भारत में इथेनॉल सम्मिश्रण: अवसर, चुनौतियाँ और आगे की राह

यूपीएससी प्रासंगिकता

प्रारंभिक परीक्षा- जैव ईंधन की मूल बातें, इथेनॉल उत्पादन, मिश्रण लक्ष्य, राष्ट्रीय जैव-ऊर्जा मिशन, इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम, फीडस्टॉक: गन्ना, मक्का, क्षतिग्रस्त खाद्यान्न।

मुख्य परीक्षा-

सामान्य अध्ययन-I: कृषि भूगोल; महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में जल संकट,

सामान्य अध्ययन-III: ऊर्जा सुरक्षा, जैव ईंधन, ईवी परिवर्तन, जलवायु परिवर्तन शमन।

चर्चा में क्यों?

2025 में भारत ने पेट्रोल में 20% एथेनॉल मिलाने (E20) का लक्ष्य पूरा कर लिया। यह उपलब्धि राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति, 2018 के तहत निर्धारित समय से पाँच साल पहले ही हासिल कर लिया गया है। इस उपलब्धि को भारत की ऊर्जा बदलाव (energy transition) की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। इसके कारण तेल आयात कम होंगे, किसानों को निश्चित आमदनी मिलेगी और भारत अपने जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करेगा।

हालाँकि इसके साथ ही कुछ समस्याएँ और सवाल उठने लगे हैं — पर्यावरणविद चिंता जता रहे हैं कि एथेनॉल उत्पादन के लिए गन्ने पर ज़्यादा निर्भरता खेती और पानी पर दबाव डालेगी। गाड़ी मालिक कह रहे हैं कि  इससे माइलेज घट रहा है और मेंटेनेंस खर्च बढ़ रहा है।  साथ ही, हाल के दिनों में अमेरिका के साथ व्यापारिक तनाव भी बढ़ रहा है।

पृष्ठभूमि: राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति, 2018 के बारे में

राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति, 2018 को पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने लागू किया था। यह नीति 2009 की पुरानी नीति (नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय) की जगह लाई गई। इसका उद्देश्य है:

  • स्वच्छ ईंधन  को बढ़ावा देना,
  • तेल आयात पर निर्भरता घटाना,
  • और नवीकरणीय ऊर्जा  को प्रोत्साहन देना।

जैव ईंधनों का वर्गीकरण

  • बुनियादी जैव ईंधन: बायो-एथेनॉल, बायोडीज़ल।
  • उन्नत जैव ईंधन :
    • 2G: फसल के अवशेष, नगरपालिका ठोस कचरे से ईंधन बनाना।
    • 3G: बायो-CNG, शैवाल  से बने ईंधन और अन्य भविष्य की तकनीकें।

इस नीति के तहत एथेनॉल बनाने के लिए केवल गन्ने का रस ही नहीं, बल्कि कई और कच्चे माल को भी मंज़ूरी दी गई है। जैसे:

  • शुगर बीट, स्वीट ज्वार, मक्का, कसावा,
  • खराब अनाज (गेहूँ, टूटा चावल, सड़े आलू) जो जो मानव उपभोग के लिए अनुपयुक्त हैं।

इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति के अनुमोदन से अधिशेष खाद्यान्न को इथेनॉल के लिए भी उपयोग किया जा सकता है।

उन्नत जैव ईंधन के लिए प्रमुख प्रोत्साहन

  • सरकार ने 2G रिफ़ाइनरी (फसल अवशेष, कचरे से ईंधन बनाने वाली) के लिए छह साल में ₹5,000 करोड़ की सहायता राशि (Viability Gap Funding) दी है।
  • इसके अलावा, टैक्स में छूट और 1G बायोफ्यूल्स की तुलना में ज़्यादा खरीद मूल्य तय किया गया है, ताकि उन्नत बायोफ्यूल्स को बढ़ावा मिले।

एथेनॉल क्या है?

एथेनॉल (ethyl alcohol) एक जैव ईंधन है, जो पौधों से बने कच्चे माल से तैयार होता है। इसमें शामिल हैं–गन्ना (गुड़, रस, सिरप), अतिरिक्त चावल, मक्का और फसल का अवशेष।

एथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम (Ethanol Blending Programme – EBP)

  • भारत ने यह कार्यक्रम 2003 में शुरू किया था।
  • 2014 के बाद इसमें बड़ी प्रगति हुई। 2014 में एथेनॉल मिश्रण केवल 1.5% था, जो 2025 तक बढ़कर 20% हो गया।

एथेनॉल मिश्रण के लक्ष्य

  • ऊर्जा सुरक्षा : कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता घटाना (भारत 85% कच्चा तेल आयात करता है)।
  • किसान कल्याण: गन्ने और अनाज के लिए नया बाज़ार देना।
  • पर्यावरण: ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन और शहरी वायु प्रदूषण कम करना।

सरकारी आँकड़े बताते हैं की  2014-15 से अब तक एथेनॉल मिश्रण से लगभग ₹1.4 लाख करोड़ विदेशी मुद्रा की बचत हुई है। इससे करीब 700 लाख टन CO उत्सर्जन में कमी आई है।

वाहन मालिकों की प्रतिक्रिया: दक्षता बनाम लागत

सरकारी दावों के बावजूद, आम वाहन मालिक E20 (20% एथेनॉल मिश्रण) को लेकर पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं। 315 ज़िलों के 36,000 लोगों पर किए गए स्थानीय सर्वे (2025)  में पाया गया कि 66% लोग E20 का विरोध कर रहे हैं। इसका कारण है :

  • माइलेज में गिरावट – एथेनॉल की ऊष्मा क्षमता पेट्रोल से लगभग 33% कम है।
  • मेंटेनेंस की दिक्कतें – एथेनॉल पानी सोखता है, जिससे फ्यूल टैंक, रबर पाइप, इंजेक्टर आदि में जंग और नुकसान होता है, और सर्विसिंग खर्च बढ़ जाता है।
  • अनुकूलता की समस्या – 2020 से पहले बनी गाड़ियाँ (खासकर कार्बोरेटर इंजन वाली) E20 ईंधन पर ठीक से नहीं चल पातीं।

उदाहरण के तौर पर, हीरो मोटोकॉर्पने साफ़ कहा है कि E20 इस्तेमाल करने पर गाड़ियों के फ्यूल सिस्टम के रबर और प्लास्टिक पार्ट्स बदलने पड़ेंगे। जबकि सरकार का कहना है कि घाटा मामूली है और इंजन के पुनः अंशांकन के माध्यम से इसे नियंत्रित किया जा सकता है, नीति आयोग ने उपभोक्ताओं को क्षतिपूर्ति देने के लिए कर छूट का सुझाव दिया है।

कृषि आयाम: गन्ने पर निर्भरता और खाद्य सुरक्षा जोखिम

एथेनॉल उत्पादन ने भारत की गन्ना अर्थव्यवस्था को पूरी तरह बदल दिया है।

  • गन्ने से बनने वाला एथेनॉल FY14 में 40 करोड़ लीटर था, जो बढ़कर FY24 में 670 करोड़ लीटर हो गया।
  • इसमें कुल गन्ना उत्पादन का लगभग 9% हिस्सा इस्तेमाल हुआ।
  • FY15 से सरकार ने किसानों को ₹1.20 लाख करोड़ की राशि तय खरीद के तहत दी है।

मुख्य समस्याएँ

1. जल संकट

  • गन्ने की खेती में 60–70 टन पानी प्रति टन गन्ना लगता है।
  • महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और विदर्भ जैसे सूखा-प्रभावित क्षेत्रों में भूजल का अत्यधिक दोहन हो रहा है।
  • मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण एटलस (2021) के अनुसार, भारत की लगभग 30% भूमि खराब हो चुकी है, जिसमें गन्ने की एकल फसल (monocropping) भी कारण है।

2. खाद्य सुरक्षा पर असर

  • 2024-25 में भारत ने अपनी 34% मक्का उत्पादन एथेनॉल के लिए इस्तेमाल की, जिसके कारण 9.7 लाख टन मक्का आयात करना पड़ा (जो पहले से छह गुना ज़्यादा था)।
  • इसी तरह, 5.2 मिलियन टन चावल FCI से एथेनॉल बनाने के लिए दिया गया, जो कुल उत्पादन का 3.6% है। यह तब और चिंता बढ़ाता है जब देश में पोषण संबंधी असुरक्षा मौजूद है।

पर्यावरणीय असर: मिला-जुला रिकॉर्ड

एथेनॉल मिश्रण को अक्सर पर्यावरण-हितैषी उपाय माना जाता है, लेकिन असल तस्वीर उतनी सीधी नहीं है।

सकारात्मक पहलू

  • गाड़ियों में साफ़ दहन (cleaner combustion) होता है, जिससे NOx, PM और CO जैसे प्रदूषकों में कमी आती है।
  • 2014 से अब तक लगभग 700 लाख टन CO उत्सर्जन में कमी आई है।

नकारात्मक पहलू

  • गन्ने की खेती में बहुत पानी लगता है, जिससे भूजल का तेज़ी से क्षय हो रहा है।
  • एकल फसल और भूमि क्षरण से मिट्टी की उर्वरता घट रही है।
  • वाहनों के पुर्ज़ों में जंग और क्षरण बढ़ने से संसाधनों की खपत और बढ़ सकती है।
  • अनाज अन्यत्र उपयोग होने से कुपोषण और खाद्य महँगाई बढ़ने का खतरा है।
  •  

 इसलिए, एथेनॉल मिश्रण को अकेले पूर्ण पर्यावरणीय समाधान नहीं माना जा सकता। इसके लिए दूसरी पीढ़ी (2G) के एथेनॉल जैसे फसल अवशेष और कचरे से बने ईंधन को बढ़ावा देना ज़रूरी है।

अंतरराष्ट्रीय पहलू: अमेरिकी दबाव

भारत की एथेनॉल नीति पर अब अमेरिका की नज़र भी है, क्योंकि वह दुनिया का सबसे बड़ा एथेनॉल निर्यातक है।

  • भारत की इथेनॉल नीति ने दुनिया के सबसे बड़े इथेनॉल निर्यातक, संयुक्त राज्य अमेरिका का ध्यान आकर्षित किया है।
  • 2025 की अमेरिकी राष्ट्रीय व्यापार अनुमान रिपोर्ट ने इथेनॉल आयात पर भारत के प्रतिबंधों को “व्यापार बाधा” बताया है। ट्रंप प्रशासन ने भारत पर दबाव डाला कि वह अपना एथेनॉल बाज़ार खोले।
  • लेकिन, इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (ISMA) का कहना है कि ऐसा करने से भारतीय किसानों और घरेलू निवेश को नुकसान होगा।

यह मामला भारत-अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार विवाद का रूप ले सकता है और दोनों देशों के व्यापक आर्थिक रिश्तों को प्रभावित कर सकता है।

ब्राज़ील से तुलना

ब्राज़ील की एथेनॉल सफलता की कहानी अक्सर उदाहरण के रूप में दी जाती है, लेकिन भारत और ब्राज़ील की परिस्थितियाँ अलग हैं।

  • ब्राज़ील ने प्रोआल्कूल कार्यक्रम(1975) के तहत सब्सिडी, शोध और फ्लेक्स-फ्यूल वाहन की मदद से धीरे-धीरे एथेनॉल क्षमता बढ़ाई।
  • वहाँ आज E27 पेट्रोल आम है, और इंजन अलग-अलग एथेनॉल मिश्रण के अनुसार खुद को ढाल चुके हैं। 
  • भारत में यह बदलाव बहुत तेज़ रहा । यहाँ सीधे हम E10 से E20 पर पहुँच गए , जिसका नतीजा यह हुआ कि पुरानी गाड़ियाँ इसके लिए अनुकूल नहीं हैं और उपभोक्ताओं में असंतोष है।

इस प्रकार ब्राज़ील की सफलता अचानक लागू किए गए आदेशों के बजाय चरणबद्ध कार्यान्वयन और फ्लेक्स-फ्यूल तकनीक के महत्व पर ज़ोर देता है।

इलेक्ट्रिक वाहन अपनाने पर प्रभाव : पूरक या विकर्षण?

एथेनॉल मिश्रण को लेकर यह सवाल भी उठ रहा है कि कहीं यह भारत की इलेक्ट्रिक वाहन ट्रांजिशन की रफ्तार को धीमा तो नहीं करेगा।

  • 2024 में भारत में EV अपनाने की दर सिर्फ़ 7.6% वाहन बिक्री रही, जो चीन, अमेरिका और यूरोपीय संघ से बहुत पीछे है।
  • सरकार का लक्ष्य है कि 2030 तक 30% वाहन बिक्री EV की हो, जिसके लिए बड़े पैमाने पर तेज़ निवेश और स्केल-अप ज़रूरी है।

चुनौतियाँ

भारत के लिए सबसे बड़ी दिक्कत है कि वह अभी भी रेयर अर्थ एलिमेंट्स (REEs) पर चीन पर निर्भर है। ये धातुएँ (जैसे जर्मेनियम, नियोडिमियम) बैटरी, मोटर और इलेक्ट्रॉनिक्स बनाने में बहुत ज़रूरी हैं। अगर इनकी सप्लाई रुक जाए तो सीधा असर EV उत्पादन पर पड़ता है। उदाहरण के लिए, हाल ही में सप्लाई रुकने से मारुति सुज़ुकी को अपनी नई इलेक्ट्रिक कार e-Vitara का उत्पादन घटाना पड़ा।

इसलिए, जब तक भारत के पास खुद की REE सप्लाई और पर्याप्त नवीकरणीय ऊर्जा नहीं होगी, तब तक EV क्रांति पूरी तरह संभव नहीं है। इसी कारण, एथेनॉल को अभी एक अल्पकालिक समाधान माना जा रहा है, लेकिन भविष्य में असली ध्यान EV इकोसिस्टम पर ही देना होगा।

आगे की राह

  1. उपभोक्ता-हितैषी नीतियाँ: लोगों को विकल्प मिले कि वे E10 या E20 चुन सकें। गाड़ियों का माइलेज घटने पर टैक्स छूट मिले और पुरानी गाड़ियों को रेट्रोफिटिंग के ज़रिए E20- योग्य बनाया जाए।
  2. सतत कच्चा माल: केवल गन्ने पर निर्भर न रहकर फसल अवशेष (पराली, ठोस कचरा) से 2G एथेनॉल बनाया जाए।
  3. पानी-ऊर्जा संतुलन: गन्ने जैसी पानी-खपत वाली फसलों की जगह कम पानी वाली फसलें बढ़ावा दी जाएँ और भूजल के इस्तेमाल पर नियंत्रण हो।
  4. व्यापार नीति: अमेरिका के दबाव में आयात न खोला जाए, बल्कि घरेलू उत्पादकों और किसानों की रक्षा करते हुए कूटनीतिक संतुलन बनाया जाए।
  5. EV और एथेनॉल का तालमेल: एथेनॉल को संक्रमण रणनीति की तरह इस्तेमाल करें, लेकिन साथ ही EV को तेज़ी से बढ़ावा दिया जाए — इसके लिए चीन पर निर्भरता कम करके घरेलू सप्लाई चेन बनानी होगी।
  6. धीरे-धीरे लागू करना: ब्राज़ील की तरह चरणबद्ध और शोध-आधारित नीति अपनानी चाहिए, न कि अचानक आदेश लागू करना।

निष्कर्ष

एथेनॉल मिश्रण भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। इससे तेल आयात घटा है, किसानों की आमदनी बढ़ी है और प्रदूषण भी कम हुआ है। लेकिन इसके साथ चुनौतियाँ भी हैं — गन्ने पर ज़्यादा निर्भरता, पानी और खाद्य सुरक्षा पर दबाव, गाड़ी मालिकों की दिक्कतें और EV मिशन से ध्यान भटकना।

 इसलिए, भारत को एथेनॉल नीति को संतुलित और टिकाऊ मॉडल में ढालना होगा। इसमें दूसरी पीढ़ी के बायोफ्यूल, फ्लेक्स-फ्यूल इंजन और मज़बूत EV इकोसिस्टम को जोड़कर ही भारत सच्चा डी-कार्बोनाइजेशन (कार्बन मुक्त विकास) हासिल कर पाएगा।

यूपीएससी प्रीलिम्स PYQ

प्रश्न: भारत की राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति के अनुसार, निम्नलिखित में से किसका उपयोग जैव ईंधन के उत्पादन के लिए कच्चे माल के रूप में किया जा सकता है? (2020)

1. कसावा
2. क्षतिग्रस्त गेहूँ के दाने
3. मूंगफली के बीज
4. कुलथी
5. सड़े हुए आलू
6. चुकंदर

नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

(A) केवल 1, 2, 5 और 6
(B) केवल 1, 3, 4 और 6
(C) केवल 2, 3, 4 और 5
(D) 1, 2, 3, 4, 5 और 6

उत्तर: (A) केवल 1, 2, 5 और 6

स्पष्टीकरण: राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति, 2018, इथेनॉल उत्पादन की अनुमति देती है –
● शर्करा युक्त फसलें → गन्ने का रस, चुकंदर, मीठा ज्वार।
● स्टार्च युक्त फसलें → कसावा, मक्का, आदि।
● क्षतिग्रस्त खाद्यान्न (मानव उपभोग के लिए अनुपयुक्त) → क्षतिग्रस्त गेहूँ के दाने, सड़े हुए आलू, टूटे हुए चावल, आदि।

शामिल नहीं → मूंगफली के दाने, कुलथी। अतः, सही समूह केवल कसावा, क्षतिग्रस्त गेहूँ के दाने, सड़े हुए आलू और चुकंदर = 1, 2, 5 और 6 है।

यूपीएससी मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न-

प्रश्न: “भारत में इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम केवल एक ऊर्जा पहल नहीं है, बल्कि आर्थिक, पर्यावरणीय और रणनीतिक लाभ के लिए एक बहुआयामी रणनीति है।” भारत में इथेनॉल अपनाने के अवसरों और चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। (उत्तर 250 शब्दों में दीजिए)

SOURCE- THE HINDU

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