मक्के के पौधों को एक साथ समूहबद्ध करने से उनकी कीट प्रतिरोधक क्षमता में सुधार हो सकता है

  यूपीएससी प्रासंगिकता GS-3 (कृषि, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पर्यावरण)

चर्चा में क्यों

झेजियांग विश्वविद्यालय (चीन) के शोधकर्ताओं ने नीदरलैंड और स्विट्ज़रलैंड के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर एक प्राकृतिक पौधे-से-पौधे संचार प्रणाली की खोज की है, जो मक्के की फसलों को कीटों के हमलों से बचाने में मदद करती है। उनके अध्ययन को Science (अगस्त 2025) में प्रकाशित किया गया है। इसमें बताया गया है कि वाष्पशील यौगिक लिनालूल फसलों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और रासायनिक कीटनाशकों का स्थायी विकल्प प्रदान करता है।

पृष्ठभूमि

मक्का (Zea mays) दुनिया का सबसे व्यापक रूप से उगाया जाने वाला अनाज है, जो खाद्य सुरक्षा, पशुधन चारा, जैव ईंधन और औद्योगिक उत्पादों के लिए महत्वपूर्ण है।
 मक्का 9,000 साल पहले मेसोअमेरिका में जंगली घास टियोसिन्टे से पालतू बनाया गया और स्वदेशी किसानों द्वारा सुधार किया गया।
 आज, मक्का बड़े पैमाने पर एकल-कृषि पद्धति से उगाया जाता है, जिससे यह कीटों, रोगजनकों और जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हो जाता है।
 अनुमान बताते हैं कि उच्च-उत्सर्जन वाले SSP585 परिदृश्य के तहत 21वीं सदी के अंत तक मक्का की उत्पादकता में 24% तक की गिरावट हो सकती है।

शोध निष्कर्ष

पौधों के चेतावनी संकेत

  • कीटों के हमले पर मक्के का पौधा लिनालूल नामक सुगंध छोड़ता है, जो फूलों जैसी गंध जैसा महसूस होता है।
  • यह सुगंध आसपास के पौधों के लिए चेतावनी संकेत के रूप में काम करता है।
  • पड़ोसी पौधे इसे “सूंघ”कर अपनी सुरक्षा प्रणाली पहले से सक्रिय कर लेते हैं, जैसे पड़ोसी चोरी का अलार्म सुनकर अपने दरवाज़े बंद कर लेते हैं।

क्रियाविधि (कैसे काम करता है)

  1. कीट हमला शुरू होता है → हमला हुआ पौधा हवा में लिनालूल छोड़ता है।
  2. पड़ोसी पौधे लिनालूल को पहचानते हैं → उनकी जड़ें जैस्मोनेट मार्ग को सक्रिय करती हैं, जो सुरक्षा-संबंधी रासायनिक संकेत है।
  3. रक्षात्मक रासायनिक उत्पादन → जड़ें HDMBOA-Glc बनाना शुरू करती हैं, जो हमलावरों से लड़ता है। यह मिट्टी में छोड़ दिया जाता है।
  4. मृदा सूक्ष्मजीव इसमें शामिल होते हैं → ये रसायन को भांपते हैं और आस-पास के पौधों में सैलिसिलिक अम्ल का उत्पादन बढ़ाते हैं।
  5. अंतिम परिणाम → ये संकेत मिलकर पौधों को कई कीटों और रोगों के प्रति मजबूत और प्रतिरोधी बनाते हैं।

प्रायोगिक प्रमाण

  • फॉल आर्मीवर्म: “चेतावनी संकेत” वाले पौधों पर लार्वा की वृद्धि कम हुई।
  • रूट-नॉट नेमाटोड: जड़ों में कम सूजन (गॉल) बनी।
  • कवक रोग (X. tursicum): पौधों ने अधिक प्रतिरोधक क्षमता दिखाई।
  • विषाणु रोग (CRDV): संक्रमण का प्रसार कम हुआ।

यानी यह प्रणाली कीटों, कृमियों, कवकों और विषाणुओं से व्यापक-स्पेक्ट्रम सुरक्षा प्रदान करती है।

वृद्धि-रक्षा समझौता

  • सघन खेतों में सुरक्षा संकेत अधिक मजबूत होते हैं → पौधे कीटों से सुरक्षित रहते हैं, लेकिन उनकी वृद्धि और उपज कम होती है।
  • पौधों के लिए विकल्प:
    • रक्षा पर अधिक ऊर्जा खर्च करें → सुरक्षित लेकिन छोटी फ़सल।
    • वृद्धि पर अधिक ऊर्जा खर्च करें → अधिक उपज लेकिन कमज़ोर सुरक्षा।

अनुसंधान के भविष्य के अनुप्रयोग

प्रजनन दृष्टिकोण

  • जीन (Bx1 और Bx6) का उपयोग यह पता लगाने के लिए किया जा सकता है कि कौन सी मक्का किस्में लिनालूल संकेतों पर सबसे अच्छी प्रतिक्रिया देती हैं।
  • इसके आधार पर कीट-प्रतिरोधी और जलवायु-अनुकूल फसलों का विकास संभव है।
  • जीनोमिक भविष्यवाणी मॉडल इस प्रक्रिया को तेज़ कर सकते हैं।

कृषि प्रबंधन रणनीतियाँ

  1. कम-कीट क्षेत्र: पौधों को लिनालूल संकेतों पर प्रतिक्रिया न देने के लिए तैयार किया जा सकता है → अधिक उपज और तेज़ वृद्धि।
  2. उच्च-कीट क्षेत्र: सिंथेटिक लिनालूल स्प्रे का उपयोग → सभी पौधों को पहले से चेतावनी मिलती है → मजबूत सुरक्षा और कम फ़सल नुकसान।

कृषि पर प्रभाव

  • कीटनाशकों का उपयोग कम → लागत और पर्यावरणीय खतरे घटते हैं।
  • टिकाऊ और पर्यावरण-अनुकूल सुरक्षा → प्राकृतिक संकेत प्रणाली का उपयोग।
  • जलवायु लचीलापन → अप्रत्याशित कीट प्रकोपों में अनुकूलन।
  • संतुलित उत्पादकता और सुरक्षा → किसानों को स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार रणनीति चुनने का विकल्प।

आगे की चुनौतियाँ

  • मापनीयता: विभिन्न मक्का किस्मों और भौगोलिक क्षेत्रों में परीक्षण आवश्यक।
  • आर्थिक व्यवहार्यता: लागत-लाभ स्पष्ट होना चाहिए।
  • ज्ञान का अभाव: किसानों की जागरूकता और प्रशिक्षण जरूरी।
  • नीति एकीकरण: राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन और सतत कृषि योजनाओं के साथ संरेखित।

आगे की राह

  • अनुसंधान एवं विस्तार → मक्का की विविध किस्मों और क्षेत्रों में परीक्षण।
  • नीतिगत प्रयास → कीट प्रबंधन योजनाओं में पादप संचार संबंधी जानकारी शामिल करना।
  • किसान जागरूकता → IPM और पर्यावरण-अनुकूल कीट नियंत्रण विधियों को बढ़ावा देना।
  • वैश्विक सहयोग → अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अन्य मक्का उत्पादक देशों के साथ शोध साझा करना।

निष्कर्ष

मक्के में लिनालूल-चालित संकेतन सतत कृषि में बड़ी सफलता का प्रतिनिधित्व करता है। प्राकृतिक पादप संचार का उपयोग करके किसान रासायनों पर निर्भरता कम कर सकते हैं, जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन बढ़ा सकते हैं और पारिस्थितिक स्वास्थ्य के साथ उत्पादकता संतुलित कर सकते हैं।
संक्षेप में, पादप-से-पादप संचार 21वीं सदी में जलवायु-अनुकूल, कीट-प्रतिरोधी कृषि की आधारशिला बन सकता है।

यूपीएससी प्रारंभिक अभ्यास प्रश्न

प्रश्न:

हाल ही में चर्चा में रहे लिनालूल के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

  1. यह कीटों के आक्रमण के दौरान मक्के के पौधों द्वारा छोड़ा जाने वाला एक प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला वाष्पशील यौगिक है।
  2. यह जड़ों में जैस्मोनेट संकेतन को सक्रिय करता है, जिससे रक्षा प्रतिक्रिया और बढ़ जाती है।
  3. यह मुख्य रूप से एक सिंथेटिक कीटनाशक है जिसका उपयोग एकीकृत कीट प्रबंधन में किया जाता है।

उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

(A) केवल 1
 (B) केवल 1 और 2
 (C) केवल 2 और 3
 (D) 1, 2 और 3

उत्तर:

(B) केवल 1 और 2

मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: “लिनालूल सिग्नलिंग के माध्यम से मक्का में पादप संचार पर हालिया निष्कर्ष किस प्रकार टिकाऊ कृषि में योगदान दे सकते हैं, इस पर चर्चा कीजिए। इसके संभावित लाभों और नीतिगत निहितार्थों पर प्रकाश डालिए।” (10 अंक, 150 शब्द)

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