वन नेशन वन इलेक्शन

वन नेशन वन इलेक्शन के बारे में करीब 40 वर्षों पहले 1983 में पहली बार चुनाव आयोग ने सुझाव दिया था अब 2023 में सरकार ने इस कदम की संभावनाएं और व्यहार्यता तलाशने के लिए एक समिति का गठन किया  है. भारत में फिलहाल राज्यों के विधानसभा और देश के लोकसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं।

वन नेशन वन इलेक्शन का मतलब है :-

 पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव हों। यानी मतदाता लोकसभा और राज्य के विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन, एक ही समय पर या चरणबद्ध तरीके से अपना वोट डालेंगे।

पहले  वन नेशन वन इलेक्शन कब  हुआ :-

  • आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे, लेकिन 1951 से 1967 के बीच लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुआ करते  थे.
  • 1951-52 में आम चुनाव और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए थे. इसके बाद 1957, 1962  और 1967 में लोकसभा और राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ हुए थे.
  • 1959 में  केरल में सीपीआई नेतृत्व वाली सरकार को बर्खास्त कर दिया गया था और राष्ट्रपति शासन लगाया गया था.
  • 1960 में केरल में विशेष राज्य चुनाव हुआ था, जिसके चलते 1962 में राज्य सरकार भंग नहीं हुई थी, जब आम चुनाव हुए थे.
  • 1964 में केरल में दोबारा राष्ट्रपति शासन लगाया गया था. फिर 1965 में चुनाव हुए थे लेकिन राष्ट्रपति शासन जारी रहा और 1967 तक चला, जिसके चलते केरल विधानसभा का चुनाव एक बार फिर आम चुनाव के साथ हुआ.
  • 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं।

उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई।

 वन नेशन वन इलेक्शन लागू करने की दिशा में अब तक क्याक्या काम किया :-

मई 2014 में जब केंद्र में वर्तमान  सरकार पहली बार  आई, तो कुछ समय बाद ही एक देश और एक चुनाव को लेकर बहस शुरू हो गई।

दिसंबर 2015 में लॉ कमीशन ने वन नेशन-वन इलेक्शन पर एक रिपोर्ट पेश की थी। इसमें बताया था कि अगर देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कराए  जाते हैं, तो इससे करोड़ों रुपए बचाए जा सकते हैं।

 इसके साथ ही बार-बार चुनाव आचार संहिता न लगने की वजह से डेवलपमेंट वर्क पर भी असर नहीं पड़ेगा। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए 2015 में सिफारिश की गई थी कि देश में एक साथ चुनाव कराए जाने चाहिए।

वर्तमान प्रधान मंत्री जी  ने जून 2019 में पहली बार औपचारिक तौर पर सभी पार्टियों के साथ इस मसले पर विचार विमर्श के लिए बैठक बुलाई थी। तब के केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ BJP नेता रवि शंकर प्रसाद ने कहा था कि देश में कमोबेश हर महीने चुनाव होते हैं, उसमें खर्चा होता है। आचार संहिता लगने के कारण कई प्रशासनिक काम भी रुक जाते हैं। हालांकि, पार्टियों ने विरोध दर्ज कराया था।

2020 में प्रधान मंत्री जी ने एक सम्मेलन में वन नेशन वन इलेक्शन को भारत की जरूरत बताया।

 अब 1 सितंबर 2023 को सरकार ने इस मसले पर एक कमेटी बनाने का फैसला किया । जिसके अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी है । ये कमेटी इस मसले पर सभी स्टेक होल्डर्स से राय लेकर रिपोर्ट तैयार करेगी।

क्या देश में वन नेशन वन इलेक्शन लागू करना संभव है

 प्रोफेसर संजय कुमार के मुताबिक वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर दो सिनेरियो हैं-

  1. संसद कानून बना सकती है
  2.  इसके लिए दो-तिहाई राज्यों की रजामंदी की जरूरत होगी।

अगर बाकी राज्यों से सहमति लेने की जरूरत हुई तो ज्यादातर नॉन BJP सरकारें इसका विरोध करेंगी।

अगर सिर्फ संसद से पारित कराकर कानून बनाना संभव हुआ तो भी कई मुश्किलें होंगी। जैसे- एक साथ चुनाव कब कराया जाए? जिन राज्यों में अभी चुनाव हुए उनका क्या होगा? क्या इन सरकारों को बर्खास्त कर दिया जाएगा?

साफ है कि कानूनी तौर पर कई अड़चनें आने वाली हैं। ऐसा मानना है कि कानूनी आधार पर इस समस्या का हल कर पाना संभव नहीं है। इसके लिए दूसरे राज्यों की सहमति बहुत जरूरी है। हालांकि, मतभेद इतना ज्यादा है कि ये मुमकिन नहीं लगता।

पॉलिटिकल एक्सपर्ट राशिद किदवई के मुताबिक अभी जिन राज्यों में हाल में सरकार चुनी गई है, वो इसका विरोध करेंगे। एक बात साफ है कि अगर सरकार ऐसा करेगी तो इस मामले का सुप्रीम कोर्ट में जाना तय है।

वन नेशन वन इलेक्शन के समर्थन में तर्क

• हर साल 5-6 राज्यों में चुनाव पड़ जाते हैं। वन नेशन वन इलेक्शन के समर्थकों का कहना है कि इससे विकास कार्यों में बाधा पड़ती है।

 ओडिशा में 2004 के बाद से चारों विधानसभा चुनाव, लोकसभा चुनाव के साथ हुए और उसमें नतीजे भी अलग-अलग रहे। वहां आचार संहिता बहुत कम देर के लिए लागू होती है, जिसकी वजह से सरकार के कामकाज में दूसरे राज्यों के मुकाबले कम खलल पड़ता है ।

पूरे देश की विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव एक साथ होते हैं तो इससे चुनाव पर होने वाले खर्च में कमी आएगी।

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले अगस्त 2018 में लॉ कमीशन की एक रिपोर्ट आई थी। इसमें कहा था कि अगर 2019 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ होते हैं, तो उससे 4,500 करोड़ रुपए का खर्च बढ़ेगा। ये खर्चा इसलिए क्योंकि EVM ज्यादा लगानी पड़ेंगी। इसमें ये भी कहा गया था कि साथ चुनाव कराने का सिलसिला आगे बढ़ता है, तो 2024 में 1,751 करोड़ रुपए का खर्च बढ़ता । यानी, धीरे-धीरे ये एक्स्ट्रा खर्च भी कम हो जाता।

वन नेशन वन इलेक्शन के विरोध में क्या तर्क दिए जा रहे हैं?

राष्ट्रीय स्तर पर देश और राज्य के मुद्दे अलग-अलग होतें हैं। एक साथ चुनाव हुए तो वोटर्स के फैसले पर असर पड़ने की संभावना है।

चुनाव 5 साल में एक बार होंगे तो जनता के प्रति सरकार की जवाबदेही कम हो जायेगी। अभी की स्थिति में लोकसभा चुनाव जीतने वाली पार्टियों को डर होता है कि अच्छे से काम नहीं करेंगे तो विधानसभा में दिक्कत होगी।

एक चुनाव कराने में तीसरी दिक्कत ये है कि अगर लोकसभा 5 साल से पहले ही भंग कर दी गई तो क्या होगा ? क्योंकि अभी तक लोकसभा 6 बार 5 साल से पहले ही भंग कर दी गई, जबकि एक बार इसका कार्यकाल 10 महीने के लिए बढ़ा था। ऐसी स्थिति में तो फिर अलग-अलग चुनाव होने लगेंगे।

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी को वन नेशन वन इलेक्शन की कमेटी का अध्यक्ष क्यों बनाया गया है?

रामनाथ कोविंद जी 1 अक्टूबर 1945 को कानपुर की डेरापुर तहसील के परौंख गांव में जन्मे। 1977 में तब PM रहे मोरारजी देसाई के पर्सनल सेक्रेटरी बने।

1978 में कोविंद सुप्रीम कोर्ट में वकील के तौर पर अपॉइंट हुए। 1980 से 1993 के बीच सुप्रीम कोर्ट में केंद्र की स्टैंडिंग काउंसिल में भी रहे। कोविंद 1994 से 2000 तक और उसके बाद 2000 से 2006 तक राज्यसभा सदस्य रहे। अगस्त 2015 में बिहार के गवर्नर अपॉइंट हुए।

 रामनाथ कोविंद 25 जुलाई 2017 को भारत के राष्ट्रपति चुने गए और 5 साल का कार्यकाल पूरा किया।

रामनाथ कोविंद की प्रोफाइल से पता लगता है कि उनके राजनीति और कानून दोनों की समझ है।   वन नेशन वन इलेक्शन की कमेटी में उनकी नियुक्ति को अन्य विपक्षी पार्टियां भी नहीं खुलकर विरोध नहीं कर पाएंगी क्योंकि वो दलित चेहरा और देश के राष्ट्रपति रह चुके हैं।

देश में वन नेशन वन इलेक्शन लागू करने की प्रक्रिया क्या होगी ?

सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील विराग गुप्ता के मुताबिक विधि आयोग ने इस बारे में संशोधनों के विवरण के साथ अप्रैल, 2018 में पब्लिक नोटिस जारी किया था। विधि आयोग के अनुसार वन नेशन वन इलेक्शन के प्रस्ताव से संविधान के अनुच्छेद 328 पर भी प्रभाव पड़ेगा, जिसके लिए अधिकतम राज्यों का अनुमोदन लेना पड़ सकता है।

संविधान के अनुच्छेद 368 (2) के अनुसार, ऐसे संशोधन के लिए न्यूनतम 50% राज्यों के अनुमोदन की जरूरत होती है, लेकिन ‘एक देश, एक चुनाव’ के तहत हर राज्य की विधानसभा के अधिकार और कार्यक्षेत्र प्रभावित हो सकते है |

इसलिए इस मामले में सभी राज्यों की विधानसभाओं से अनुमोदन लेने की जरूरत पड़ सकती है। इसके बाद जनप्रतिनिधित्व कानून समेत कई दूसरे कानून में संशोधन करने होंगे।

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