GS Paper – II Polity & Governance, Source by Indian Express
चर्चा में क्यों ?
- भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने “मौलिक कर्तव्यों का क्रियान्वयन एक सतत कार्य है और हमेशा रहेगा, जिसके लिये कर्तव्य-विशिष्ट कानून, योजनाएँ और पर्यवेक्षण की आवश्यकता है”।
मौलिक कर्तव्य के बारे में :
- भारत के संविधान द्वारा निर्धारित मौलिक कर्तव्य एक नैतिक दायित्व है, जिसका पालन भारत के प्रत्येक नागरिक करता है।
- मौलिक कर्तव्य भारत के संविधान भाग-IV(A) तथा अनुच्छेद-51A के अंतर्गत है।
- यह कर्तव्य राष्ट्र के विकास और कल्याण के लिये देश के नागरिकों पर जिम्मेदारी का अंश देता है।
- हालांकि मौलिक कर्तव्य कानूनी रूप से लागू नहीं किया जा सकता है, इसके बावजूद भी नागरिको के प्रति जिम्मेदारी की भावना का एक मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में कार्य करता है।
- मौलिक कर्तव्य रूस (USSR) के संविधान से लिया गया है।
- भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों को जोडने से भारतीय संविधान मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा अनुच्छेद 29(1) के तहत अन्य देशों की तरह आधुनिक संविधान के प्रावधानों के अनुरूप हो गया।
मौलिक कर्तव्य में संशोधन :
- मूल संविधान (1950) : भारतीय संविधान को जब अपनाए गए थे तब कोई मौलिक कर्तव्यों से संबंधित प्रावधान नहीं था।
- 42वां संशोधन (1976) : आपातकाल के समय संवैधानिक संशोधन करने के लिये स्वर्ण सिंह समिति की नियुक्ति की गई थी।
- इस समिति के आधार पर, भारतीय संविधान के भाग IV-A और अनुच्छेद-51A जोडे गए, जिसके द्वारा नागरिकों को उनकी नैतिकता जिम्मेदारियों का ज्ञान हो, इसी वजह से 10 मौलिक कर्तव्यों को जोडा गया।
- 86वां संशोधन (2002) : इस संशोधन के तहत 11वां मौलिक कर्तव्य जोडा गया, इसके तहत माता-पिता का कर्तव्य है कि बच्चों को शिक्षा के अवसर प्रदान करें।
नोट :- वर्तमान में, अनुच्छेद-51A के तहत भारतीय नागरिकों को 11 मौलिक कर्तव्य प्रस्तुत करता है।
मौलिक कर्तव्यों का कार्यान्वयन :
- “मौलिक कर्तव्यों का कार्यान्वयन” से यह तात्पर्य है कि भारतीय संविधान में निहित मौलिक कर्तव्यों का नागरिकों द्वारा पूर्ण रूप से क्रियान्वयन, पालन और अनुपालन किया जाए।
कर्तव्यों को प्रभावी बनाने के तरीके :
- जागरूकता और शिक्षा
- बच्चों को स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल करना, जिससे बच्चों में देश के प्रति भावना रहे।
- अनुपालन को प्रोत्साहित करने वाली नीतियाँ जैसे-राष्ट्रीय प्रतीकों के प्रति सम्मान को बढावा देना और पर्यावरण संरक्षण।
- न्यायिक निर्वाचन करते समय नागरिकों के उत्तरदायित्व को न्यायालय निर्णय जारी करते समय मौलिक कर्तव्यों का व्याख्या करते हैं।
कर्तव्यों के क्रियान्वयन के लिये न्यायमूर्ति वर्मा समिति :
- मौलिक कर्तव्यों के प्रवर्तन के लिये 1998 में न्यायमूर्ति वर्मा समिति का गठन किया गया था। इस समिति का लक्ष्य था कि कम उम्र में ही ही व्यक्तियों में जिम्मेदारी और राष्ट्रीय प्रेम प्रति भावना हो।
मौलिक कर्तव्यों के प्रवर्तन के लिये न्यायमूर्ति वर्मा समिति द्वारा कानून लाई गई :-
- राष्ट्रीय सम्मान अपमान निवारण अधिनियम, 1971 :
इस अधिनियम के तहत राष्ट्रीय ध्वज, भारत के संविधान और राष्ट्रगान का अपमान करना गैरकानूनी माना जाएगा।
- नागरिक अधिनियम संरक्षण अधिनियम, 1955 :
इस अधिनियम के अनुसार जाति और धर्म से संबंधित अपराधों के लिये कानूनी दंड दिया जाता है, यथा नागरिक अधिकारों की रक्षा करता है और समानता को बढावा देता है।
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 :
इस अधिनियम के तहत संसद या राज्य विधानसभाओं के सदस्यों अगर धर्म के नाम पर वोट मांगने या भ्रष्टाचार फैलाते है तो उन्हें दोषी ठहराया जाता है।
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 :
इस अधिनियम के अनुसार जैव विविधता और संरक्षण प्रयासों को संरक्षित करता है।
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1980 :
अनुच्छेद 51A (g) के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये लागू किया गया।
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मौलिक कर्तव्यों के संबंध में महत्वपूर्ण निर्णय :
- चंद्र भवन बोर्डिंग एंड लाँजिंग बनाम मैसूर राज्य (1969) :
संविधान में अधिकार और कर्तव्य दोनों की अवधारणा है।
- एमसी मेहता बनाम कमल नाथ II (2000) :
अनुच्छेद 51A(g) के तहत प्रत्येक नागरिक को प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और जीवित प्राणियों के प्रति दया की भावना रखने का कर्तव्य है।
- जावेद बनाम हरियाणा राज्य (2003) :
सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहा कि मौलिक कर्तव्य भी मौलिक अधिकार के समान महत्वपूर्ण है तथा मौलिक अधिकारों, राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों और मौलिक कर्तव्यों के साथ पढा जाना चाहिये।
- रंगा मिश्रा आयोग मामला (2003) :
सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार को निर्देश दिया कि जनता को मौलिक कर्तव्यों के बारे में बताएँ साथ इसके संबंध में न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा समिति की सिफारिशों पर लागू करें।
- रामलीला मैदान घटना बनाम गृह सचिव (2012) :
जहाँ नागरिकों को मौलिक अधिकार प्राप्त है, वहीं पर आदेशों का पालन करना तथा सार्वजनिक स्थान पर शांति बनाए रखने में भी नागरिकों का मौलिक कर्तव्य है।
भारत के अटॉर्नी जनरल द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में की गई क्रियान्वयन
मामले की भूमिका :
- शीर्ष अदालत वकील दुर्गा दत्त द्वारा एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें संविधान में निहित मौलिक कर्तव्यों का पालन सुनिश्चित करने के लिये परिभाषित कानून/नियम बनाने के लिये केन्द्र को निर्देश देने की मांग की गई थी।
- याचिका में यह कहा गया कि मौलिक कर्तव्यों का पालन न करने से अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत मौलिक अधिकार प्रभावित होते हैं।
- केन्द्र और राज्यों ने सार्वजनिक जागरूकता बढाने और इन कर्तव्यों के अनुपालन को प्रोत्साहित करने के लिये दिशा-निर्देश जारी करेंगे।
भारत के अटॉर्नी जनरल द्वारा की गई क्रियान्वयन/पहल :
- वेंकटरमणी ने यह कहा कि एफ. डी. को मजबूत बनाना एक सतत कार्य है, जिसके लिये कर्तव्य विशिष्ट कानून, योजनाएँ और पर्यवेक्षण की जरूरत होती है।
- न्यायपालिका को विधायिका को कानून बनाने का निर्देश नहीं देना चाहिये तब खासकर इस तरह के मामले विधायी विचाराधीन हो।
- मौलिक कर्तव्यों को पढाने और लागू करने के लिये केन्द्र द्वारा 1998 में गठित समिति में में स्थानांतरित किया गया।
- अटॉर्नी जनरल वेंकटरमणी ने अनुच्छेद-51A में इन कर्तव्यों को लागू करना सरकार के प्रयासों के बिना पर्याप्त नहीं है, खासकर शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में।
- हालांकि मौलिक कर्तव्य गैर-न्यायसंगत है और इसका कार्यान्वयन कार्यपालिका के पास होता है।
Q. किस समिति के द्वारा मौलिक कर्तव्य को गठित किया गया था ?
- तारापोर समिति
- बलवंत राय समिति
- स्वर्ण सिंह समिति
- राधाकृष्णन समिति
उत्तर – C
Q. मौलिक कर्तव्यों को संविधान में सम्मिलित किये जाने का प्रयोजन है –
- मौलिक अधिकारों के दुरूपयोग पर रोक लगाना
- कार्यपालिका की बढती शक्ति को नियंत्रण करना
- विनाशक एवं असंवैधानिक गतिविधियों को नियंत्रित करना
- मौलिक अधिकारों को और मजबूत बनाना
उत्तर – C