यूपीएससी प्रासंगिकता – जीएस पेपर II (अंतर्राष्ट्रीय संबंध और राजनीति)
चर्चा में क्यों ?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के 25वें शिखर सम्मेलन में भाग लिया, जो 2025 में चीन के तियानजिन शहर में आयोजित हुआ। यह सम्मेलन ऐतिहासिक रहा क्योंकि यह 2020 की गलवान झड़पों के बाद पहली बार था जब मोदी और शी जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय बैठक हुई। यह बैठक भारत-चीन संबंधों में तनाव कम करने और भारत की विदेश नीति में रणनीतिक बदलाव का संकेत देती है।
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के बारे में
उत्पत्ति और विकास
● शुरुआत 1996 में “शंघाई फाइव” के रूप में हुई — सदस्य: चीन, रूस, कज़ाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान। इसका उद्देश्य सीमा विवाद सुलझाना और सुरक्षा सहयोग बढ़ाना था ।
● 2001 में उज्बेकिस्तान के शामिल होने के बाद यह संगठन औपचारिक रूप से SCO बना, और इसका एजेंडा सुरक्षा, आर्थिक, और विकास सहयोग तक फैल गया।
● इसकी आधिकारिक भाषाएँ हैं : रूसी और चीनी
सदस्यता
🔹 पूर्ण सदस्य (10):
चीन, रूस, कज़ाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, भारत, पाकिस्तान, ईरान, बेलारूस
🔹 पर्यवेक्षक देश (Observers):
अफगानिस्तान, मंगोलिया
🔹 संवाद साझेदार (Dialogue Partners):
तुर्की, श्रीलंका, नेपाल, अज़रबैजान आदि।
संस्थागत ढांचा
● राज्य प्रमुखों की परिषद (CHS): यह संगठन का सबसे उच्च निर्णय लेने वाला निकाय है।
● शासनाध्यक्षों की परिषद (CHG): यह आर्थिक सहयोग और नीतियों पर केंद्रित रहता है।
● सचिवालय (बीजिंग): यह संगठन का प्रशासनिक केंद्र है।
● RATS (Regional Anti-Terrorist Structure) – क्षेत्रीय आतंकवाद-रोधी संरचना यह एक स्थायी इकाई है जो तीन बुराइयों आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद से लड़ने के लिए काम करती है।
उद्देश्य
- आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद का मुकाबला करना।
- व्यापार, निवेश और संपर्क व्यवस्था को मजबूत बनाना।
- राजनीतिक और कूटनीतिक संवाद को बढ़ावा देना।
- सांस्कृतिक, शैक्षणिक, और पीपल -टू-पीपल संपर्क को प्रोत्साहित करना।
SCO का महत्त्व
दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन :
SCO यूरेशिया के लगभग 60% क्षेत्र को कवर करता है और इसमें दुनिया की ~40% आबादी शामिल है।
आर्थिक महाशक्ति :
SCO देश वैश्विक GDP का लगभग 23% योगदान करते हैं।
रणनीतिक भूमिका :
यह संगठन पश्चिमी गुटों जैसे NATO और G7 के मुकाबले में यूरेशिया का संतुलन प्रदान करता है।
2025 SCO शिखर सम्मेलन – तियानजिन, चीन
1. थीम : “Upholding the Shanghai Spirit: SCO on the Move”
शंघाई स्पिरिट का अर्थ है : आपसी विश्वास, विविधता का सम्मान, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, और सहयोग की भावना।
· मेज़बान: चीन (5वीं बार)
· अगली अध्यक्षता (2026): किर्गिस्तान
2. मुख्य परिणाम (Major Outcomes)
A) सुरक्षा और आतंकवाद
तियानजिन घोषणा :
- हर प्रकार के आतंकवाद की निंदा की गई।
- विशेष उल्लेख: पहलगाम हमला (भारत), जाफर एक्सप्रेस हमला (पाकिस्तान)
संकल्प (Pledge):
- सीमापार आतंकवाद (cross-border terrorism) खत्म करने का संकल्प लिया गया।
- भारत, पाकिस्तान, चीन, रूस, मध्य एशिया के लिए आतंकवाद को साझा खतरा बताया गया।
इससे भारत की सीमापार आतंकवाद के खिलाफ रणनीति को स्थिति को मजबूती मिलेगी ।
B) आर्थिक सहयोग (Economic Cooperation)
SCO विकास बैंक :
- क्षेत्रीय इन्फ्रास्ट्रक्चर फंडिंग के लिए प्रस्ताव (AIIB/BRICS Bank की तरह)।
प्रमुख एजेंडा:
- वैश्विक व्यापार को स्थिर बनाना
- आपसी निवेश बढ़ाना
- विश्वास-निर्माण उपाय(Confidence-Building Measures) → सीमाओं को सहयोग क्षेत्र में बदलना।
भारत को सेंट्रल एशिया से कनेक्टिविटी और फंडिंग में मदद मिलती है, लेकिन चीन की बढ़ती भूमिका को लेकर सतर्कता बरतता है।
C) वैश्विक और क्षेत्रीय मुद्दे (Global & Regional Issues)
- फिलिस्तीन: पश्चिम एशिया में न्यायपूर्ण समाधान का समर्थन।
- ईरान: UNSC प्रस्ताव 2231 का समर्थन → परमाणु प्रतिबद्धता + प्रतिबंध हटाने की बात।
- अफगानिस्तान: समावेशी शासन (केवल तालिबान नहीं) की जरूरत पर ज़ोर।
- ग्लोबल साउथ: विकासशील देशों के सशक्तिकरण की बात, खासकर वैश्विक व्यापार अनिश्चितता के समय।
भारत की Global South की अगुवाई को समर्थन मिला।
SCO अब गैर-पश्चिमी मंच(non-Western platform) की भूमिका निभा रहा है।
3. वैश्विक शासन पहल
वैश्विक शासन पहल (Global Governance Initiative- GGI) की शुरुआत
- संप्रभु समानता, बहुपक्षवाद, और न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था को बढ़ावा।
- भारत के G20 विज़न से मेल: “One Earth, One Family, One Future”
- एकतरफा प्रतिबंधों का विरोध (जैसे रूस/ईरान पर पश्चिमी प्रतिबंध)।
- नई पहल: “Global Unity for a Just World, Harmony & Development”
SCO अब वैश्विक नियमों में पश्चिमी प्रभुत्व को चुनौती दे रहा है।
भारत को इससे बहुध्रुवीय व्यवस्था (multipolarity) में लाभ है, लेकिन उसे SCO और पश्चिमी साझेदारों के बीच संतुलन बनाए रखना होगा।
तियानजिन में भारत-चीन द्विपक्षीय संबंधों की नई शुरुआत
मुख्य समझौते :
प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2020 के बाद पहली बार आमने-सामने मुलाकात की और निम्नलिखित पर सहमति बनी:
सीमा विवाद को सुलझाने की प्रक्रिया में तेजी लाने का निर्णय — विशेष प्रतिनिधियों (Special Representatives) के जरिए।
सीधी उड़ानों और वीज़ा सुविधाओं को फिर से शुरू करना।
आर्थिक सहयोग बढ़ाना, जिससे वैश्विक व्यापार में स्थिरता लाई जा सके।
शी जिनपिंग ने कहा: “ड्रैगन और हाथी को साथ आना चाहिए” — यह सुलह (rapprochement) की मंशा को दर्शाता है।
भारत-चीन संबंधों में बदलाव की वजहें :
1. अमेरिकी प्रभाव :
- ट्रंप शासन के दौरान बढ़ते टैरिफ और प्रतिबंधों के चलते भारत को अपनी विदेश नीति में विविधता लानी पड़ी।
2. रणनीतिक स्वायत्तता :
- भारत ने कभी किसी एक गुट पर पूरी निर्भरता नहीं बनाई — यह स्वतंत्र विदेश नीति की नीति पर टिका रहा।
3. क्षेत्रीय संतुलन :
- SCO जैसे मंच भारत को मौका देते हैं कि वह चीन और रूस दोनों के साथ संवाद करे, बिना अपने राष्ट्रीय हितों से समझौता किए।
वैश्विक बहुपक्षवाद (Global Multilateralism) में SCO की भूमिका
1. भौगोलिक पहुंच और रणनीतिक संतुलन
● SCO में वैश्विक GDP का ~23% और दुनिया की ~42% आबादी शामिल है।
● जैसे-जैसे नए देश (जैसे तुर्की) डायलॉग पार्टनर बनते हैं, SCO एक गैर-पश्चिमी शक्ति समूह बनता जा रहा है।
यह संगठन NATO, G7, EU जैसी पश्चिमी गठबंधनों के प्रभाव को संतुलित करता है।
2. सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी सहयोग
● RATS (Regional Anti-Terrorist Structure) के तहत
- सदस्य देश आपस में खुफिया जानकारी साझा करते हैं।
- सांझे सैन्य अभ्यास करते हैं।
● खासकर अफगानिस्तान से NATO की वापसी के बाद, RATS ने - आतंकी ठिकानों और नशा तस्करी को रोकने में बड़ी भूमिका निभाई है।
SCO अब यूरेशिया में क्षेत्रीय सुरक्षा का कवच बन चुका है।
3. संपर्क और क्षेत्रीय एकीकरण
● बड़े प्रोजेक्ट्स को समर्थन देता है:
- INSTC (India–Iran–Russia–Central Asia)
- चाबहार पोर्ट: भारत का सेंट्रल एशिया तक पहुँच का द्वार।
● SCO Business Council और Interbank Consortium - व्यापार, निवेश और बैंकिंग सहयोग को बढ़ावा देते हैं।
SCO एक “आर्थिक हाईवे” की तरह काम करता है, जो दक्षिण एशिया, मध्य एशिया और यूरोप को जोड़ता है।
4. सांस्कृतिक और विकास सहयोग
- भारत की पहलें: बौद्ध विरासत का प्रचार, डिजिटल समावेशन, स्टार्टअप्स और परंपरागत चिकित्सा।
- यह पीपल -टू-पीपल संपर्क, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, छात्रों का आदान-प्रदान और पर्यटन को बढ़ावा देता है।
- यह सॉफ्ट पावर सरकारों से आगे जाकर आपसी भरोसे को मजबूत करती है।
5. वैश्विक संस्थाओं में सुधार की मांग
● SCO का समर्थन:
- UN सुधार, विशेष रूप से UNSC का विस्तार।
- बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था (Multipolar World Order) का समर्थन।
- व्यापार, जलवायु और टेक्नोलॉजी में न्यायपूर्ण वैश्विक शासन की मांग।
SCO अब Global South की आवाज बनकर, अंतरराष्ट्रीय संस्थानों का लोकतंत्रीकरण चाहता है।
SCO में भारत की चिंताएं :
1. चीन का प्रभुत्व
● SCO एक चीन-केन्द्रित मंच बनता जा रहा है जो Belt and Road Initiative (BRI) को बढ़ावा देता है।
● भारत BRI का विरोध करता है क्योंकि इसका एक भाग CPEC (China-Pakistan Economic Corridor) पाक-अधिकृत कश्मीर (PoK) से गुजरता है — जिसे भारत अपनी संप्रभुता का उल्लंघन मानता है।
2. संपर्क परियोजनाओं से बाहर
● अधिकांश SCO सदस्य BRI का समर्थन करते हैं, जिससे भारत महत्वपूर्ण क्षेत्रीय संपर्क परियोजनाओं से अलग-थलग हो जाता है।
3. चीन–पाकिस्तान गठजोड़
● पाकिस्तान अब भी सीमापार आतंकवाद (cross-border terrorism) का समर्थन करता है।
● चीन बार-बार भारत के प्रस्तावों को ब्लॉक करता है — चाहे वो SCO में हों या UNSC में (जैसे आतंकियों को सूचीबद्ध करने के प्रयास)।
4. पश्चिम-विरोधी छवि
● SCO को अकसर अमेरिका-विरोधी मंच के रूप में देखा जाता है।
इससे भारत को Quad, EU और G20 जैसे पश्चिमी साझेदारों के साथ संतुलन बनाए रखना मुश्किल होता है।
5. कमजोर क्रियान्वयन
● परिवहन और व्यापार समझौतों पर कई घोषणाएँ होती हैं, लेकिन ज़मीन पर उचित क्रियान्वयन नहीं होता।
इससे SCO, ASEAN जैसी संस्थाओं के मुकाबले कमजोर दिखता है।
2025 शिखर सम्मेलन के कूटनीतिक पहलू :
● आरआईसी सौहार्द: मोदी, शी और पुतिन ने मिलकर रूस-भारत-चीन त्रिपक्षीय वार्ता की यादें ताज़ा कीं।
● मोदी ने इस यात्रा को “उत्पादक” बताया।
●भारत ने एससीओ-प्लस शिखर सम्मेलन में भाग नहीं लिया, जिससे मध्य एशिया और व्यापक वैश्विक दक्षिण तक पहुँच सीमित हो गई।
भारत की विदेश नीति में बदलाव का महत्त्व
1. रणनीतिक स्वायत्तता की पुनः पुष्टि
● भारत यह स्पष्ट कर रहा है कि वह किसी एक गुट से पूरी तरह नहीं जुड़ेगा।
● एक ओर वह Quad, G20, I2U2 जैसे पश्चिमी मंचों से जुड़ा है।
● दूसरी ओर वह SCO और BRICS जैसे यूरेशियन मंचों में भी सक्रिय है।
यह भारत को लचीलापन देता है और नव-गुटनिरपेक्षता (modern non-alignment) को दर्शाता है — नेहरू युग की नीति का नया रूप।
2. चीन कारक
सकारात्मक पक्ष:
- सीमा पर कुछ तनाव कम हुआ है — इससे यह संकेत मिलता है कि दोनों देश तनाव घटाना चाहते हैं।
नकारात्मक पक्ष:
- भरोसे की कमी (Trust Deficit) अब भी बनी हुई है, क्योंकि:
- चीन, पाकिस्तान के आतंकवाद मुद्दों पर समर्थन करता है।
- चीन ने भारत की UNSC सुधार और NSG सदस्यता को बार-बार रोका है।
SCO में सहयोग चलता रहेगा, लेकिन द्विपक्षीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा भी बनी रहेगी।
3. रूस कारक
● यूक्रेन युद्ध के बाद जब रूस पश्चिम से अलग-थलग पड़ा, भारत ने रूस से संबंध बनाए रखे ताकि:
- सस्ती तेल आपूर्ति जारी रहे।
- रक्षा सौदे जैसे S-400 मिसाइलें और स्पेयर पार्ट्स मिलते रहें।
- INSTC और आर्कटिक रूट के ज़रिए यूरेशिया से संपर्क बना रहे।
● भारत ने RIC (Russia–India–China) त्रिपक्षीय समूह को फिर से सक्रिय किया —
यह चीन के साथ सॉफ्ट डिप्लोमेसी का रास्ता खोलता है।
रूस “सेतु” की भूमिका निभाता है और भारत और चीन के बीच मल्टीलेटरल संवाद को संभव बनाता है।
4. भू-राजनीतिक प्रभाव
· भारत खुद को पश्चिम और यूरेशिया के बीच, विकसित उत्तर और ग्लोबल साउथ के बीच एक “ब्रिज नेशन” के रूप में स्थापित कर रहा है।
- भारत पश्चिमी और गैर-पश्चिमी दोनों मंचों में सक्रिय रहकर बहुध्रुवीय विश्व (multipolar world) में अपनी आवाज़ को मज़बूत कर रहा है।
इससे भारत की “विश्वगुरु” और ग्लोबल साउथ के स्वाभाविक नेता के रूप में दावेदारी मजबूत होती है।
भारत के लिए SCO में भविष्य की चुनौतियाँ
1. चीन के साथ एलएसी विवाद
● भले ही सीमा से सैनिकों की वापसी पर बातचीत चल रही है, लेकिन LAC पर तनाव अब भी बना हुआ है।
● सीमा पर अविश्वास (border mistrust) के कारण SCO के भीतर भारत और चीन के बीच पूरा सहयोग मुश्किल हो जाता है।
उदाहरण: भारत ने पहले SCO सैन्य अभ्यास से चीन की भागीदारी के कारण वॉकआउट किया था।
2. चीन–पाकिस्तान गठजोड़
● चीन लगातार ग्लोबल मंचों पर पाकिस्तान का बचाव करता है — जैसे UNSC में आतंकी लिस्टिंग, या FATF में।
● SCO में भी यह गठजोड़, भारत के सीमापार आतंकवाद के खिलाफ प्रयासों को कमजोर करता है।
उदाहरण: तियानजिन घोषणा में पहलगाम हमले का ज़िक्र हुआ, फिर भी पाकिस्तान ने शामिल होने से इनकार किया।
3. SCO में चीन का प्रभुत्व
● SCO की स्थापना चीन और रूस के नेतृत्व में हुई थी; भारत तो 2017 में शामिल हुआ।
● SCO विकास बैंक, BRI जैसी आर्थिक योजनाओं को मुख्य रूप से चीन ही चला रहा है।
● भारत की कनेक्टिविटी और सांस्कृतिक पहलों को कई बार नज़रअंदाज़ किया गया है।
जोखिम: अगर भारत आंतरिक गठबंधन नहीं बना पाया, तो वह एक छोटे साझेदार की भूमिका में ही रह जाएगा।
4. SCO का पश्चिम-विरोधी स्वरूप
● रूस की पश्चिम से कटौती और चीन–पश्चिम के बीच तनाव के चलते, SCO को अब अक्सर अमेरिका/नाटो विरोधी मंच माना जा रहा है।
● जबकि भारत Quad, EU, G20 जैसे पश्चिमी मंचों में भी सक्रिय है।
इससे भारत की “टाइटरोप वॉक” नीति मुश्किल हो जाती है — यानी वह एक साथ SCO और Quad दोनों में कैसे संतुलन बनाए?
5. कमजोर संस्थागत ढांचा
● SCO में अब भी कोई बाध्यकारी कानून व्यवस्था नहीं है।
● कई घोषणाएं सिर्फ राजनीतिक बयान बनकर रह जाती हैं, जिनका पालन नहीं होता।
जोखिम: SCO भी कहीं SAARC जैसा प्रतीकात्मक लेकिन कमजोर संगठन न बन जाए।
6. भारत–अमेरिका संबंधों में खटास की आशंका
● जैसे-जैसे भारत SCO में रूस और चीन के साथ जुड़ता है, अमेरिका की चिंता बढ़ सकती है।
● पहले ही अमेरिका सस्ते रूसी तेल को लेकर असहज है; SCO के साथ गहराता रिश्ता और खटास ला सकता है।
इससे भारत-अमेरिका वैश्विक रणनीतिक साझेदारी (Comprehensive Global Strategic Partnership) की कठिन परीक्षा हो सकती है।
SCO में भारत का आगे की राह
1. चीन के साथ संतुलित भागीदारी
● भारत को SCO के अंदर चीन से आर्थिक, सुरक्षा और क्षेत्रीय मुद्दों पर संवाद जारी रखना चाहिए।
● लेकिन साथ ही, LAC विवादों पर भारत को अपनी संप्रभुता की रक्षा करते हुए कड़ा रुख बनाए रखना होगा।
यह संतुलन भारत को यूरेशिया में अलग-थलग पड़ने से बचाता है, और साथ ही राष्ट्रीय हितों की रक्षा करता है।
2. आतंकवाद विरोधी नेतृत्व
● RATS (Regional Anti-Terrorist Structure) के ज़रिए भारत को चाहिए कि वह: –ज्यादा आतंकी संगठनों को सूचीबद्ध करवाए, खुफिया जानकारी साझा करने पर ज़ोर दे और संयुक्त आतंकवाद-रोधी अभ्यास कराए।
इससे भारत सीमापार आतंकवाद, खासकर पाकिस्तान समर्थित संगठनों को वैश्विक मंच पर उजागर कर सकता है।
3. बहुध्रुवीय कूटनीति (Multipolar Diplomacy)
● भारत को “मल्टी-अलाइनमेंट” की नीति अपनानी चाहिए — यानी वह SCO, BRICS, Quad, G20 सभी में सक्रिय रूप से शामिल हो।
इससे भारत पश्चिम या यूरेशिया के किसी एक खेमे में बंद नहीं होता, बल्कि वैश्विक राजनीति में संतुलनकारी की भूमिका निभाता है।
उदाहरण: 2023 में G20 की मेज़बानी और अब SCO में सक्रिय भागीदारी — दोनों ने भारत की वैश्विक साख बढ़ाई है।
4. एससीओ के माध्यम से पड़ोसी देशों तक पहुँच
● मध्य एशियाई गणराज्यों (ऊर्जा, व्यापार, सुरक्षा) के साथ साझेदारी को मज़बूत करने पर जोर देनी चाहिए ।
● अफ़ग़ानिस्तान में समावेशी शासन, आतंकवाद-रोधी गारंटी और मानवीय सहायता के लिए प्रयास करने पर जोर देनी होगी ।
इससे भारत सिर्फ दक्षिण एशिया तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि एक विश्वसनीय क्षेत्रीय शक्ति बनकर उभरेगा।
5. आर्थिक विवेक और रणनीति
● SCO देशों के साथ भारत को व्यापार बढ़ाना चाहिए, खासकर:
- ऊर्जा (कज़ाखस्तान, रूस)
- कनेक्टिविटी (INSTC, चाबहार पोर्ट)
- आईटी सेवाएं
● साथ ही, भारत को संवेदनशील क्षेत्रों (जैसे 5G, इंफ्रास्ट्रक्चर) में चीनी निवेश की गहन जांच करनी चाहिए ताकि सुरक्षा जोखिम से बचा जा सके।
निष्कर्ष
2025 का SCO शिखर सम्मेलन (तियानजिन, चीन) भारत की विदेश नीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ है। भारत ने इस सम्मेलन के माध्यम से चीन और रूस के साथ फिर से जुड़ाव करके अपनी रणनीतिक स्वायत्तता ( और बहुध्रुवीय दृष्टिकोण (multipolar vision) को दोहराया है।
मुख्य परिणाम जैसे:– आतंकवाद की स्पष्ट निंदा, SCO विकास बैंक का प्रस्ताव, वैश्विक शासन पहल यह सब दिखाता है कि SCO अब पश्चिमी संस्थाओं का एक संभावित संतुलन बनता जा रहा है। लेकिन भारत के लिए रास्ता अभी सरल नहीं है। चीन–पाकिस्तान गठजोड़, सीमा विवाद, और SCO की कमज़ोर संस्थागत क्षमता बड़ी चुनौतियाँ हैं।
इसलिए भारत को चाहिए कि वह संतुलित, बहु-संरेखण रणनीति (calibrated multi-alignment) अपनाए, ताकि SCO से अवसरों का लाभ उठाते हुए अपनी संप्रभुता और वैश्विक स्थिति की रक्षा कर सके
UPSC Prelims Practice Question (2025)
प्रश्न: तियानजिन घोषणा (2025), जो 25वें SCO सम्मेलन में अपनाई गई थी, में निम्न में से कौन-कौन से प्रावधान शामिल थे?
- SCO विकास बैंक की स्थापना के लिए प्रस्ताव
- UN Charter और WTO नियमों का उल्लंघन करने वाले एकतरफा प्रतिबंधों को खारिज करना
- सीमापार आतंकवाद की निंदा, जिसमें पहलगाम और जाफर एक्सप्रेस हमलों का उल्लेख
- “Global Governance Initiative (GGI)” का प्रस्ताव, जो भारत के दृष्टिकोण “एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य” के अनुरूप है
सही उत्तर चुनें:
- A. 1 और 3 केवल
- B. 2 और 4 केवल
- C. 1, 2, और 3 केवल
- D. 1, 2, 3 और 4 सभी
उत्तर – (D)
उपरोक्त सभी प्रावधान तियानजिन घोषणा 2025 में शामिल थे।
UPSC Mains Practice Questions
**Q1. “2025 के तियानजिन SCO शिखर सम्मेलन में भारत की भागीदारी उसकी विदेश नीति के रणनीतिक पुनर्संरेखण को दर्शाती है।”
**Q2. “शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की 2025 तियानजिन घोषणा का महत्त्व स्पष्ट कीजिए।