स्वास्थ्य पर जेब से होने वाला खर्च (OOPE) : वास्तविकता, अनुमान और नीतिगत चुनौतियाँ

प्रासंगिकता

GS Paper II – Governance & Social Justice

  • स्वास्थ्य पर कल्याणकारी योजनाएँ
  • गरीबों की सुरक्षा हेतु Universal Health Coverage
  • नीति निर्माण में आँकड़ों की भूमिका

GS Paper III – Economy & Inclusive Growth

  • Poverty–Health Nexus
  • National Accounts vs NHA डेटा
  • Inclusive Growth के लिए Public Health Expenditure

Essay Paper

  • “स्वास्थ्य पर खर्च और सामाजिक न्याय”

“नीति निर्माण में आँकड़ों की विश्वसनीयता

प्रस्तावना

भारत में स्वास्थ्य सेवा पर होने वाला जेब से खर्च (Out-of-Pocket Expenditure: OOPE) लंबे समय से परिवारों की आर्थिक असुरक्षा का सबसे बड़ा कारण माना जाता है। बीमारी की स्थिति में परिवार अक्सर अपनी बचत तोड़ते हैं, कर्ज लेते हैं या संपत्ति बेचने पर मजबूर हो जाते हैं। गरीब परिवारों के लिए यह स्थिति और भी त्रासदीपूर्ण होती है—या तो वे इलाज से वंचित रह जाते हैं या फिर इलाज के बोझ तले और गहरी गरीबी में धकेल दिए जाते हैं।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा (NHA) के हालिया अनुमान बताते हैं कि OOPE में गिरावट आई है। यह आँकड़ा पहली नज़र में उत्साहजनक लगता है, परंतु इन अनुमानों की पद्धतिगत सीमाएँ और अन्य स्रोतों से मिलने वाले विरोधाभासी संकेत नीति निर्माण के लिए गंभीर प्रश्न खड़े करते हैं।

OOPE की सामाजिक-आर्थिक वास्तविकता

  • जब घर का कोई सदस्य बीमार पड़ता है, तो संसाधनों का पुनर्विनियोजन करना पड़ता है—बचत का इस्तेमाल, कर्ज लेना, या ज़रूरी जरूरतों में कटौती।
  • परिणामस्वरूप :
    • बच्चों की पढ़ाई छूट जाती है,
    • महिलाएँ अतिरिक्त श्रम करने को विवश होती हैं,
    • और परिवार भोजन जैसी बुनियादी ज़रूरतों में समझौता करता है।
  • इस तरह स्वास्थ्य संकट गरीबी और अस्वस्थता के दुष्चक्र को और गहरा करता है।

NHA द्वारा प्रस्तुत गिरावट का दावा

  • NHA 2017-18 के अनुसार, स्वास्थ्य पर OOPE का अनुपात 2013-14 में 64% से घटकर 2017-18 में 49% हो गया।
  • सरकार ने इसे अपनी नीतिगत सफलताओं (जैसे बीमा योजनाएँ, सस्ती दवाओं की पहल आदि) का परिणाम बताया।
  • हालाँकि, OOPE के ये आँकड़े मुख्य रूप से राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (NSS) 75वें दौर (2017-18) पर आधारित हैं, जिनकी अपनी सीमाएँ हैं।

क्यों उठ रहे हैं सवाल?

1. बीमारी की रिपोर्टिंग और सेवाओं के उपयोग में कमी

गिरावट का बड़ा कारण स्वास्थ्य सेवाओं की लागत में कमी नहीं, बल्कि लोगों द्वारा बीमारी की रिपोर्टिंग कम करना और अस्पताल सेवाओं का कम उपयोग हो सकता है।

2. अन्य सर्वेक्षणों से विरोधाभास

  • LASI सर्वेक्षण वृद्ध आबादी में अस्पताल उपयोग को कहीं अधिक दर्शाता है।
  • CES (2022-23) बताता है कि घरेलू उपभोग व्यय में स्वास्थ्य का हिस्सा ग्राम्य क्षेत्र में 5.5% से बढ़कर 5.9% और शहरी क्षेत्र में 6.9% से बढ़कर 7.1% हो गया है।
  • NIA (राष्ट्रीय आय लेखा) के अनुसार GDP में स्वास्थ्य पर खर्च का अनुपात बढ़ा है, जबकि NHA इसे घटता हुआ दिखाता है।

3. COVID-19 का अपूर्ण कवरेज

  • महामारी के दौरान स्वास्थ्य खर्च में अभूतपूर्व वृद्धि हुई, परंतु NSS डेटा में कोविड अवधि शामिल नहीं है
  • जबकि CMIE का उपभोक्ता पिरामिड सर्वेक्षण स्पष्ट रूप से खर्च बढ़ने की ओर संकेत करता है।

नीतिगत निहितार्थ

यदि नीति निर्माण केवल NHA के घटते OOPE आँकड़ों पर आधारित होगा, तो वास्तविकता से दूर निर्णय लिए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए :

  • स्वास्थ्य सेवा महंगी होती जा रही है, दवाओं की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं।
  • गरीब और निम्न-मध्यम वर्ग अब भी वित्तीय संकट से जूझते हैं।
  • बीमा योजनाओं की पहुँच और कवरेज सीमित है।

आगे की राह

  1. बहु-स्रोत आधारित दृष्टिकोण – NHA के अनुमानों को NSS, NFHS, LASI, CES, CMIE जैसे सर्वेक्षणों से पूरक करना आवश्यक हैं।
  2. डेटा का तुलनात्मक सत्यापन – विभिन्न स्रोतों से प्राप्त आँकड़ों का क्रॉस-चेक करने की जरूरत हैं।
  3. यथार्थवादी नीति निर्माण – वास्तविक खर्च, दवाओं की कीमत और बीमा कवरेज को ध्यान में रखकर स्वास्थ्य बजट और योजनाएँ बनाने की जरूरत हैं।
  4. गरीब वर्ग पर विशेष ध्यान – स्वास्थ्य झटकों से बचाने के लिए वित्तीय सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने की आवश्यकता हैं।

निष्कर्ष

NHA द्वारा प्रस्तुत OOPE में गिरावट के आँकड़े आकर्षक लेकिन अधूरे हैं। भारत जैसे विशाल और विषम देश में केवल एक सर्वेक्षण पर आधारित अनुमान नीति निर्माण के लिए पर्याप्त नहीं हो सकते। यथार्थवादी और बहु-स्रोत आधारित स्वास्थ्य आँकड़े ही सही दिशा में नीति निर्धारण और सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेंगे।

UPSC MAINS QUESTION:

प्रश्न:
भारत में स्वास्थ्य पर परिवारों द्वारा किए जाने वाले प्रत्यक्ष जेब खर्च (OOPE) और राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा (NHA) द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों में अंतर क्यों पाया जाता है? इसके सामाजिक-आर्थिक और नीतिगत निहितार्थ स्पष्ट कीजिए।

स्रोत: द हिन्दू

Spread the love

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

   
Scroll to Top