैलाया जाए, तो इसके बड़े फायदे होंगे:

  • लंबे समय में इलाज का कुल खर्च कम होगा।
  • लोग स्वास्थ्य संबंधी मामलों में अधिक जागरूक और सक्रिय होंगे।
  • छोटे-छोटे लेकिन बार-बार होने वाले खर्च (दवाइयाँ, टेस्ट आदि) से पैदा होने वाला आर्थिक बोझ और कर्ज़ कम होगा।

दक्षता और पैमाना: भारत की छिपी हुई ताकत

भारत स्वास्थ्य सेवाओं को इतनी बड़ी आबादी तक पहुँचाता है, जितना दुनिया में कहीं और नहीं होता। उदाहरण के लिए, भारत में एक MRI मशीन पश्चिमी देशों की तुलना में एक दिन में कई गुना ज्यादा स्कैन करती है।

यह दक्षता इसलिए संभव है क्योंकि भारत में नए कार्य-प्रवाह (workflow innovations) अपनाए जाते हैं, डॉक्टर-रोगी अनुपात बहुत ऊँचा है, और संसाधनों का उपयोग पूरी तरह से किया जाता है।

लेकिन चुनौती यह है कि यही दक्षता दूसरे और तीसरे स्तर (tier-2 और tier-3) के शहरों में भी दोहराई जाए, क्योंकि वहाँ अब भी स्वास्थ्य सेवाओं की कमी है। यदि यह हासिल कर लिया जाए तो भारत सस्ती और सर्वसुलभ स्वास्थ्य सेवाओं में पूरी दुनिया के लिए एक आदर्श मॉडल बन सकता है।

रोगों का निवारण: सबसे बड़ी बचत

भारत में गैर-संचारी रोग (NCDs) जैसे डायबिटीज़, ब्लड प्रेशर, कैंसर और श्वसन संबंधी समस्याएँ बहुत तेज़ी से बढ़ रही हैं। इन बीमारियों का इलाज लंबे समय तक चलता है और परिवारों को भारी आर्थिक दबाव में डाल देता है।

केस स्टडी पंजाब में किए गए एक अध्ययन से पता चला कि जिन परिवारों के पास स्वास्थ्य बीमा था, उन्हें भी अपनी जेब से काफी पैसा खर्च करना पड़ा। क्यों? क्योंकि ज़्यादातर बीमा योजनाएँ OPD (बाह्य रोगी इलाज) और डायग्नोस्टिक टेस्ट (जाँच-परीक्षण) को कवर ही नहीं करतीं। यही खर्च कुल चिकित्सा खर्च का बड़ा हिस्सा बनते हैं, और यही कारण है कि लोग बीमा के बावजूद आर्थिक रूप से बोझिल हो जाते हैं।  

आगे की राह

भारत में स्वास्थ्य सुधार का असली रास्ता केवल इलाज पर ध्यान देने के बजाय रोकथाम  को प्राथमिकता देने में है। अगर बीमारी को शुरू होने से पहले ही रोक लिया जाए तो खर्च भी कम होगा और स्वास्थ्य स्तर भी बेहतर बनेगा।

  • बीमा कवरेज का विस्तार: स्वास्थ्य बीमा में OPD (बाह्य रोगी परामर्श) और जाँच-परीक्षण (diagnostic tests) को भी शामिल करना होगा, क्योंकि इलाज का बड़ा हिस्सा इन्हीं पर खर्च होता है।
  • रोकथाम अभियान: स्कूलों, दफ़्तरों और स्थानीय समुदायों में स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाएँ ताकि लोग समय रहते सावधान हो सकें।
  • स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा: संतुलित आहार, नियमित व्यायाम और वायु प्रदूषण पर नियंत्रण से कई बीमारियों को रोका जा सकता है।

अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि रोकथाम पर खर्च किया गया हर ₹1 इलाज पर कई गुना बचत कराता है। इसका मतलब है कि बीमारियों को होने से पहले रोकना ही सबसे सस्ता और समझदारी भरा स्वास्थ्य उपाय है।

डिजिटल हेल्थ : तकनीक एक समानता लाने वाला कारक

भारत ने टेलीमेडिसिन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसी तकनीकों को जल्दी अपनाया है। इनसे मरीजों को कई सुविधाएँ मिल रही हैं:

  • डॉक्टरों से दूर बैठे ही वीडियो कॉल पर परामर्श लेना।
  • AI-आधारित जांच (triaging) के ज़रिए लक्षणों की गंभीरता पहचानना।
  • बिना लंबी यात्रा किए डायग्नोस्टिक सपोर्ट पाना।

सरकारी पहल

आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन पूरे देश में एक राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य प्रणाली बना रहा है। इसके लक्ष्य हैं:

  • हर नागरिक के लिए यूनिवर्सल हेल्थ रिकॉर्ड
  • Portability of care, यानी भारत में कहीं भी इलाज की सुविधा उपलब्ध होना।
  • Continuity of treatment, यानी डॉक्टर मरीज का पुराना स्वास्थ्य रिकॉर्ड देखकर बेहतर इलाज कर सके।

वास्तविक उदाहरण

मान लीजिए, दिल्ली का एक हृदय रोग विशेषज्ञ बिहार के एक दूर-दराज़ गाँव में बैठे मरीज को डिजिटल कंसल्टेशन के ज़रिए इलाज की सलाह देता है। इससे मरीज का यात्रा खर्च बचता है, इलाज में देरी नहीं होती और ग्रामीण इलाकों में भी गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएँ सुलभ हो जाती हैं।

यह क्यों महत्त्वपूर्ण है ?

डिजिटल हेल्थ टूल्स भारत की स्वास्थ्य सेवाओं को नई दिशा दे सकते हैं।

  • ये ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच का अंतर कम कर सकते हैं, ताकि गाँव में रहने वाले लोग भी डॉक्टर तक आसानी से पहुँच सकें।
  • ये डॉक्टरों की उत्पादकता बढ़ाते हैं, क्योंकि गैर-ज़रूरी अस्पताल विज़िट्स कम हो जाती हैं।
  • ये स्वास्थ्य सेवाओं को समावेशी बनाते हैं, यानी अच्छी मेडिकल सलाह केवल बड़े शहरों तक सीमित न रहकर छोटे कस्बों और गाँवों तक पहुँच सके।

स्वास्थ्य बीमा व्यवस्था की चुनातियाँ

  • बढ़ती लागत: प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों के कारण बीमा कंपनियाँ प्रीमियम में 10%–15% तक बढ़ोतरी करने की सोच रही हैं।
  • विश्वास की कमी: बीमा योजनाओं में कम भागीदारी का कारण है—दावों (claims) का समय पर न निपटना और शिकायत निवारण की कमजोर व्यवस्था
  • सरकार की भूमिका:
    • IRDAI सुधार पारदर्शिता को मजबूत करने, दावों के निपटारे को तेज़ करने और अनुचित प्रीमियम बढ़ोतरी पर रोक लगाने पर केंद्रित हैं।
    • इन सुधारों से लोगों का बीमा पर विश्वास बढ़ेगा और यह एक विश्वसनीय व सस्ती सुविधा बन पाएगी।

निवेश और निजी क्षेत्र की भूमिका

  • निवेश का स्तर: 2023 में स्वास्थ्य क्षेत्र में लगभग $5.5 अरब का प्राइवेट इक्विटी और वेंचर कैपिटल निवेश आया।
  • असमान वृद्धि: यह पूँजी ज़्यादातर मेट्रो शहरों में आई, जबकि दूसरे और तीसरे स्तर (tier-2 और tier-3) के कस्बे अब भी पिछड़े रह गए।
  • आगे की राह
  • निवेश को छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों की ओर मोड़ना ज़रूरी है।
  • प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (primary health-care networks) का विस्तार करना होगा।
  • मेडिकल शिक्षा और कौशल विकास (skilling) को मजबूत करना होगा, ताकि बढ़ती माँग को पूरा किया जा सके।

सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा की चुनौतियाँ

काफी प्रगति के बावजूद भारत के सामने अब भी कई बड़ी बाधाएँ हैं, जो सभी के लिए सस्ती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएँ (Universal Health Care) उपलब्ध कराने में मुश्किल खड़ी करती हैं।

1. कम सार्वजनिक खर्च

भारत अपने GDP का केवल 2.1% स्वास्थ्य पर खर्च करता है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) कम से कम 5% खर्च की सिफारिश करता है। यह कम निवेश अस्पतालों के ढाँचे, स्टाफ की उपलब्धता और सेवा की गुणवत्ता – सभी को सीमित कर देता है।

2. स्वास्थ्य कर्मियों की कमी

भारत में डॉक्टर-रोगी अनुपात 1:834 है। यह पहले से बेहतर है, लेकिन अब भी स्वास्थ्य सेवाओं पर भारी दबाव डालता है। नर्स-रोगी अनुपात और भी खराब है और वैश्विक मानकों से बहुत पीछे है। यह कमी खासकर सरकारी अस्पतालों और ग्रामीण क्षेत्रों में ज़्यादा महसूस होती है, जहाँ डॉक्टरों और नर्सों की तैनाती बहुत सीमित है।

3. असमान पहुंच

ग्रामीण और आदिवासी आबादी अब भी स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित है। विशेषज्ञ डॉक्टर और आधुनिक अस्पताल ज्यादातर शहरी इलाकों में केंद्रित हैं, जिससे गाँव और छोटे कस्बों में रहने वाले लोग पिछड़ जाते हैं। यह स्थिति स्वास्थ्य असमानताओं को और गहरा कर देती है।

4. खंडित बीमा कवरेज

भारत में केंद्र और राज्य स्तर पर कई बीमा योजनाएँ चल रही हैं। लेकिन इन योजनाओं में दोहराव  भी है और बहुत से लोग अब भी इनसे बाहर रह जाते हैं।
उदाहरण के लिए, आयुष्मान भारत योजना अस्पताल में भर्ती का खर्च कवर करती है, लेकिन OPD (बाह्य रोगी इलाज) और डायग्नोस्टिक टेस्ट अक्सर इसमें शामिल नहीं होते। नतीजतन, परिवारों पर भारी आर्थिक बोझ पड़ता है।

5. नियमन और विश्वास की कमी

बीमा प्रणाली पर लोगों का भरोसा कम है, क्योंकि अक्सर दावों (claims) में देरी होती है या कई खर्च बीमा से बाहर कर दिए जाते हैं।
इसी वजह से भारत में अब भी Out-of-Pocket Expenditure  यानी जेब से सीधा खर्च कुल स्वास्थ्य खर्च का लगभग 48% बना हुआ है।

आगे की राह: एक समग्र स्वास्थ्य ढाँचा

भारत को सार्वभौमिक, समान और सस्ती स्वास्थ्य सेवाएँ सुनिश्चित करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना होगा। इसमें न केवल इलाज बल्कि रोकथाम, डिजिटल तकनीक, और निजी–सार्वजनिक सहयोग सभी शामिल होने चाहिए।

1. सार्वजनिक खर्च का विस्तार

भारत को 2025 तक अपने स्वास्थ्य खर्च को GDP के 2.5% तक बढ़ाना होगा (जैसा कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में लक्ष्य तय किया गया है)। खासकर ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और रोकथाम संबंधी ढाँचे को प्राथमिकता देनी होगी।

2. स्वास्थ्य बीमा का पुनर्निर्माण

बीमा योजनाओं को केवल अस्पताल में भर्ती  तक सीमित न रखकर OPD, डायग्नोस्टिक टेस्ट और रोकथाम सेवाओं को भी शामिल करना चाहिए।
प्रक्रियाओं को सरल और दावों  का भुगतान समय पर करना ज़रूरी है, ताकि लोगों का बीमा प्रणाली पर भरोसा बढ़े।

3. टियर-2 और टियर-3 शहरों को मज़बूत करना

छोटे शहरों और अर्ध-शहरी इलाकों में निजी अस्पतालों और डायग्नोस्टिक चेन को निवेश करने के लिए प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
सरकारी योजनाओं के अंतर्गत उचित और समय पर भुगतान सुनिश्चित किया जाए, ताकि निजी संस्थानों की भागीदारी टिकाऊ हो सके।

4. रोकथाम पर ज़ोर

ग़ैर-संचारी रोग (NCDs), प्रदूषण-जनित बीमारियों और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के खिलाफ जन-जागरूकता अभियान चलाने होंगे।
स्कूल स्तर पर स्वास्थ्य शिक्षा और समुदाय स्तर पर नियमित स्वास्थ्य जांच ज़रूरी है।

5. डिजिटल एकीकरण

आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन को तेज़ी से लागू करके हर नागरिक के लिए यूनिवर्सल हेल्थ रिकॉर्ड तैयार करना चाहिए।
ग्रामीण–शहरी अंतर कम करने के लिए AI आधारित डायग्नोस्टिक और टेलीमेडिसिन का अधिक से अधिक इस्तेमाल करना होगा।

6. नियामकीय सुधार

अस्पतालों और दवाओं के लिए पारदर्शी मूल्य निर्धारण  सुनिश्चित किया जाए।
बीमा प्रणाली में भरोसा बनाने के लिए तेज़ क्लेम निपटान और मज़बूत शिकायत निवारण तंत्र ज़रूरी है।

7. सार्वजनिक–निजी भागीदारी

सार्वजनिक फंडिंग के साथ निजी क्षेत्र की दक्षता  को मिलाकर स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार किया जा सकता है।
उदाहरण के लिए, कई राज्यों में PPP मॉडल पर डायलिसिस केंद्र और कैंसर देखभाल इकाइयाँ सफलतापूर्वक चल रही हैं।

निष्कर्ष

भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था एक निर्णायक दशक से गुजर रही है। अब यह मॉडल केवल अस्पताल-केन्द्रित और आपातकालीन इलाज से आगे बढ़कर सार्वभौमिक, रोकथाम-आधारित और डिजिटल रूप से एकीकृत होना चाहिए। बीमा को रोज़मर्रा की स्वास्थ्य सुरक्षा का साधन बनाना होगा, रोकथाम को पहली रक्षा-पंक्ति मानना होगा, तकनीक से असमानताओं को कम करना होगा और नियमन से लोगों का विश्वास जीतना होगा।

अगर भारत इसमें सफल होता है, तो न केवल 1.4 अरब नागरिकों का स्वास्थ्य सुरक्षित होगा, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक ऐसा समावेशी और सस्ती स्वास्थ्य सेवा का मॉडल तैयार होगा जिसे बड़े पैमाने पर अपनाया जा सके।

मुख्य परीक्षा प्रश्न-

प्रश्न: “भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली बढ़ती लागत के बीच वंचितों के लिए पहुँच का विस्तार करते हुए सामर्थ्य सुनिश्चित करने की दोहरी चुनौती का सामना कर रही है। भारत में सार्वभौमिक, किफायती स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करने में आने वाली प्रमुख बाधाओं पर चर्चा कीजिए। सार्वजनिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं और वित्तीय स्थिरता के बीच संतुलन बनाने के लिए नीतिगत उपाय सुझाइए।” (250 शब्द, 15 अंक)

स्रोत: द हिंदू

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