UPSC प्रासंगिकता
- GS पेपर 2: स्वास्थ्य और शासन
ख़बरों में क्यों
भारत गंभीर मानसिक स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहा है, जो क्षेत्र, जनसांख्यिकी और पेशों की सीमाओं को पार कर गया है। हाल ही में हुई दुखद घटनाएँ, जैसे:
- उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर में एक दंपत्ति द्वारा कर्ज के कारण अपने चार महीने के बेटे को ज़हर देकर खुद आत्महत्या करना,
- राजस्थान के कोटा में कई छात्रों द्वारा आत्महत्या,
दिखाती हैं कि यह कोई असंबंधित घटनाएँ नहीं हैं, बल्कि व्यापक प्रणालीगत समस्या है।
कानूनी ढाँचों और कार्यक्रमों के बावजूद देश पर्याप्त मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करने में असफल है। इसके कारण डिजिटल उपकरणों और AI प्लेटफॉर्म पर निर्भरता बढ़ रही है, जो संस्थागत और सामाजिक विफलता का प्रतीक है।
पृष्ठभूमि
- ऐतिहासिक रूप से भारत में मानसिक स्वास्थ्य को कम प्राथमिकता दी गई है। कलंक, जागरूकता की कमी और संसाधनों का अभाव देखभाल में बाधाएँ पैदा करता रहा है।
- मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम (2017): आत्महत्या को अपराध की श्रेणी से बाहर किया और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के अधिकार की गारंटी दी।
- राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति (2022): लक्ष्य मृत्यु दर को 10% तक कम करना।
फिर भी, आत्महत्याएँ लगातार बढ़ रही हैं, जो नीति और कार्यान्वयन के बीच अंतर को दिखाती हैं।
- मानसिक स्वास्थ्य चुनौती बहुआयामी है और गाँवों, शहरों, छात्रों, पेशेवरों, किसानों, गृहिणियों और देखभाल करने वालों को प्रभावित करती है।
- परिणाम व्यक्तिगत त्रासदी से आगे बढ़कर सामाजिक, आर्थिक और नैतिक लागत तक फैले हैं।
आँकड़े और रुझान
1. आत्महत्या के आँकड़े (NCRB, ADSI 2023)
संकेतक | आँकड़े |
2023 में कुल आत्महत्याएँ | 1,71,418 (2022 से 0.3% वृद्धि) |
प्रति 1,00,000 पर आत्महत्या दर | 0.8% की हल्की गिरावट |
सर्वाधिक आत्महत्या दर वाले राज्य | अंडमान और निकोबार, सिक्किम, केरल |
सबसे अधिक निरपेक्ष संख्या वाले राज्य | महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल (>40%) |
लिंग वितरण | पुरुष: 72.8% |
प्रमुख कारण | पारिवारिक समस्याएँ: 31.9%, बीमारी: 19%, नशीले पदार्थ: 7%, संबंध/विवाह: ∼10% |
व्याख्या:
- शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में आत्महत्या दर अधिक, जो शहरी जीवन के दबाव को दर्शाती है।
- पुरुषों की अधिक संख्या सामाजिक और आर्थिक तनाव को दर्शाती है।
2. कृषि क्षेत्र का संकट
संकेतक | आँकड़े |
किसान आत्महत्याएँ (2023) | 10,786 (कुल का 6.3%) |
सर्वाधिक आत्महत्या वाले राज्य | महाराष्ट्र, कर्नाटक |
दीर्घकालिक बोझ | 2014 से >1,00,000; 1995–2015: 2,96,000 मामले |
कारण | कर्ज, फसल का नुक्सान, बाज़ार का झटका, संस्थागत उपेक्षा |
➡️ कृषि संकट भारत के मानसिक स्वास्थ्य बोझ में दीर्घकालिक योगदानकर्ता बना हुआ है।
3. अदृश्य बोझ: महिलाएँ और गृहिणियाँ
- गृहिणियाँ और देखभाल करने वाले (अधिकतर महिलाएँ) अवसाद, वैवाहिक संकट और घरेलू हिंसा का सामना करती हैं।
- आधिकारिक आँकड़ों में उनका प्रतिनिधित्व कम है। उनका कष्ट अदृश्य मानसिक स्वास्थ्य संकटों को उजागर करता है।
4. कुल मानसिक स्वास्थ्य बोझ
- 230 मिलियन भारतीय मानसिक विकारों के साथ जी रहे हैं: अवसाद, चिंता, द्विध्रुवी विकार और मादक द्रव्यों का उपयोग।
- उपचार का अंतर (Treatment gap): 80% से अधिक गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों को कोई औपचारिक देखभाल नहीं मिलती।
- जीवनकाल में व्यापकता: 10.6%
- उपचार अंतर की सीमा: 70%–92%
- WHO अनुमानित आत्महत्या दर: प्रति 1,00,000 लोगों पर 16.3 (आधिकारिक NCRB संख्या से अधिक)
व्याख्या:आधिकारिक आँकड़े वास्तविक संकट को कम दिखाते हैं। मानसिक स्वास्थ्य राष्ट्रीय स्तर पर उपेक्षित चिंता बनी हुई है।
चुनौतियाँ / मुद्दे
1. प्रणालीगत कमियाँ
पेशेवर | भारत (प्रति 1,00,000) | WHO न्यूनतम (प्रति 1,00,000) |
मनोचिकित्सक | 0.75 | 1.7 |
स्कूल अक्सर हजारों छात्रों के लिए अंशकालिक शिक्षकों पर निर्भर हैं।- कोचिंग हब और विश्वविद्यालय सीमित समर्थन प्रदान करते हैं।
2. नीति-कार्यान्वयन अंतराल
- मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम (2017): कागज़ पर प्रगतिशील, लेकिन कार्यान्वयन कमज़ोर।
- राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति (2022): 10% कमी का लक्ष्य, फिर भी आत्महत्याएँ बनी हुई हैं।
- स्कूल-आधारित सहायता निष्क्रिय।
- स्नातकोत्तर मनोरोग विभाग और उत्कृष्टता केंद्र सीमित संसाधनों के कारण पूर्ण क्षमता से संचालित नहीं।
- मानसिक स्वास्थ्य बजट: ₹270 करोड़, बहुत कम खर्च हुआ।
➡️ कानून मौजूद हैं, लेकिन निष्पादन बहुत कम है।
3. डिजिटल प्लेटफॉर्म पर बढ़ती निर्भरता
- कई भारतीय भावनात्मक समर्थन के लिए AI उपकरण (जैसे ChatGPT) पर निर्भर हो रहे हैं।
- जोखिम: गोपनीयता की कमी, संकट हस्तक्षेप का अभाव, लाइसेंस प्राप्त मानव देखभाल का अभाव।
- AI पर निर्भरता तकनीकी प्रगति नहीं, बल्कि मानवीय और संस्थागत विफलता का संकेत है।
ऑनलाइन समर्थन पर तत्काल विनियमन:
- गोपनीयता जोखिमों का खुलासा
- अनिवार्य अस्वीकरण
- संकट-प्रतिक्रिया पुनर्निर्देशन
- लाइसेंस प्राप्त पेशेवरों तक वास्तविक समय में पहुँच
जब तक कानूनी और नैतिक ढाँचे नहीं होंगे, AI मानव देखभाल की जगह नहीं ले सकता।
आगे की राह
- मानसिक स्वास्थ्य कार्यबल का विस्तार
● लक्ष्य: 5 वर्षों में प्रति 1,00,000 लोगों पर 3–5 मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर।
● ग्रामीण पोस्टिंग के लिए प्रशिक्षण, छात्रवृत्तियाँ और प्रोत्साहन। - सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे के रूप में परामर्श
● हर स्कूल, कॉलेज, जिला अस्पताल और कृषि ब्लॉक में पूर्णकालिक प्रशिक्षित परामर्शदाता।
● केंद्रीय बजट द्वारा वित्त पोषित।
● मानसिक स्वास्थ्य वार्ताओं को सामान्य बनाने और कलंक कम करने के लिए सार्वजनिक अभियान। - विशेष पहुँच (Special Outreach)
● किसान: परामर्श + ऋण राहत + आजीविका समर्थन
● गृहिणियाँ: समुदाय-आधारित थेरेपी नेटवर्क
● कोचिंग हब छात्र: निरंतर और संस्थागत देखभाल
● उत्पीड़न से बचे लोग और देखभाल करने वाले: लक्षित थेरेपी - डिजिटल विनियमन
● AI और मानसिक स्वास्थ्य ऐप्स के लिए कानूनी, नैतिक और परिचालन ढाँचे।
● गोपनीयता, संकट हस्तक्षेप, अस्वीकरण और मानव रेफरल सुनिश्चित करें।
निष्कर्ष
भारत का मानसिक स्वास्थ्य संकट केवल स्वास्थ्य मुद्दा नहीं है, बल्कि नैतिक, सामाजिक और आर्थिक आपातकाल है।
- 15–29 वर्ष के युवाओं में आत्महत्या प्रमुख मृत्यु कारण।
- वैश्विक महिला आत्महत्या में भारत का अनुपात अधिक।
- अनुपचारित मानसिक बीमारी से 2030 तक GDP में $1 ट्रिलियन से अधिक का नुकसान।
- कार्यस्थल पर वर्तमान में प्रति वर्ष ₹1.1 लाख करोड़ का नुकसान।
खोया हर जीवन: एक खामोश आवाज़, टूटा परिवार, असमय समाप्त भविष्य।
संदेश: “हम में से हर एक ने उस राहत को महसूस किया है जब कोई व्यक्ति या कोई प्रणाली कहती है: ‘आप मायने रखते हैं।’ भारत को आधुनिक, प्रगतिशील और मानवीय साबित करने के लिए चुपचाप फिसलती जिंदगियों को बचाना होगा।”
मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न (Mains Practice Question)
प्र. “भारत का मानसिक स्वास्थ्य संकट महज़ एक स्वास्थ्य मुद्दा नहीं है, बल्कि एक नैतिक, सामाजिक और आर्थिक आपातकाल है।” भारत में बढ़ती आत्महत्या दर, कृषि संकट और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल में अंतराल (gaps) के आलोक में इस कथन पर चर्चा कीजिए। (15–20 अंक)