OPEC और OPEC+

समाचार में क्यों / संदर्भ

नवंबर 2025 में OPEC+ द्वारा कम से कम 1.37 लाख बैरल प्रतिदिन तेल उत्पादन बढ़ाने की मंज़ूरी दिए जाने की उम्मीद है। यह कदम पहले की उत्पादन कटौती को उलटने की दिशा में है। अप्रैल 2025 से ही समूह ने बढ़ती कीमतों के बीच बाज़ार हिस्सेदारी वापस पाने के लिए उत्पादन कोटा में 25 लाख बैरल प्रतिदिन (विश्व मांग का लगभग 2.4%) से अधिक की बढ़ोतरी की है। वैश्विक कच्चे तेल की आपूर्ति में OPEC+ की हिस्सेदारी लगभग 40–45% होने के कारण, इसके निर्णयों का ऊर्जा सुरक्षा, मुद्रास्फीति, व्यापार संतुलन और भू-राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

OPEC और OPEC+

OPEC की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • स्थापना: 1960 में बगदाद सम्मेलन में ईरान, इराक, कुवैत, सऊदी अरब और वेनेजुएला द्वारा, पश्चिमी तेल कंपनियों (“सात बहनें”) के प्रभुत्व का मुकाबला करने के लिए।
  • विकास: शुरुआत में उत्पादक देशों का एक समूह, OPEC 1970 के दशक के तेल संकट के समय एक प्रमुख भू-राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरा, जब प्रतिबंधों के कारण वैश्विक कीमतों में भारी वृद्धि हुई।
  • सदस्यता परिवर्तन:
    • अफ्रीका, मध्य पूर्व और दक्षिण अमेरिका के कई देशों को शामिल किया गया।
    • अंगोला जनवरी 2024 में बाहर हो गया।
    • गैबॉन 2016 में फिर से जुड़ा (पहले बाहर हो चुका था)।
  • मुख्यालय: वियना, ऑस्ट्रिया (1965 में जिनेवा से स्थानांतरित)।

OPEC की संस्थागत विशेषताएँ

  • स्वरूप: स्थायी अंतर-सरकारी संगठन।
  • निर्णय प्रक्रिया: प्रत्येक सदस्य के पास एक वोट होता है; निर्णय सर्वसम्मति से लिए जाते हैं।
  • उद्देश्य:
    • पेट्रोलियम नीतियों का समन्वय और एकरूपता।
    • तेल की उचित और स्थिर कीमतें सुनिश्चित करना।
    • उत्पादकों के लिए स्थिर आय और उपभोक्ताओं के लिए भरोसेमंद आपूर्ति।
  • मुख्य कार्य:
    • उत्पादन कोटा तय कर सामूहिक उत्पादन का प्रबंधन।
    • मूल्य अस्थिरता से बचते हुए सदस्य देशों की आय की रक्षा।

OPEC+ के बारे में

  • परिभाषा: 23 तेल निर्यातक देशों (12 OPEC सदस्य + 11 गैर-OPEC उत्पादक) का गठबंधन।
  • गठन: 2016, OPEC और गैर-OPEC उत्पादकों के बीच सहयोग को संस्थागत रूप देने के लिए।
  • गैर-OPEC सदस्य: रूस, कजाकिस्तान, मेक्सिको, अज़रबैजान, बहरीन, ब्रुनेई, मलेशिया, ओमान, दक्षिण सूडान, सूडान और ब्राज़ील (2025 में शामिल हुआ)
  • महत्व:
    • वैश्विक तेल आपूर्ति का लगभग 40–45% नियंत्रित करता है।
    • दुनिया के ~80% सिद्ध भंडार पर अधिकार।
  • तंत्र: कोटा तय करने और बाज़ार की स्थिति की समीक्षा के लिए नियमित (मासिक मंत्रिस्तरीय) बैठकें।

OPEC और OPEC+ का वैश्विक महत्व

  1. तेल मूल्य स्थिरता: संयुक्त उत्पादन कटौती या विस्तार से अत्यधिक उतार-चढ़ाव रोका जाता है।
    1. उदाहरण: कोविड-19 (2020) के दौरान, OPEC+ ने उत्पादन में 9.7 मिलियन बैरल प्रतिदिन की ऐतिहासिक कटौती की।
  2. ऊर्जा सुरक्षा: भारत, चीन और यूरोपीय संघ जैसे आयात-निर्भर देशों के लिए भरोसेमंद आपूर्ति।
  3. भूराजनीतिक प्रभाव: सऊदी अरब और रूस उत्पादन नीति को वैश्विक राजनीति में रणनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं।
  4. मुद्रास्फीति पर असर: तेल की कीमतों में वृद्धि का सीधा असर परिवहन, विनिर्माण और खाद्य लागत पर।
  5. प्रतिस्पर्धा: अमेरिकी शेल, नॉर्वे और गुयाना जैसे नए उत्पादक देशों से OPEC का दबदबा घटता है।
  6. ऊर्जा संक्रमण की चुनौती: नवीकरणीय ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहनों और “नेट-जीरो” लक्ष्यों की ओर वैश्विक रुझान से OPEC के सामने अल्पकालिक लाभ और दीर्घकालिक मांग में गिरावट का संतुलन बनाने की चुनौती।

OPEC+ के सामने चुनौतियाँ

  • आंतरिक मतभेद: कोटा विवाद (जैसे 2021 में सऊदी–यूएई टकराव)।
  • कोटा उल्लंघन: कुछ सदस्य तय सीमा से अधिक उत्पादन करते हैं, जिससे सामूहिक भरोसे पर असर पड़ता है।
  • भूराजनीतिक टकराव: ईरान, वेनेजुएला और रूस पर प्रतिबंध तथा युद्ध जैसी स्थितियाँ समन्वय में बाधा डालती हैं।
  • डीकार्बोनाइजेशन दबाव: COP28 (दुबई, 2023) में जीवाश्म ईंधन से दूर जाने पर ज़ोर दिया गया।
  • बाहरी दबाव: अमेरिका, यूरोपीय संघ और भारत जैसे आयातक देश तेल की कीमतें स्थिर रखने के लिए उत्पादन बढ़ाने की मांग करते हैं।

भारत के लिए प्रासंगिकता

  • निर्भरता: भारत लगभग 85% कच्चा तेल आयात करता है, जिसमें से OPEC का हिस्सा 60% से अधिक है।
  • आर्थिक प्रभाव:
    • ऊँची कीमतें चालू खाता घाटा बढ़ाती हैं, मुद्रास्फीति तेज करती हैं और रुपये को कमजोर करती हैं।
    • ईंधन और उर्वरकों पर सब्सिडी का बोझ बढ़ता है।
  • भारत की रणनीतिक प्रतिक्रियाएँ:
    • विविधीकरण: अमेरिका, रूस और लैटिन अमेरिका से आयात बढ़ाना।
    • रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार (SPR): मैंगलुरु, विशाखापट्टनम और पादुर में सुविधाएँ (चांदीखोल और पादुर में विस्तार की योजना)।
    • ऊर्जा संक्रमण: सौर ऊर्जा, जैव-ईंधन और राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन को बढ़ावा।
    • कूटनीति: स्थिर आपूर्ति के लिए सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और रूस के साथ संतुलित संबंध।

निष्कर्ष

OPEC और OPEC+ अब भी वैश्विक ऊर्जा व्यवस्था के केंद्रीय स्तंभ बने हुए हैं, जो तेल की कीमतों, व्यापार प्रवाह और अंतरराष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करते हैं। उनके समन्वित कदमों ने कई बार अस्थिर बाज़ारों को संतुलित किया है, लेकिन नवीकरणीय ऊर्जा का बढ़ता दबाव, गैर-OPEC देशों से प्रतिस्पर्धा, आंतरिक मतभेद और भू-राजनीतिक संकट बड़ी चुनौतियाँ हैं। भारत जैसे बड़े आयातक देश के लिए, OPEC के फैसले सीधे मुद्रास्फीति, आर्थिक विकास और रणनीतिक स्वायत्तता पर असर डालते हैं। इसलिए बदलती वैश्विक ऊर्जा व्यवस्था को समझने के लिए OPEC+ को समझना अत्यंत आवश्यक है।

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