चर्चा में क्यों :–
कमजोर मानसून, सूखते जल स्रोत और गिरता भूमि जल स्तर इन सभी से कृषि के लिए जल की उपलब्धता चिंता का विषय
फादर ऑफ ग्रीन रिवॉल्यूशन :- स्वामीनाथन
- हरित क्रांति की वजह से कई राज्यों में कृषि उत्पादों में इजाफा हुआ था।
- जन्में :- तमिलनाडु में, शिक्षा भी यही
- एमएस स्वामीनाथन का पूरा नाम मनकोम्बु संबाशिवन स्वामीनाथन है।
- उनका जन्म 7 अगस्त 1925 को तमिलनाडु के कुंभकोणम में हुआ था।
स्वामीनाथन की शुरुआती शिक्षा वहीं से हुई है। - उन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई तिरुवनंतपुरम के यूनिवर्सिटी कॉलेज और बाद में कोयंबटूर के कृषि कॉलेज (तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय) से की।
- हरित क्रांति से देश का बदला रूप
स्वामीनाथन ने दो कृषि मंत्रियों सी सुब्रमण्यम और जगजीवन राम के साथ मिलकर देश में हरित क्रांति लाने का काम किया। - हरित क्रांति एक ऐसा कार्यक्रम था जिसने कैमिकल-जैविक तकनीक के उपयोग से धान और गेहूं के उत्पादन में भारी इजाफा लाने का मार्ग प्रशस्त किया।
स्वामीनाथन रिपोर्ट क्या थी :-
वर्ष 2004 में यूपीए सत्ता में थी। उस समय किसानों की स्थिति जानने के लिए एक आयोग का गठन किया गया था, जिसका नाम था नैशनल कमीशन ऑन फार्मर्स (NCF)।
प्रमुख :- एम एस स्वामीनाथन
आयोग ने दो सालों में 5 रिपोर्ट सरकार को सौंपी, जिसे स्वामीनाथन रिपोर्ट भी कहा जाता है।
इस रिपोर्ट में सरकार को कई सुझाव दिए गए थे, जिससे किसानों की स्थिति को सुधारा जा सके। रिपोर्ट में सबसे बड़ा और चर्चित सुझाव एमएसपी का था।
क्या था रिपोर्ट में :-
इसमें कहा गया था कि किसानों को फसल की लागत का 50 फीसद लाभ मिलाकर एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) मिलना चाहिए।
धान को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका
स्वामीनाथन ने देश में धान की फसल को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाई थी।
उन्होंने धान की अधिक उपज देने वाली किस्मों को विकसित करने में बड़ा योगदान दिया था। इस पहल के चलते पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों को काफी मदद मिली थी।
कई प्रमुख पदों को सुशोभित किया : –
- स्वामीनाथन ने अपने कार्यकाल के दौरान कई प्रमुख पदों को संभाला था।
- भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक (1961-1972),
- आईसीआर के महानिदेशक और कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के सचिव (1972-79),
- कृषि मंत्रालय के प्रधान सचिव (1979-80) नियुक्त किए गए थे।
हरित क्रांति
एक ऐसी क्रांति को कहा जाता है जिसका सम्बन्ध कृषि क्षेत्र में रासायनिक तथा बीज के अत्यधिक उत्पादन से तीव्र वृद्धि करना।
भारत में हरित क्रांति की शुरुआत सन (1966-1967) में हुई थी। भारत में इनको हरित क्रांति का जनक कहा जाता है । जिसे प्रोफेसर नॉरमन बोरलॉग द्वारा शुरू किया गया था।
सर्वप्रथम भारत में इसकी शुरुआत एस. स्वामीनाथन ने की । कृषि एवं खाद्य मंत्री बाबू जगजीवन राम को हरित क्रांति का प्रणेता माना जाता है, इन्होने एम० एस० स्वामीनाथन की कमेटी की सिफारिशों पर इस क्रांति का सफलतम संचालन किया और इसके संतोषजनक परिणाम भविष्य में देखने को भी मिले ।
इसका मुख्य उद्देश्य देश में जितने भी सिंचित व असिंचित कृषि क्षेत्र में अधिक उपज देने वाले संकर तथा बौने बीज के उपयोग से फसल उत्पादन की वृद्धि में बढ़ोतरी करना।
हरित क्रांति की जरूरत क्यों :-
विश्वभर में कृषि मनुष्य की खाद्य आवश्यकता का सर्वाधिक विकसित उपाय है। भारत में कुल 32.80 लाख हेक्टेयर भूमि में से करीब आधी भूमि पर कृषि की जाती है। इसके बावजूद भी स्वतंत्रता के बाद भारत की सबसे बड़ी समस्या खाद्यान की अपर्याप्तता थी।
क्यूंकि परंपरागत कृषि से उत्पादन कम होता था और देश की बढ़ती जनसंख्या के चलते एक गंभीर समस्या की स्थिति उत्पन्न हो गई थी।
इसीलिए इन सभी चुनौतियों का सामना करने के लिए भारत ने अपने कृषि ढाँचे परिवर्तन करते हुए एक नए प्रकार की कृषि पद्धति को अपनाकर खाद्यान के क्षेत्र में एक बहुत बड़ा बदलाव किया जिसे हरित क्रांति कहा गया।
कृषि क्षेत्रों में अच्छी फसल या उच्च पैदावार वाले बीजों, उर्वरकों का प्रयोग करके उत्पादन में तेजी लाने की प्रक्रिया को हरित क्रांति कहा गया है।
इसमें परंपरागत तकनीक की जगह पर नई तकनीकों का प्रयोग किया जाता है और साथ-साथ उर्वरकों, सिंचाई के साधनों और उपयुक्त कीटनाशकों के प्रयोग करने से उत्तम किस्म की बीजों द्वारा उत्पादन को बढ़ने का प्रयास किया जाता है।
Green Revolution की उपलब्धियां :-
Green Revolution चलने के बाद क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। कृषि क्षेत्र में हुए गुणात्मक सुधार के बाद देश में कृषि की उत्पादन क्षमता बढ़ी है। खाद्यान में आत्मनिर्भरता आई है साथ ही व्यावसायिक कृषि को बढ़ावा भी मिला है और देश के किसानों के द्रष्टिकोण में भी परिवर्तन देखने को मिला है।
हरित क्रांति होने के फलस्वरूप गेहूं, मक्का, गन्ना और बाजरा की फसलों में प्रतिहेक्टेयर उत्पादन एवं कुल उत्पादकता में काफी वृद्धि देखने को मिली है। इस क्रांति की उपलब्धियों को कृषि में तकनीकी एवं संस्थागत परिवर्तन में हुए सुधारों को निम्न तरीकों से देखा जा सकता है-
रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग :-
Green Revolution की राह पर नवीन कृषि नीति में रासायनिक उर्वरकों के उपयोग करने की मात्रा में भी वृद्धि हुई है। 1960-61 में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग प्रति हेक्टेअर 2 कि०ग्राम होता था और 2008-09 में यह बढ़कर 128 कि० ग्राम प्रति हेक्टेअर हो गया।
इसी प्रकार देश में 1960-61 के समय पर रासायनिक खादों की कुल खपत 2.92 लाख टन थी और यह बढ़कर 2008-09 में 249 लाख टन हो गई।
उन्नतशील बीजों को अधिक इस्तेमाल :-
Green Revolution होने के बाद देश में उन्नतशील बीजों का प्रयोग बढ़ा है और साथ ही बीजों की नई किस्म की खोज की गई है। इस समय तक अधिक उपज देने वाला कार्यक्रम गेहूं, धान, बाजरा, मक्का व ज्वर जैसी फसलों पर लागू किया गया है।
लेकिन गेहूं में सबसे अधिक सफलता प्राप्त हुई है। वर्ष 2008-09 में 1 लाख क्विंटल प्रजनक बीज तथा 9 लाख क्विंटल आधार बीजों का उत्पादन हुआ है।
सिंचाई एवं पौध संरक्षण :-
Green Revolution में प्रयोग हुई नई विकास विधि के अंतर्गत देश में सिंचाई सुविधा का बड़ी तेज़ी से विस्तार हुआ है। देश में 1951 के समय पर खिंचाई की कुल क्षमता 223 लाख हेक्टेअर थी एयर यह बढ़कर 2008-09 में 1 लाख हेक्टेयर हो गई।
1951 में देश के कुल सिंचित क्षेत्र 210 हेक्टर था और यह बढ़कर 2008-09 में 673 लाख हेक्टेअर हो गई। पौध संरक्षण में खरपतवार एवं कीटों का नाश करने के लिए दवा छिड़कने का काम किया जाता है।
बहुफसली कार्यक्रम व आधुनिक कृषि यंत्रों का प्रयोग :-
बहुफसली कार्यक्रम का अर्थ है एक ही भूमि पर एक से अधिक फसल उगाकर उत्पादन को बढ़ाना। भूमि की उर्वरता को नष्ट किए बिना भूमि के एक इकाई में अधिक उत्पादन करना बहुफसली कार्यक्रम कहलाता है।
हरित क्रांति में आधुनिक कृषि उपकरणों जैसे- ट्रैक्टर, थ्रेसर, हार्वेस्टर, बुलडोज़र डीजल व लाइट के पम्पसेटों आदि सबने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इस प्रकार से कृषि में मानव शक्ति तथा पशुओं के प्रतिस्थापन संचालन शक्ति द्वारा किया गया है। जिससे कृषि क्षेत्र में उपयोग एवं उत्पादकता में वृद्धि हुई है।
उत्पादन तथा उत्पादकता में वृद्धि :-
देश को सबसे बड़ा लाभ हरित क्रांति तथा भारतीय कृषि में लागू हुई नई विकास विधि का सबसे बड़ा लाभ ये हुआ कि फसलों के क्षेत्रफल में वृद्धि, कृषि उत्पादन तथा उत्पादकता में भी बढ़ोतरी हुई। मुख्य तौर पर गेहूं, ज्वार, धान, मक्का, बाजरा के उत्पादन में आशा के अनुरूप वृद्धि हुई है।
इस परिणाम यह निकला की भारत खाद्यान में आत्मनिर्भर हो गया है। देश में 1951-52 के समय पर खाद्यानों का कुल उत्पादन 5 करोड़ टन था, जो बढ़कर 2008-09 में 23 करोड़ टन हो गया। इस तरह से प्रति हेक्टेअर उत्पादकता में भी पर्याप्त सुधर देखने को मिला है।
हरित क्रांति के नकारात्मक प्रभाव :-
हरित क्रांति में गैर अनाज को शामिल नहीं किया गया अपितु गेहूँ, चावल, ज्वार, मक्का और चावल आदि सभी खाद्यानों को उत्पादन क्रांति के स्टार पर किया गया लेकिन मोठे अनाज, दलहन, तिलहन को हरित क्रांति को इस दायरे से बहार रखा गया।
गन्ना, चाय, कपास, जूट जैसी प्रमुख व्यावसायिक फसलें भी हरित क्रांति से अछूती रहीं है। अधिक उपज देने वाले किस्म केवल पांच फसलें-गेहूं, चावल, बाजरा, मक्का, ज्वार तक ही सीमित रखा गया। इसलिए गैर-खाद्यानों को इस से बहार रखा गया।
ऐशे क्या कारण थे की हरित क्रांति को पंजाब, हरियाणा में अधिक सफलता मिली