गुरुत्वाकर्षण तरंगें और ब्रह्मांडीय सिम्फनी: समय और अंतरिक्ष के किनारे पर भारत

यूपीएससी प्रासंगिकता-

प्रारंभिक परीक्षा का दृष्टिकोण: LIGO-भारत का स्थान, SKA की भूमिका, LISA की अवधारणा, गुरुत्वाकर्षण तरंगों की मूल बातें।

GS-3 (विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी): भौतिकी, खगोल विज्ञान और अंतरिक्ष-आधारित वेधशालाओं में प्रगति।

चर्चा में क्यों?

वैज्ञानिक अब गुरुत्वाकर्षण तरंगों (अंतरिक्ष-समय में सूक्ष्म तरंगें) का अध्ययन करने के लिए चंद्रमा को एक नए केंद्र के रूप में उपयोग करने की योजना बना रहे हैं। लेज़र इंटरफेरोमीटर लूनर एंटीना (LILA) नामक एक अमेरिकी परियोजना का उद्देश्य चंद्रमा के शांत ध्रुवीय क्षेत्रों में डिटेक्टर स्थापित करना है, जहाँ पृथ्वी जैसी शोर और कंपन की बाधाएँ नहीं होतीं।

भारत भी महाराष्ट्र में LIGO-India वेधशाला का निर्माण कर रहा है, जो 2030 तक वैश्विक गुरुत्वाकर्षण-तरंग नेटवर्क का हिस्सा बन जाएगी। ये परियोजनाएँ मिलकर वैज्ञानिकों को ब्रह्मांड से आने वाले नए संकेतों को पकड़ने में मदद करेंगी – मानो ब्रह्मांडीय सिम्फनी में नए “संगीत स्वरों” का समावेश हो।

पृष्ठभूमि

  • आइंस्टीन ने 1916 में अपने सामान्य सापेक्षता सिद्धांत में गुरुत्वाकर्षण तरंगों के अस्तित्व का पूर्वानुमान लगाया था – यानी अंतरिक्ष-समय के ताने-बाने में हल्की लहरें।
  • इन तरंगों का पहली बार 2015 में अमेरिका के LIGO डिटेक्टर ने पता लगाया, जो 1.3 अरब प्रकाश वर्ष दूर दो ब्लैक होल के टकराव से उत्पन्न हुई थीं।
  • वर्तमान में कई भू-आधारित डिटेक्टर कार्यरत हैं:
    • LIGO (अमेरिका)
    • Virgo (इटली)
    • KAGRA (जापान)
    • GEO600 (जर्मनी)

ये डिटेक्टर 100–1,000 हर्ट्ज़ रेंज की तरंगों को पकड़ सकते हैं, लेकिन अधिकांश गुरुत्वाकर्षण-तरंग संकेत – खासकर निम्न आवृत्ति वाले – अब भी अज्ञात हैं। यह निम्न आवृत्ति, जिसे “डेसीहर्ट्ज़ रेंज” कहा जाता है, प्रारंभिक ब्रह्मांड के रहस्यों को उजागर कर सकती है।

स्पेक्ट्रम के विस्तार के लिए वैश्विक प्रयास

  1. भू-आधारित डिटेक्टर:
    ○ LIGO, Virgo और KAGRA उच्च आवृत्ति की तरंगों को दर्ज करते हैं।
    ○ लेकिन पृथ्वी के भूकंपीय कंपन उनकी संवेदनशीलता को सीमित करते हैं।
  2. अंतरिक्ष-आधारित मिशन:
    ○ LISA (2030 के दशक): पृथ्वी के पीछे त्रिकोणीय कक्षा में तीन उपग्रह, 0.1 mHz–0.1 Hz रेंज की तरंगें पकड़ने के लिए।
    ○ DECIGO (जापान) और TianGo (अमेरिका के नेतृत्व में): डेसीहर्ट्ज़ रेंज की तरंगों के लिए प्रस्तावित मिशन।
  3. रेडियो खगोल विज्ञान:
    ○ ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका में स्क्वायर किलोमीटर ऐरे (SKA), पल्सर की निगरानी के जरिये नैनोहर्ट्ज़ तरंगों को पकड़ता है।
  4. चंद्र-आधारित डिटेक्टर:
    ○ LILA (अमेरिका) और LGWA (यूरोप), उप-हर्ट्ज़ गुरुत्वाकर्षण-तरंगों की खोज के लिए चंद्रमा के शांत वातावरण और कम कंपन का लाभ उठाते हैं।
    भारत की भूमिका: LIGO-India और आगे
  5. IndIGO (भारतीय पहल):
    ○ गुरुत्वाकर्षण-तरंग खगोल विज्ञान के लिए विशेषज्ञता और आधारभूत संरचना विकसित करने की भारत की योजना।
  6. LIGO-India (हिंगोली, महाराष्ट्र):
    ○ 2030 तक चालू होने की संभावना।
    ○ यह वैश्विक नेटवर्क का हिस्सा बनेगा और त्रिकोणीयकरण तकनीक से तरंगों के पता लगाने की सटीकता और संवेदनशीलता बढ़ाएगा।
  7. रेडियो खगोल विज्ञान सहयोग:
    ○ भारत SKA परियोजना में भी भाग ले रहा है।
    ○ पल्सर टाइमिंग ऐरे के जरिये, पूरी आकाशगंगा एक प्राकृतिक गुरुत्वाकर्षण-तरंग डिटेक्टर की तरह कार्य कर सकती है।
    गुरुत्वाकर्षण-तरंग खगोल विज्ञान का महत्व
  8. विज्ञान का नया आयाम:
    ○ प्रकाश और विद्युतचुंबकीय तरंगों से परे “गुरुत्वाकर्षण आकाश” की खोज संभव।
  9. ब्लैक होल की समझ:
    ○ डेसीहर्ट्ज़ तरंगें मध्यम-द्रव्यमान वाले ब्लैक होल के अध्ययन में मददगार, जो अतिविशाल ब्लैक होल के निर्माण खंड हैं।
  10. प्रारंभिक ब्रह्मांड की पड़ताल:
    ○ गुरुत्वाकर्षण तरंगें बिना किसी बाधा के अंतरिक्ष से गुजर सकती हैं, जिससे प्रारंभिक ब्रह्मांड की झलक मिलती है।
  11. वैश्विक सहयोग:
    ○ LIGO, LISA, SKA और LILA जैसी परियोजनाएँ विज्ञान कूटनीति और ज्ञान-साझाकरण को प्रोत्साहित करती हैं।
  12. भारत की वैज्ञानिक प्रगति:
    ○ LIGO-India, भारत को उच्च-परिशुद्धता भौतिकी अनुसंधान में अग्रणी बनाता है।
    आगे की चुनौतियाँ
  13. तकनीकी कठिनाइयाँ:
    ○ डेसीहर्ट्ज़ तरंगों का पता लगाना अभी बेहद कठिन है; फिलहाल चंद्रमा ही इसके लिए सबसे उपयुक्त वातावरण देता है।
  14. उच्च लागत:
    ○ अंतरिक्ष और चंद्र मिशनों में अरबों डॉलर और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता होती है।
  15. बुनियादी ढाँचा और प्रतिभा:
    ○ भारत को मजबूत STEM शिक्षा, अधिक R&D फंड और वैश्विक साझेदारियों की ज़रूरत है।
  16. दीर्घकालिक स्थिरता:
    ○ ऐसी परियोजनाओं के लिए लगातार राजनीतिक और आर्थिक समर्थन अनिवार्य है।

आगे की राह

  • LIGO-India में तेजी: समय पर पूरा कर भारत को वैश्विक नेटवर्क से जोड़ना।
  • चंद्र सहयोग: चंद्रयान अभियानों और भविष्य की चंद्र वेधशालाओं (जैसे LILA) के बीच तालमेल।
  • डेसीहर्ट्ज़ अनुसंधान: भारत-नेतृत्व वाले प्रस्तावों में निवेश कर स्पेक्ट्रम की कमी को भरना।
  • पल्सर टाइमिंग ऐरे: SKA सहयोग का पूरा उपयोग कर आकाशगंगा-व्यापी तरंगों की खोज।
  • नीतिगत प्रयास: अंतरिक्ष विज्ञान कूटनीति में भारत की केंद्रीय भूमिका।

निष्कर्ष

गुरुत्वाकर्षण-तरंग खगोल विज्ञान अभी आरंभिक अवस्था में है, लेकिन धीरे-धीरे यह ब्रह्मांडीय संगीत की तरह परत दर परत खुल रहा है। पृथ्वी-आधारित डिटेक्टर जहाँ ऊँचे-स्वर पकड़ते हैं, वहीं SKA गहरे बास स्वरों को सुनता है और भविष्य के चंद्र मिशन खोए हुए मध्यम स्वरों को सामने लाएँगे। ये सब मिलकर मानवता को ब्रह्मांड की पूरी “सिम्फनी” सुनने का अवसर देंगे – और शायद समय और स्थान के जन्म की कहानी तक पहुँचने का भी।

प्रारंभिक परीक्षा अभ्यास प्रश्न

प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सी परियोजना विशेष रूप से अंतरिक्ष में निम्न-आवृत्ति गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाने के लिए डिज़ाइन की गई है?

 A) LIGO
 B) LISA
 C) SKA
 D) LIGO-India

उत्तर: B) LISA

मुख्य परीक्षा प्रश्न (150 शब्द)

प्रश्न:
 “गुरुत्वाकर्षण-तरंग खगोल विज्ञान विद्युत चुम्बकीय प्रेक्षणों से परे ब्रह्मांड का पता लगाने के लिए एक नई खिड़की खोल रहा है।” गुरुत्वाकर्षण-तरंग अनुसंधान में भारत की पहल और विज्ञान एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए उनके महत्व के संदर्भ में इस कथन पर चर्चा करें।

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