130वाँ संशोधन संविधान विधेयक, 2025: भारतीय राजनीति में ईमानदारी और निष्पक्षता का संतुलन

UPSC प्रासंगिकता

  • GS-II (राजनीति): संवैधानिक संशोधन; शक्तियों का विभाजन; राजनीति का आपराधिकरण; अनुच्छेद 75/164/239AA।
  • GS-IV (नैतिकता): सुशासन में ईमानदारी, सार्वजनिक पद की नैतिक जिम्मेदारी।

समाचार में क्यों?

20 अगस्त 2025 को सरकार ने लोकसभा में 130वाँ संविधान संशोधन विधेयक, 2025 पेश किया।

इस विधेयक के अनुसार, यदि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री किसी आपराधिक मामले में, जिसमें 5 साल या उससे अधिक की सज़ा हो, या हो सकती है, लगातार 30 दिन से अधिक हिरासत में रहते हैं, तो उन्हें:

  • तुरंत इस्तीफ़ा देना होगा, या
  • स्वचालित रूप से पद से हटा दिया जाएगा।

यह विधेयक वर्तमान में संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को जांच के लिए भेजा गया है।
इसका उद्देश्य राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण को रोकना है, लेकिन इसने इसकी संवैधानिकता, निष्पक्षता और राजनीतिक प्रभावों को लेकर तीखी बहस छेड़ दी है।

पृष्ठभूमि (Background)

विदित है कि भारत लंबे समय से एक विरोधाभास का सामना कर रहा है, यथा एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था जिसमें कई नेता आपराधिक मामलों से घिरे होते हैं, फिर भी उन्हें शासन की जिम्मेदारी सौंपी जाती है।

Association for Democratic Reforms (ADR) के अनुसार:

  • 2024 के आम चुनाव में चुने गए सांसदों में से 46% (543 में से 251) ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए।
  • 2009 में यह आँकड़ा 30% था, यानी 15 वर्षों में इसमें 55% की वृद्धि हुई।

ये आँकड़े लोकतांत्रिक संस्थाओं में जनता के भरोसे में गंभीर कमी को दिखाते हैं। लोग नेताओं से ईमानदारी और निष्पक्षता की उम्मीद करते हैं, लेकिन बहुत से निर्वाचित प्रतिनिधि भ्रष्टाचार, वसूली और गंभीर अपराधों के आरोपों का सामना कर रहे हैं।

इसी पृष्ठभूमि में यह विधेयक एक साहसिक कदम माना जा रहा है, जिसका उद्देश्य राजनीतिक पदों को साफ़-सुथरा रखना है और यह सुनिश्चित करना है कि जेल में बंद कोई भी व्यक्ति मंत्रालय नहीं चला सके।

विधेयक का संवैधानिक आधार (Constitutional Basis of the Bill)

यह प्रस्तावित संशोधन संविधान के अनुच्छेद 75, 164 और 239AA पर आधारित है, जो मंत्रियों की नियुक्ति और कार्यकाल से जुड़े हैं:

  • अनुच्छेद 75 (केंद्र): मंत्री राष्ट्रपति की इच्छा तक पद पर रहते हैं।
  • अनुच्छेद 164 (राज्य): मंत्री राज्यपाल की इच्छा तक पद पर रहते हैं।
  • अनुच्छेद 239AA (दिल्ली): दिल्ली की मंत्रिपरिषद पर भी समान प्रावधान लागू होते हैं।

पारंपरिक रूप से, “pleasure” (इच्छा) के सिद्धांत की व्याख्या संवैधानिक नैतिकता और न्यायिक निगरानी की सीमा में की गई है।

  • शमशेर सिंह बनाम पंजाब राज्य और नाबम रेबिया बनाम डिप्टी स्पीकर मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इन शक्तियों का उपयोग मनमाने ढंग से नहीं होना चाहिए।

👉 यह विधेयक नए प्रावधान (जैसे धारा 5A, 4A) जोड़ता है, जिसके अनुसार यदि कोई प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री/मंत्री 30 दिन से अधिक हिरासत में रहता है तो यह स्वतः ही उसके इस्तीफ़े या पद से हटाए जाने के लिए संवैधानिक आधार बन जाएगा, इससे शक्ति का संतुलन कार्यपालिका की इच्छा से हटकर संवैधानिक अनिवार्यता की ओर शिफ्ट हो जाएगा।

विधेयक का महत्व (Significance / Importance of the Bill)

  1. नैतिकता का मज़बूत संदेश (Ethical Message to Society):
    यह विधेयक स्पष्ट करता है कि ईमानदारी और निष्कलंक छवि सार्वजनिक जीवन के लिए अनिवार्य है। यदि कोई नेता जेल में है, तो उसके पास मंत्रालय चलाने का कोई नैतिक अधिकार नहीं होना चाहिए।
  2. जनता का विश्वास पुनर्स्थापित करना (Restoring Public Trust):
    आम धारणा है कि राजनेता अक्सर जवाबदेही से बच जाते हैं। यह प्रावधान एक मज़बूत संदेश देगा कि कानून और नियम सब पर समान रूप से लागू होते हैं
  3. कार्यपालिका के लिए उच्च मानक (Higher Standards for the Executive):
    मंत्रियों की जिम्मेदारी आम सांसदों/विधायकों से कहीं अधिक होती है, क्योंकि वे नीतियों और शासन को सीधे प्रभावित करते हैं। ऐसे में कड़े नियम उचित और आवश्यक हैं
  4. राजनीतिक दलों पर दबाव (Pressure on Political Parties):
    यदि यह नियम लागू हुआ तो पार्टियाँ अपराध पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को टिकट देने से बचेंगी। इससे राजनीति में प्रवेश करने वाले लोगों की गुणवत्ता बेहतर होगी।
  5. संवैधानिक विकास की दिशा में कदम (Step in Constitutional Development):
    सुप्रीम कोर्ट ने कई बार राजनीतिक नैतिकता पर जोर दिया है (जैसे नाबम रेबिया केस)। यह विधेयक उन न्यायिक टिप्पणियों को विधायी रूप देता है।
  6. शासन में स्थिरता और निरंतरता (Smoother Administration):
    यदि कोई मंत्री जेल में बैठकर मंत्रालय चलाता है, तो प्रशासनिक विवाद और अस्थिरता पैदा होती है। यह संशोधन ऐसी स्थिति को रोककर नीतियों की निरंतरता और शासन की स्थिरता सुनिश्चित करेगा।

👉 इस प्रकार, यह विधेयक राजनीति में पारदर्शिता, जवाबदेही और नैतिकता लाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। हालाँकि, इसके साथ ही संवैधानिकता और निष्पक्षता से जुड़े प्रश्न भी उतने ही गंभीर हैं।

मुख्य मुद्दे और चिंताएँ (Key Issues and Concerns )

3. राजनीतिक दुरुपयोग की संभावना (Scope for Political Misuse)

  • यह विधेयक मंत्री को हटाने के लिए दो प्रावधान करता हैं:
    a) प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री की सलाह पर, या
    b) यदि हिरासत 30 दिन से अधिक हो जाए तो स्वतः हटाना।
  • यह स्थिति दलीय (partisan) दुरुपयोग का मौका देती है, यथा सत्तारूढ़ दल अपने सहयोगियों को बचा सकता है, जबकि विपक्षी नेताओं को गिरफ्तारी के ज़रिए जल्दी हटाया जा सकता है।

4. “Revolving Door” समस्या

  • यदि कोई मंत्री 30 दिन की जेल के बाद इस्तीफ़ा देता है, तो जमानत मिलने के तुरंत बाद फिर से नियुक्त किया जा सकता है।
  • यह चक्र—इस्तीफ़ा जमानत पुनर्नियुक्ति—शासन को अस्थिर कर सकता है और कानूनी प्रक्रिया का राजनीतिकरण कर सकता है।

5. अत्यधिक व्यापक दायरा (Overbroad Scope of Offences)

  • यह विधेयक किसी भी अपराध पर लागू होता है जिसकी सज़ा 5 साल या उससे अधिक हो सकती है, न कि केवल भ्रष्टाचार या पद के दुरुपयोग पर।
  • इसका मतलब यह है कि अपेक्षाकृत कम गंभीर या असंबंधित अपराधों के मामले में भी मंत्री को हटाया जा सकता है, जिससे इस सुधार का नैतिक उद्देश्य कमजोर पड़ सकता है।

6. न्यायिक बोझ और अनिश्चितता (Judicial Burden and Uncertainty)

  • गिरफ्तारी, हिरासत और अयोग्यता को लेकर बार-बार कानूनी चुनौतियाँ दी जाएँगी।
  • इससे न्यायपालिका पर बोझ बढ़ेगा और जब तक मामले लंबित रहेंगे, शासन में अनिश्चितता और अस्थिरता बनी रहेगी।

राजनीति के अपराधीकरण पर न्यायिक निर्णय (Judicial Pronouncements on Criminalisation of Politics)

सुप्रीम कोर्ट ने कई बार राजनीतिक पदों के नैतिक पहलू पर ज़ोर दिया है:

  • S.R. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994):
    संवैधानिक नैतिकता और जवाबदेही पर बल दिया।
  • मनोज नारुला बनाम भारत संघ (2014):
    सुझाव दिया कि जिन पर गंभीर आपराधिक मामले हों उन्हें मंत्री नहीं बनना चाहिए, लेकिन अंतिम निर्णय प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री पर छोड़ दिया।
  • लिली थॉमस बनाम भारत संघ (2013):
    दोषसिद्ध (conviction) होने पर सांसद/विधायक को तुरंत अयोग्य ठहराने का प्रावधान किया, पहले से मौजूद 3 महीने की अपील की छूट हटा दी।

👉 अदालतों ने राजनीति को ईमानदारी और जवाबदेही की ओर धकेला है, लेकिन गिरफ्तारी मात्र पर स्वचालित हटाने का आदेश कभी नहीं दिया। यह विधेयक उसी grey zone (अस्पष्ट क्षेत्र) में कानून बनाने की कोशिश करता है।

एक अधिक संतुलित मॉडल की ज़रूरत (The Need for a More Nuanced Model)

यह विधेयक एक वास्तविक समस्या को तो संबोधित करता है, लेकिन इसका बहुत व्यापक दृष्टिकोण लोकतांत्रिक सुरक्षा को कमजोर कर सकता है। इसलिए विशेषज्ञों ने कुछ वैकल्पिक मॉडल सुझाए हैं:

  1. हटाने को आरोप तय होने से जोड़ना (Link Removal to Framing of Charges)
    • केवल गिरफ्तारी पर नहीं, बल्कि जब अदालत आरोप तय कर दे (charge-framing) तभी हटाने का प्रावधान हो, ताकि राजनीतिक दुरुपयोग न हो।
  2. स्वतंत्र समीक्षा तंत्र (Independent Review Mechanism)
    • हटाने से पहले किसी ट्रिब्यूनल या न्यायिक पैनल द्वारा हिरासत की समीक्षा हो, ताकि कार्यपालिका मनमाने ढंग से इसका इस्तेमाल न कर सके।
  3. हटाने की बजाय निलंबन (Suspension Instead of Removal)
    • मंत्री को मुकदमे के दौरान केवल कर्तव्यों से निलंबित किया जाए, न कि पूरी तरह पद से हटाया जाए। इससे शासन की स्थिरता बनी रहेगी।
  4. केवल गंभीर अपराधों तक सीमित करना (Limit to Serious Crimes)
    • नियम केवल भ्रष्टाचार, नैतिक पतन (moral turpitude) या गंभीर अपराधों पर लागू हो, न कि हर उस अपराध पर जिसकी सज़ा 5 साल या उससे ज़्यादा हो।

एक अधिक संतुलित मॉडल की आवश्यकता (The Need for a More Nuanced Model)

यह विधेयक एक वास्तविक समस्या को हल करने की कोशिश करता है, लेकिन इसका अत्यधिक व्यापक स्वरूप लोकतांत्रिक मूल्यों और सुरक्षा तंत्र को कमजोर कर सकता है। इसलिए विशेषज्ञों ने कुछ संतुलित विकल्प सुझाए हैं:

1. पद से हटाने का क्रियान्वयन,आरोप तय हो तभी (Link Removal to Framing of Charges)

  • केवल गिरफ्तारी के आधार पर पद से हटाना उचित नहीं है।
  • बेहतर होगा कि हटाने का प्रावधान तभी लागू हो जब अदालत आरोप तय (charge-framing) कर दे।
  • इससे राजनीतिक प्रतिशोध और दुरुपयोग की संभावना कम होगी।

2. स्वतंत्र समीक्षा तंत्र (Independent Review Mechanism)

  • हटाने का निर्णय सीधे कार्यपालिका पर न छोड़ा जाए।
  • इसके लिए न्यायिक पैनल या स्वतंत्र ट्रिब्यूनल बनाया जाए, जो हिरासत और आरोपों की गंभीरता की समीक्षा कर सके।
  • इससे प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष होगी।

3. हटाने की बजाय निलंबन (Suspension Instead of Removal)

  • मंत्री को मुकदमे के दौरान कर्तव्यों से निलंबित किया जा सकता है, बजाय सीधे पद से हटाने के।
  • इससे शासन की निरंतरता और प्रशासनिक स्थिरता बनी रहेगी, साथ ही राजनीतिक नैतिकता भी सुरक्षित रहेगी।

4. केवल गंभीर अपराधों तक सीमित करना (Limit to Serious Crimes)

  • नियम को सभी अपराधों पर लागू करना उचित नहीं।
  • इसे केवल भ्रष्टाचार, नैतिक पतन (moral turpitude) और गंभीर अपराधों तक सीमित किया जाए।
  • इससे सुधार का उद्देश्य स्पष्ट रहेगा और कम गंभीर मामलों में अनुचित सज़ा से बचा जा सकेगा।

👉 इस तरह, विधेयक को एक संतुलित और व्यवहारिक स्वरूप देकर लोकतांत्रिक संस्थाओं की नैतिकता और स्थिरता दोनों को सुरक्षित किया जा सकता है।

UPSC Prelims Practice Questions

प्रश्न 1. 130वाँ संविधान संशोधन विधेयक, 2025 के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

  1. इस विधेयक के अनुसार यदि कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री किसी ऐसे मामले में, जिसमें 5 साल या उससे अधिक की सज़ा हो सकती है, लगातार 30 दिन से अधिक हिरासत में रहता है, तो उसे इस्तीफ़ा देना होगा या स्वचालित रूप से पद से हटा दिया जाएगा।
  2. यह विधेयक सीधे संविधान के अनुच्छेद 75, 164 और 239AA में संशोधन करता है और “राष्ट्रपति/राज्यपाल की इच्छा” सिद्धांत को नए रूप में परिभाषित करता है।
  3. इस विधेयक के तहत सांसदों/विधायकों (MPs/MLAs) को भी केवल गिरफ्तारी पर, दोष सिद्ध होने से पहले ही अयोग्य ठहरा दिया जाएगा।

सही कथन कौन-से हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b) केवल 1 और 2

व्याख्या:

  • कथन 1 सही है → विधेयक 30 दिन की हिरासत के बाद इस्तीफ़ा/हटाने का प्रावधान करता है।
  • कथन 2 सही है → यह अनुच्छेद 75, 164 और 239AA में नए प्रावधान जोड़ता है।
  • कथन 3 ग़लत है → सांसद/विधायक केवल दोष सिद्ध होने (conviction) पर ही अयोग्य ठहराए जाते हैं, गिरफ्तारी पर नहीं (जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत)।

प्रश्न 2. भारत में राजनीति के अपराधीकरण से संबंधित निम्नलिखित न्यायिक निर्णयों पर विचार कीजिए:

  1. S.R. Bommai बनाम भारत संघ (1994): शासन में संवैधानिक नैतिकता और जवाबदेही पर ज़ोर दिया।
  2. Lily Thomas बनाम भारत संघ (2013): फैसला दिया कि दोष सिद्ध होते ही सांसद/विधायक तुरंत अयोग्य हो जाएंगे, पहले दी गई 3 महीने की छूट को समाप्त कर दिया।
  3. Manoj Narula बनाम भारत संघ (2014): आदेश दिया कि जिन पर आपराधिक मामले चल रहे हैं, उन्हें मंत्री नियुक्त नहीं किया जा सकता।

सही कथन कौन-से हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a) केवल 1 और 2

व्याख्या:

  • कथन 1 सही है → S.R. Bommai केस में संवैधानिक नैतिकता पर बल दिया गया।
  • कथन 2 सही है → Lily Thomas केस ने 3 महीने की छूट (grace period) हटा दी और तुरंत अयोग्यता तय की।
  • कथन 3 ग़लत है → Manoj Narula केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गंभीर आपराधिक आरोप वाले व्यक्तियों को मंत्री नहीं बनना चाहिए, लेकिन निर्णय PM/CM पर छोड़ा गया; इसे अनिवार्य नहीं किया गया।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न


मुख्य प्रश्न (GS-II – राजनीति एवं शासन)

प्रश्न: 130वाँ संशोधन संविधान विधेयक, 2025 उन मंत्रियों के इस्तीफ़े या हटाने को अनिवार्य करके राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण को संबोधित करने का प्रयास करता है, जो 30 दिन से अधिक हिरासत में रहते हैं। आलोचनात्मक रूप से जाँच कीजिए कि क्या यह विधेयक शासन में ईमानदारी के आदर्शों और संवैधानिक निष्पक्षता के सिद्धांतों के बीच संतुलन स्थापित करता है। (250 शब्द)

स्रोत – द हिंदू

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