सरकार 3.69 लाख करोड़ रुपये के उपकर को निर्धारित निधियों में स्थानांतरित करने में विफल रही – कैग रिपोर्ट

UPSC प्रासंगिकता

  • प्रीलिम्स:  उपकर बनाम कर की परिभाषा और प्रकृति, सार्वजनिक वित्त लेखा परीक्षा में सीएजी की भूमिका।
  • मेन्स (GS Paper II): मुख्य परीक्षा-जीएस पेपर II: सरकारी नीतियाँ, जवाबदेही, वैधानिक संस्थाएँ (सीएजी)।

खबर में क्यों?

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की नवीनतम 2023–24 की ऑडिट रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि केंद्र सरकार ने ₹3.69 लाख करोड़ का उपकर, जिसे खास उद्देश्यों के लिए वसूला गया था, तय फंड में जमा नहीं किया। यह कमी कई दशकों से है, कुछ मामले तो 1974 से चले आ रहे हैं। इससे वित्तीय अनुशासन, पारदर्शिता और कानूनी नियमों के पालन पर सवाल उठते हैं।

पृष्ठभूमि

उपकर एक खास उद्देश्य के लिए लगाया जाने वाला अतिरिक्त टैक्स होता है। इसका इस्तेमाल किसी विशेष क्षेत्र या विकास लक्ष्य के लिए किया जाता है, जैसे – स्वास्थ्य, शिक्षा, बुनियादी ढाँचा या किसी खास उद्योग का विकास।

उपकर की मुख्य विशेषताएँ

  • यह किसी विशेष कानून या वित्त अधिनियम के तहत लगाया जाता है।
  • इससे होने वाली आय को भारत के लोक लेखा निधि में एक समर्पित, गैर-व्यपगत निधि में जमा किया जाना चाहिए।
  • यह पैसा केवल उसी काम के लिए खर्च किया जा सकता है, जिसके लिए कानून में तय किया गया है।
  • अगर वसूला गया उपकर तय फंड में जमा न हो, तो यह कानून के नियमों का उल्लंघन माना जाता है और निर्धारित कराधान के सिद्धांत को कमजोर करता है।

CAG की ऑडिट में मुख्य बातें

1. तेल उद्योग विकास उपकर

  • कानून: ऑयल इंडस्ट्री (डेवलपमेंट) एक्ट, 1974
  • उद्देश्य: कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के उत्पादन पर उपकर लगाकर तेल उद्योग के विकास के लिए फंड जुटाना।

● संग्रह (1974-2024): ₹2,94,850.56 करोड़ (वित्त वर्ष 2023-24 में ₹18,845.98 करोड़ सहित)।

ओआईडीबी को हस्तांतरण:

○ 1974-1992: केवल ₹902.40 करोड़ हस्तांतरित।

○ 1992 के बाद बजट 2024-25 (₹17,730 करोड़) और प्रस्तावित बजट 2025-26 (₹19,376 करोड़) तक कोई हस्तांतरण नहीं।

प्रभाव: स्थिर उपकर संग्रह के बावजूद तेल उद्योग को दशकों तक अपर्याप्त वित्तपोषण का सामना करना पड़ा, जिससे अन्वेषण, रिफाइनरी उन्नयन और प्रौद्योगिकी आधुनिकीकरण आदि पर असर पड़ा। 

2. स्वास्थ्य और शिक्षा उपकर

इतिहास

  • 2004: 2% शिक्षा उपकर लागू।
  • 2007: 1% अतिरिक्त सेकेंडरी व हायर एजुकेशन उपकर जोड़ा गया।
  • 2018: दोनों को मिलाकर 4% हेल्थ और एजुकेशन उपकर बनाया गया।

CAG की रिपोर्ट

  • 2018–2024 के बीच ₹37,537 करोड़ तय फंड में ट्रांसफर नहीं हुआ।
  • सरकार ने दावा किया कि ₹3.66 लाख करोड़ ट्रांसफर हुआ, जो कुल वसूली से भी ज्यादा है, लेकिन CAG की जांच में केवल ₹2.65 लाख करोड़ ही जमा पाया गया।
  • नतीजा – खाते के आंकड़ों का मिलान और पारदर्शिता की ज़रूरत।

असर

  • स्वास्थ्य और शिक्षा योजनाओं के लिए फंड कम मिला।
  • साक्षरता दर बढ़ाने, स्कूलों के ढांचे में सुधार, और स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार जैसे उद्देश्यों को नुकसान।

3.अन्य उल्लेखनीय कमियाँ

● निवेशक शिक्षा एवं संरक्षण निधि: ₹2,505.5 करोड़ हस्तांतरित नहीं।

राष्ट्रीय राजमार्ग निधि का मुद्रीकरण: ₹5,968.1 करोड़ हस्तांतरित नहीं।

● ये खामियाँ निवेशक संरक्षण पहलों को प्रभावित करती हैं और राजमार्ग आधुनिकीकरण परियोजनाओं में देरी करती हैं।

तय फंड में पैसा न डालने के प्रमुख असर

  1. पारदर्शिता और वित्तीय जवाबदेही
    • जनता का भरोसा तभी बनता है जब उद्देश्य-संचालित व्यय का पैसा तय काम में लगे।
    • धनराशि हस्तांतरित न होने से सामान्य कराधान और विशिष्ट-उद्देश्यीय शुल्कों के बीच की रेखा धुंधली हो जाती है।
  2. कानूनी उल्लंघन
    • संबंधित कानून के प्रावधानों का सीधा उल्लंघन।
    • संसद में सवाल और अदालत की दखल की संभावना।
  3. विकास में देरी
    • तेल उद्योग का आधुनिकीकरण, स्वास्थ्य ढांचे में सुधार और शिक्षा सुधार में फंड की कमी।
    • इन पर निर्भर क्षेत्रों में संरचनात्मक कमजोरियाँ
  4. संसदीय निगरानी
    • CAG की रिपोर्ट के आधार पर पब्लिक अकाउंट्स कमेटी (PAC) और स्टैंडिंग कमेटियाँ कार्रवाई और जवाब मांग सकती हैं।

आगे का रास्ता

  • कड़ाई से पालन: CAG द्वारा हर साल सेस ट्रांसफर का सर्टिफिकेशन अनिवार्य।
  • कानूनी निगरानी: संसद द्वारा समय-समय पर सभी फंड की समीक्षा।
  • पारदर्शिता पोर्टल: उपकर वसूली और खर्च का सार्वजनिक डेटा।
  • दंड प्रावधान: देरी या गलत इस्तेमाल पर कानूनी कार्रवाई।

निष्कर्ष

CAG की रिपोर्ट बताती है कि सरकार ने वर्षों से लक्ष्य-विशेष कल्याण और इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए वसूला गया सेस पूरी तरह तय फंड में नहीं डाला।
यह न केवल निर्धारित उद्देश्य वाले टैक्स की साख को कमजोर करता है, बल्कि संबंधित क्षेत्रों के विकास को भी पटरी से उतार सकता है।
इसलिए ज़रूरी है कि फंड ट्रांसफर के समय-सीमा नियम, पारदर्शी सार्वजनिक रिपोर्टिंग, और संसदीय निगरानी को तुरंत लागू किया जाए, ताकि जनता के टैक्स का सही उपयोग हो सके।

RM DOSE
भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) – परिचय

🔹भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) देश के सबसे महत्वपूर्ण संवैधानिक प्राधिकरणों में से एक हैं।
🔹यह सार्वजनिक वित्त का संरक्षक होता है जो यह यह सुनिश्चित करते हैं कि जनता से वसूला गया और सरकार द्वारा खर्च किया गया हर रुपया कानूनी, ईमानदारी से और सही उद्देश्य के लिए उपयोग किया जाए।
🔹डॉ. भीमराव अंबेडकर ने CAG को “संविधान के तहत सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी” कहा था और इसे सुप्रीम कोर्ट, चुनाव आयोग और UPSC की तरह भारतीय लोकतंत्र के स्तंभों में गिना था।

1. संवैधानिक स्थिति

🔹संविधान के अनुच्छेद 148 से 151 के तहत CAG का पद स्थापित है।
🔹यह सरकार से पूरी तरह स्वतंत्र होता है — यानी मंत्री या अधिकारी इनके काम को प्रभावित नहीं कर सकते। 🔹CAG भारतीय लेखा और लेखा-परीक्षा विभाग (IA&AD) का प्रमुख है और केंद्र तथा राज्यों — दोनों स्तरों पर काम करता है।

भूमिका:

🔹संविधान और कानून का पालन सुनिश्चित करना, खासकर सार्वजनिक वित्त से जुड़े मामलों में।
🔹कार्यपालिका (सरकार) को संसद और राज्य विधानसभाओं के प्रति जवाबदेह बनाए रखना।

उदाहरण

अगर स्वास्थ्य मंत्रालय को टीकाकरण कार्यक्रम के लिए मिला पैसा, किसी असंबंधित विदेश यात्रा पर खर्च कर दिया जाए, तो CAG अपनी ऑडिट रिपोर्ट में इस पर आपत्ति दर्ज करेगा।

2. नियुक्ति और कार्यकाल

🔹नियुक्ति: भारत के राष्ट्रपति द्वारा, उनके हस्ताक्षर और मुहर के माध्यम से की जाती है।
🔹शपथ: संविधान की रक्षा, भारत की संप्रभुता को बनाए रखने और बिना किसी भय या पक्षपात के कर्तव्यों का पालन करने की
🔹कार्यकाल: 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक (जो पहले हो)।
🔹त्यागपत्र: राष्ट्रपति को लिखित रूप में देकर
🔹हटाना: सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की तरह हटाया – दुर्व्यवहार या अक्षमता के आधार पर संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है।
🔹हटाने की प्रक्रिया इतनी सख्त क्यों ?: निष्कासन इतना सख्त क्यों है: इससे यह सुनिश्चित होता है कि CAG अपनी नौकरी खोने के डर के बिना सरकार की आलोचना कर सकते हैं।

3. स्वतंत्रता की गारंटी

संविधान CAG की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए कई अन्य प्रावधान भी करता है:

🔹पद की सुरक्षा: केवल कड़ी संवैधानिक प्रक्रिया से ही हटाया जा सकता है।
🔹केंद्र या राज्य सरकारों में सेवानिवृत्ति के बाद कोई नौकरी नहीं — ताकि राजनीतिक नेताओं को खुश करने की प्रवृत्ति न रहे।
🔹वेतन और सेवा शर्तें: संसद द्वारा तय, और नियुक्ति के बाद उनके वेतन में अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता
🔹कार्यालय खर्च: भारत की संचित निधि से सीधे भुगतान किया जाता है, इस पर संसद द्वारा मतदान नहीं किया जाता जो यह सुनिश्चित करता है कि सरकार बदले की कार्रवाई में अपने बजट में कटौती नहीं कर कर सके।  🔹कर्मचारियों के सेवा नियम: CAG से परामर्श के बाद राष्ट्रपति तय करते हैं ।

4. कर्तव्य और शक्तियाँ

CAG के (कर्तव्य, शक्तियाँ और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1971 और संविधान यह निर्धारित करते हैं कि CAG क्या कर सकता है।

मुख्य कर्तव्य

1. सरकारी खातों का ऑडिट

निम्न स्रोतों से होने वाले सभी खर्च की जांच:
🔹भारत/राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों की संचित निधि  – मुख्य बजट का पैसा।
🔹आपात निधि  – आपातकालीन उपयोग का पैसा।
🔹लोक लेखा निधि – सरकार द्वारा ट्रस्ट में रखा गया पैसा, जैसे भविष्य निधि  जमा।

2. सरकारी फंड से सहायता प्राप्त निकायों का ऑडिट

🔹उन संस्थाओं की जांच, जिन्हें सरकार से बड़ी राशि अनुदान या कर्ज के रूप में मिला हो।
🔹उदाहरण: अगर किसी NGO को ग्रामीण विकास मंत्रालय से ₹50 करोड़ मिले, तो CAG यह जांच सकता है कि पैसा कैसे खर्च हुआ।

3. सरकारी कंपनियों और निगमों का ऑडिट

🔹कंपनी अधिनियम और वैधानिक निगमों (जैसे LIC, FCI) के विशेष कानूनों के तहत जांच करता है।

4. राजस्व प्राप्तियों का ऑडिट

🔹 टैक्स नियमों के पालन की जांच करता है और राजस्व की चोरी/गड़बड़ी रोकता है।

5. स्टॉक और भंडार का ऑडिट

🔹रेलवे के स्पेयर पार्ट्स, रक्षा उपकरण आदि जैसे भौतिक सामान की जांच करता है।

6. सलाहकार भूमिका

🔹अनुच्छेद 150 के तहत राष्ट्रपति को सरकारी खातों के प्रारूप (Format) पर सलाह देता है।

7. रिपोर्टिंग

🔹 रिपोर्ट सौंपता है :राष्ट्रपति को (संसद के लिए)राज्यपाल को (राज्य विधानमंडल के लिए)अनुच्छेद 151 के तहत, ये रिपोर्ट विधानमंडलों के समक्ष रखी जानी अनिवार्य हैं।

8.  प्रमाणन:

🔹अनुच्छेद 279 के अंतर्गत शुद्ध कर आय को प्रमाणित करता है – यह अंतिम निर्णय है कि राज्यों के साथ कितना कर राजस्व साझा किया जाना है।

ऑडिट की शक्तियाँ

🔹 किसी भी कार्यालय का निरीक्षण कर सकता है, जहाँ सरकारी पैसा शामिल हो।
🔹किसी भी दस्तावेज़ या रिकॉर्ड की मांग कर सकता है।
🔹खर्च के लिए जिम्मेदार अधिकारियों से सवाल पूछ सकता है।
🔹ऑडिट का दायरा और तरीका खुद तय कर सकता है।

उदाहरण: अगर रेलवे ने ट्रेनें बहुत ऊँची कीमत पर खरीदी हों, तो CAG टेंडर डॉक्यूमेंट मंगा सकता है, कीमतों की तुलना कर सकता है और सरकारी नुकसान को उजागर कर सकता है।

ऑडिट के प्रकार

कानूनी/नियामक ऑडिट (Legal/Regulatory Audit)
🔹यह देखता है कि खर्च कानून और बजट अनुमोदन के अनुसार हुआ या नहीं।
🔹उदाहरण: सड़कों के लिए मिला पैसा पार्क बनाने में खर्च करना — अवैध है।

स्वामित्व लेखा पऑडिट (Propriety Audit)
🔹यह जांचता है कि खर्च समझदारी, निष्पक्षता और जनहित में है या नहीं।
🔹उदाहरण: मंत्रियों के लिए लग्जरी कार खरीदने में सरकारी पैसा खर्च करना।

प्रदर्शन ऑडिट (Performance Audit)
🔹यह जांचता है कि पैसा कुशलता से खर्च हुआ और उद्देश्य पूरे हुए या नहीं।
🔹उदाहरण: कौशल प्रशिक्षण पर ₹500 करोड़ खर्च कर वास्तव में नौकरियाँ बनीं या नहीं।

पूरक/समानांतर ऑडिट (Supplementary/Concurrent Audit)
🔹सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में, कभी-कभी परियोजना चल रही हो तभी ऑडिट किया जाता है।

सीमा (Limitation): “गोपनीय सेवा” खर्च (जैसे खुफिया एजेंसियों का खर्च) केवल विभागाध्यक्ष के प्रमाण पत्र से ही ऑडिट होता है।

6. नियंत्रक बनाम लेखा परीक्षक के रूप में CAG

🔹नियंत्रक की भूमिका: खर्च होने से पहले उसे स्वीकृति देना।
🔹लेखा परीक्षक की भूमिका: खर्च हो जाने के बाद उसकी जांच करना।
🔹भारत में: CAG केवल लेखा परीक्षक के रूप में कार्य करता है, नियंत्रक की भूमिका नहीं निभाता।
🔹ब्रिटेन में: CAG दोनों भूमिकाएँ निभाता है।

8. आलोचना (पॉल एच. एप्पलबाई का दृष्टिकोण)

अमेरिकी विशेषज्ञ पॉल एप्पलबाई ने CAG को औपनिवेशिक विरासत बताते हुए कहा:

🔹अत्यधिक त्रुटि-खोज पर जोर देने से निर्णय लेने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है।
🔹संसद CAG को अत्यधिक महत्व देती है, लेकिन उसकी सीमाएँ स्पष्ट नहीं करती।
🔹ऑडिटर्स को प्रशासन की गहराई से समझ नहीं होती।

9. प्रमुख चुनौतियाँ (द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग के अवलोकन)

🔹लोक लेखा समिति में बहुत कम ऑडिट पैरा पर चर्चा होती है — 1000+ में से केवल 15–20।
🔹Action Taken Notes पर कमजोर अनुवर्ती कार्रवाई।
🔹राज्यों में लंबित रिपोर्टें — 10 से 20 वर्ष तक का बैकलॉग।
🔹हज़ारों निरीक्षण रिपोर्टें अनदेखी पड़ी रहती हैं।
🔹रिपोर्ट बहुत देर से आती हैं — सुधारात्मक कदम में देरी होती है।
🔹कागज़ी कार्रवाई पर अत्यधिक निर्भरता, भौतिक सत्यापन कम।
🔹अत्यधिक नकारात्मक लहजा — वास्तविक त्रुटियों और भ्रष्टाचार में अंतर नहीं किया जाता।
🔹जनता और मीडिया से कमजोर संवाद।
🔹आंतरिक और बाहरी ऑडिट में समन्वय की कमी।
🔹बड़े अनुदान पाने वाले NGO का शायद ही कभी ऑडिट होता है।

10. आगे का रास्ता

🔹PAC की कार्यक्षमता बढ़ाना — अधिक ऑडिट पैरा की समीक्षा।
🔹समय पर और सार्थक अनुवर्ती कार्रवाई सुनिश्चित करना।
🔹रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए सख्त समयसीमा तय करना।
🔹प्रौद्योगिकी का उपयोग — AI आधारित ऑडिट टूल और रियल-टाइम डैशबोर्ड।
🔹परिसंपत्तियों का अधिक भौतिक सत्यापन करना।
🔹नकारात्मक के साथ सकारात्मक पहलुओं की भी रिपोर्टिंग।
🔹ऑडिटर्स को प्रशासनिक वास्तविकताओं पर प्रशिक्षण देना।
🔹नागरिकों के लिए आसानी से पढ़े जा सकने वाले सारांश प्रकाशित करना।
🔹आंतरिक और बाहरी ऑडिट में बेहतर समन्वय।NGO अनुदान और जलवायु वित्त का नियमित ऑडिट।
🔹उच्च-मूल्य वाले खर्च पर सीमित पूर्व-व्यय जांच लागू करने पर विचार।  
UPSC Mains Question (PYQ)


प्र. “नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।” यह उसके नियुक्ति के तरीके, सेवा की शर्तों तथा उसकी शक्तियों के दायरे में किस प्रकार परिलक्षित होती है, स्पष्ट कीजिए। (150 शब्द, 10 अंक) (2018)

UPSC Prelims Practice Question –


प्र. भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-से कथन सही हैं?

  1. CAG राष्ट्रपति की इच्छा पर पद धारण करता है।
  2. सेवानिवृत्ति के बाद CAG कोई भी सरकारी पद नहीं ले सकता।
  3. संसद में, वित्त मंत्री CAG के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है।
  4. यदि राज्यपाल अनुरोध करे तो CAG स्थानीय निकायों के खातों का ऑडिट कर सकता है।

उपरोक्त में से कितने कथन सही हैं?
(A) केवल एक
(B) केवल दो
(C) केवल तीन
(D) सभी चार

उत्तर – (B)

स्रोतद हिंद


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